इस दीपावली के संकल्प
किसी के कहने-सुनने से राय न बनाएं, खुद ही परिस्थिति का आकलन करें और निर्णय लें. दीपावली पर खुशी के दिये जलाएं और पूरे साल साफ-सफाई का ख्याल रखें.
आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabr.in
कोरोना वायरस के कहर से देश-दुनिया जूझ रही है. अभी तक इस खतरनाक वायरस से मुकाबले के लिए कोई प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है. जो सूचनाएं आ रही हैं, उनके अनुसार अभी वैक्सीन आने में भी देर है. इन परिस्थितियों में ठंड के मौसम और बढ़ते वायु प्रदूषण ने चिंता बढ़ा दी है. साइंस एडवांस पत्रिका के मुताबिक अमेरिका में किये गये एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए कोरोना घातक हो सकता है और ऐसे लोगों में मौत का खतरा ज्यादा हो सकता है. वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचता है.
इसके पहले भी कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोना का वायरस और घातक हो जाता है. प्रदूषण इस देश के लिए गंभीर खतरा है. अगर आपको याद हो, कुछ समय पहले देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति इतनी खराब थी कि प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने वहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी थी. दीपावली नजदीक है और इस दौरान पटाखे चलाये जाते हैं, लेकिन विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर हमें पटाखे फोड़ने पर पुनर्विचार करना चाहिए. दिल्ली सरकार ने तो दीपावली पर दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है.
स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी व्यवस्था को डंडे के जोर से लागू करने के पक्ष में नहीं हूं. समाज में स्वयं चेतना जगे और लोग देश में कोरोना और प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए पटाखों को स्वेच्छा से छोड़ें. मैंने देखा है कि सोशल मीडिया पर पटाखों पर प्रतिबंध के खिलाफ एक अभियान भी चलाया जा रहा है. गंभीर बात यह है कि कुछेक लोग इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश करते हैं, जो चिंताजनक है. दीपावली पर कुछ और अच्छे अभियान भी चले हैं. मसलन, चीनी झालर की जगह मिट्टी के दिये जलाने का अभियान चला है. हम सबको इसका समर्थन करना चाहिए.
इस मुहिम को और व्यापक करने की जरूरत है, ताकि इसका फायदा हमारे कुम्हार भाइयों को मिल सके और हम पारंपरिक तरीके से दीपावली मना सकें. देश की राजधानी प्रदूषण के कारण बदनाम है और वहां सांस लेना भी मुहाल है. वहां अभी प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है कि आसमान में धुएं की परत साफ देखी जा सकती है. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा की हैं, जिनमें धुएं की परत साफ नजर आती है, लेकिन प्रदूषण के मामले में बिहार और झारखंड के भी कई शहरों में हालात कोई बहुत बेहतर नहीं है.
पिछले कई वर्षों से लगातार चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं, लेकिन स्थिति जस-की-तस है. हम इस ओर आंख मूंदे हैं. समाज में भी इसको लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा है, जबकि यह मुद्दा हमारे-आपके जीवन से जुड़ा हुआ है. यह सही है कि प्रदूषण के लिए केवल पटाखे जिम्मेदार नहीं है. इसमें अन्य कारकों का भी योगदान है, लेकिन दीपावली के दौरान पटाखों का प्रदूषण बढ़ाने में भारी योगदान रहता है. ऐसे बहुत से महानुभाव हैं, जो पटाखे बोरों में लाते हैं और उनके लिए पटाखे फोड़ने की रात की समयसीमा का भी कोई मायने नहीं है.
