डरें नहीं, अच्छा है आइटी सेक्टर का भविष्य
अगर आप किसी कंपनी का हिसाब-किताब देखें, तो वह एक या दो दशक में कभी घाटे में नहीं गयी है. उनकी लगातार वृद्धि हुई है. तकनीक की जरूरत हर क्षेत्र में बढ़ती जा रही है.
हाल के दिनों में बड़ी वैश्विक तकनीकी कंपनियों में व्यापक पैमाने पर हो रही छंटनी से चिंता पैदा होना स्वाभाविक है. हमें इस स्थिति की पृष्ठभूमि को देखना चाहिए. हम अभी जो होता हुआ देख रहे हैं, कमोबेश यही हालत कोविड महामारी से पहले के दौर में थी. जब महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया, तब अन्य क्षेत्रों की तरह तकनीकी क्षेत्र में भी मांग व आपूर्ति का अनुपात घटा और यह लगभग 20 प्रतिशत के स्तर पर आ गया.
जब महामारी की रोकथाम से संबंधित पाबंदियों में ढील देने का सिलसिला शुरू हुआ तथा आर्थिक व कारोबारी गतिविधियों में तेजी आने लगी, तो 2021 के अंतिम कुछ महीनों तथा इस साल के शुरू में मांग में भी बढ़ोतरी आयी. इसी के साथ मांग का हिसाब 80-90 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया.
इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि यूरोप और अमेरिका समेत कई देशों में अपनी अर्थव्यवस्था और व्यापार प्रक्रिया के डिजिटलीकरण की होड़ लग गयी ताकि भविष्य में ऐसी किसी महामारी की स्थिति में कारोबार पर असर न हो या कम हो. इसे ऐसे समझने की जरूरत है कि मांग को जो स्तर महामारी से पहले 50 प्रतिशत था, वह कोरोना काल में 20 प्रतिशत हुआ और फिर उसमें बड़ी उछाल आयी तथा वह लगभग 90 फीसदी के आसपास जा पहुंचा. आज हम फिर से मांग को 50 प्रतिशत के आसपास आता हुआ देख रहे हैं.
भारतीय टेक कंपनियों में जो छंटनी या भर्ती प्रक्रिया धीमी होने की स्थिति हम आज देख रहे हैं, उसका कारण भविष्य के आकलन का गलत साबित होना है. कंपनियों को ऐसा लगा कि कोरोना काल के तुरंत बाद जो मांग में तेज वृद्धि हुई है, वह लंबे समय तक बरकरार रहेगी. ऐसे में नये कर्मियों की भर्ती भी तेज हुई और बड़ी कंपनियों ने अपने यहां कार्यरत लोगों को रोकने के लिए उनके वेतन-भत्ते में मुंहमांगी बढ़ोतरी भी की.
आकलनों के अनुसार टेक बाजार में कई साल तक बढ़त होनी थी. ऐसे में कंपनियों ने कॉलेजों से नयी प्रतिभाओं को भी बड़ी संख्या में नौकरियां दीं ताकि वे दौड़ में बने रहें और उनके पास लोगों की कमी न रहे. इस मामले में यह भी हुआ कि बहुत से छात्रों ने कंपनियों से ऑफर लेटर तो हासिल किया, लेकिन नौकरी ज्वाइन करने की तारीख नहीं ली.
उसके बाद रूस और यूक्रेन के युद्ध का असर अमेरिका और यूरोप की अर्थव्यवस्था पर जब पड़ना शुरू हुआ, तो अमेरिकी टेक कंपनियों, जैसे- गूगल, आमेजन, फेसबुक-मेटा आदि, को छंटनी करने पर मजबूर होना पड़ा. उसका असर अन्य देशों में उनके कारोबार और कार्यालयों पर भी हुआ. यहां हम ट्विटर में हुई छंटनी का उल्लेख नहीं करेंगे क्योंकि वहां ऐसे कंपनी के प्रबंधन बदलने के कारण हुआ है तथा एक तरह से यह अपेक्षित भी था.
