अफरातफरी न फैले

कोई भी बकवास क्षण भर में करोड़ों लोगों तक पहुंचकर भ्रम पैदा कर सकती है. हमें केवल सरकारों, विशेषज्ञों के निर्देशों पर भरोसा करना चाहिए.

By संपादकीय | March 17, 2020 6:30 AM

कोरोना वायरस के वैश्विक फैलाव से सरकारों, संस्थाओं और लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है, लेकिन हड़बड़ाने या बेचैन होने की आवश्यकता नहीं है. कुछ दिनों से ऐसी खबरें आती रही हैं कि अचानक मांग बढ़ने के कारण मास्क, सैनिटाइजर, नैपकिन आदि की कमी हो रही है. अब इ-कॉमर्स, खुदरा कारोबारियों और किराना दुकानों के हवाले से आती सूचनाएं बता रही हैं कि खाने-पीने और रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों की बिक्री में 15 से 45 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. इससे संकेत मिलता है कि लोग बाजार व अन्य गतिविधियों में रुकावट की आशंका से सामान जमा कर रहे हैं. यह रवैया किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है. इससे अफरातफरी ही बढ़ेगी और कोरोना पर काबू पाने के उपायों को झटका लग सकता है.

संतोष की बात है कि सरकारी स्तर पर और इ-कॉमर्स कारोबारियों ने जमाखोरी को रोकने की कोशिशें हो रही हैं. किसी भी वस्तु की आपूर्ति या उपलब्धता समुचित है और मांग के अनुरूप वे बाजार से खरीदी जा सकती है. सरकार ने मास्क और सैनिटाइजर को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में ला दिया है. इस कदम से इन चीजों को महंगे दामों पर बेचना और मुनाफाखोरी के इरादे से जमा कर रखना दंडनीय अपराध हो गया है. अनेक राज्यों में कारोबारियों पर छापेमारी भी की गयी है. अंधाधुंध खरीदारी या मुनाफाखोरी से बेमतलब दबाव और डर बढ़ सकता है. ऐसे में समाज और कारोबारियों को संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए.

भारत समेत सभी प्रभावित देश विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिल कर कोरोना वायरस की रोकथाम में जूटे हुए हैं तथा अब स्थिति में सुधार के ठोस संकेत भी मिलने लगे हैं. इस माहौल में जमाखोरी को रोकने और आधारहीन अराजकता को रोकने के लिए कुछ और नियमन की जरूरत पड़ सकती है, जिसके बारे में सरकारों को पहले से तैयार रहना चाहिए, ताकि प्राथमिकता रोग पर नियंत्रण करने पर केंद्रित रहे. इस संदर्भ में कोरोना वायरस, रोग के लक्षणों और उपचार के बारे में अपुष्ट तथ्यों और अफवाहों को फैलाने से भी परहेज किया जाना चाहिए.

सोशल मीडिया और मुख्यधारा के अखबारों व प्रसारण माध्यमों को सजग रहने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी बकवास क्षण भर में करोड़ों लोगों तक पहुंचकर भ्रम पैदा कर सकती है. हमें केवल सरकारों, विशेषज्ञों और मान्य संस्थानों के निर्देशों व सूचनाओं पर भरोसा करना चाहिए. आधारहीन बातों के खंडन के लिए दिल्ली के एम्स के निदेशक समेत कई डॉक्टरों को सामने आना पड़ रहा है. हमें केवल हाथों, चेहरे आदि की साफ-सफाई और मिलने-जुलने में सावधानी बरतने पर ध्यान देना चाहिए तथा ऐसी कोई भी हरकत नहीं करनी चाहिए, जिससे मुश्किलें घटने की जगह बढ़ जायें. हर जागरूक नागरिक को जिम्मेदारी की भावना के साथ परस्पर मिलजुल कर काम करने की जरूरत है.

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