एक तर्क दिया जा रहा है कि पटाखे नहीं खरीदने से इसके कारोबारियों को भारी नुकसान होगा, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि लोग इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकायेंगे. बिहार और गुजरात में शराबबंदी लागू है. इन राज्यों को प्रतिबंध के कारण करोड़ों के राजस्व का नुकसान होता है, लेकिन यह लोगों के स्वास्थ्य और समाज की खुशहाली के मुकाबले कुछ भी नहीं है. व्यापक जनहित में यह एक अहम फैसला है. हमें अपनी राय बनाते वक्त इस पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा. पटाखों पर प्रतिबंध से यदि लोगों के स्वास्थ्य और जान की रक्षा होती है, तो इसके आगे कितनी भी बड़ी रकम हो, वह कुछ भी नहीं है.
इस देश में विकास के नाम पर औद्योगिक इकाइयों को धुआं फैलाने की खुली छूट मिल जाती है. औद्योगिक इकाइयां, बिल्डर और खनन माफिया पर्यावरण संरक्षण कानूनों की खुलेआम अनदेखी करते हैं. औद्योगिक इकाइयों के अलावा वाहनों की बढ़ती संख्या, धुआं छोड़ती पुरानी डीजल गाड़ियां, निर्माण कार्य और टूटी सड़कों की वजह से हवा में धूल का उड़ना भी प्रदूषण की बड़ी वजह हैं. प्रदूषण को लेकर सख्त नियम हैं, लेकिन उनको लागू करने वाला कोई नहीं है. उत्तर भारत में तो वायु प्रदूषण का असर लोगों की औसत आयु पर पड़ रहा है.
कुछ समय पहले अमेरिका की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक जारी किया था. इसमें उत्तर भारत मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की औसत आयु लगभग सात वर्ष तक कम होने की आशंका जतायी थी. रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के भी कई जिलों में भी लोगों का जीवनकाल घट रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ समय पहले एक और गंभीर तथ्य की ओर इशारा किया था कि भारत में 34 फीसदी मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है. वायु प्रदूषण से हृदय व सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों का कैंसर जैसे घातक रोग तक हो जाते हैं.
वायु प्रदूषण पूरे उत्तरी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, जबकि भारत की आबादी का 40 फीसदी से अधिक हिस्सा इसी में रहता है. यह जान लीजिए कि वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग होते है. एक आकलन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण हर साल छह लाख बच्चों की जान चली जाती है. आपको याद होगा कि कोरोना की वजह से जब सख्त लॉकडाउन था, तो देश की राजधानी दिल्ली समेत देश के सभी शहरों के प्रदूषण में भारी कमी आयी थी. लॉकडाउन के दौरान लोगों को यह अहसास हुआ है कि साफ हवा क्या होती है और उसमें सांस लेना कितना सुखद होता है.
अखबारों में तस्वीरें छपीं कि पंजाब के जालंधर शहर से हिमालय की बर्फीली चोटियां नजर आने लगी थीं. वायु प्रदूषण न होने की वजह से शहर आबोहवा एकदम शुद्ध हो गयी और जालंधर के बाहरी इलाकों से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित हिमाचल प्रदेश के धौलाधार पर्वत शृंखला नजर आने लगी थी. ऐसी ही खबर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आयी. वहां भी वर्षों में हवा इतनी शुद्ध नहीं हुई, जितनी लॉकडाउन में हुई और बर्फ से लदी गंगोत्री पर्वत शृंखला दिखाई देने लगी. पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की भी यही कहानी है. जब लोग सुबह उठे, तो उन्हें दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा दिखाई दे रही थी.
विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि प्रदूषण न हो तो 20 हजार फीट ऊंची कोई भी शृंखला लगभग 300 किलोमीटर दूरी से नजर आ सकती है. कहने का आशय यह है कि अगर शासन व्यवस्था और लोग ठान लें, तो परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है. इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि किसी के कहने-सुनने से राय न बनाएं, खुद ही परिस्थिति का आकलन करें और निर्णय लें. आइए, हम सब मिल कर दीपावली पर खुशी के दिये जलाएं और न केवल दीपावली पर, बल्कि पूरे साल साफ-सफाई का ख्याल रखें. साथ ही अपनी नदियों-तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखने का संकल्प लें.
Posted by : Pritish Sahay