अपने देश की कुछ कंपनियों में छंटनी हो रही है, वह इसलिए है कि बढ़त और अनुमान को देखकर उन्होंने अंधाधुंध भर्तियां की तथा अब जब मांग में एक स्थिरता आ रही है, तो उन्हें लोगों को हटाना पड़ रहा है. लेकिन भारत में तकनीकी क्षेत्र में अभी ऐसी स्थिति कतई नहीं आयी है कि लोगों को नौकरियां नहीं मिलेंगी. अभी भी भर्ती हो रही है, मांग कम होने से उनकी रफ्तार कम है तथा पहले जिस तरह से वेतन आदि तय हो रहे थे, वैसा नहीं हो रहा है.
मुझे ऐसा लगता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और अन्य वैश्विक आर्थिक कारणों का असर कुछ समय तक रहेगा. एक-दो तिमाहियों के बाद हम फिर एक बार तकनीकी बाजार में उछाल देखेंगे और मांग में बढ़ोतरी होगी. हाल में आइटी सेक्टर की कंपनियों ने जो अपनी तिमाही या छमाही कारोबारी रिपोर्ट दी है, उसमें उन्होंने बताया है कि उनके पास भविष्य के लिए ठोस रणनीति है. ऐसे में हमें कारोबार कम होता हुआ नहीं दिख रहा है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि कुछ महीनों बाद स्थिति सामान्य हो जायेगी.
जहां तक अमेरिका स्थित आइटी कंपनियों की बात है, तो जैसा हमने पहले कहा कि युद्ध और अन्य कारकों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था दबाव में है. यही स्थिति यूरोप में भी है. कई और देशों में भी अनिश्चितता की स्थिति है. उन कंपनियों में अच्छी संख्या में भारतीय या भारतीय मूल के लोग कार्यरत है. वे कामकाजी वीजा पर वहां गये हैं.
नियमों के अनुसार, अगर इन्हें छह माह के भीतर नौकरी नहीं मिलती है, तो उन्हें वापस आना पड़ेगा. यह चिंता की बात है, पर हम इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते है. अगर अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों की सरकारें इस संबंध में सहानुभूति के साथ व्यवहार करती हैं, तो वह स्वागतयोग्य होगा. जो छात्र हमारे देश में आइटी शिक्षा ले रहे हैं, उन्हें यह समझना होगा कि भारत में हजारों कंपनियां हैं.
बड़ी कंपनियों में नौकरी की इच्छा करना अच्छी बात है, लेकिन बहुत सारी छोटी कंपनियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बहुत छात्र सोचते हैं कि अगर वे बड़े ब्रांड के साथ करियर शुरू करेंगे, तो उन्हें आगे फायदा होगा. हकीकत में ऐसा नहीं होता. अगर वे छोटी कंपनियों में कुछ समय काम कर बड़ी कंपनियों का दरवाजा खटखटायेंगे, तो उन्हें ज्यादा तरक्की मिलेगी.
हमारे पास हाल ही में यह शिकायत आयी कि सैकड़ों छात्र कई महीनों से ज्वाइनिंग लेटर का इंतजार कर रहे हैं. प्लेसमेंट के मामले में ऐसा भी हुआ है कि कुछ छात्र चयन के साल भर बाद भी कंपनी से पत्र आने की राह देख रहे हैं. ऐसे में हमारे छात्रों को एक कंपनी का आसरा देखते रहने की जगह अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए.
नये छात्रों के लिए हमारे आइटी सेक्टर में नौकरियों की कमी आज भी नहीं है. बाद में जब स्थिति बेहतर होगी, तो उनके अनुभव उन्हें और अच्छे अवसर हासिल करने में मददगार होंगे. सरकार की ओर से स्टार्टअप कंपनियों को बहुत सी सहूलियत दी जा रही है. हमारे छात्र उनके साथ भी अपना करियर शुरू कर सकते हैं.
तमाम कठिनाइयों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि आइटी कंपनियों और स्टार्टअप के लिए स्वर्णिम समय आने वाला है. अगर आप किसी कंपनी का हिसाब-किताब देखें, तो वह एक या दो दशक में कभी घाटे में नहीं गयी है. उनकी लगातार वृद्धि हुई है. तकनीक की जरूरत हर क्षेत्र में बढ़ती जा रही है. ऐसे में नौकरी या करियर के लिहाज से भी यह सेक्टर किसी को निराश नहीं कर सकता है. हमें भविष्य को लेकर आश्वस्त रहना चाहिए.