Donald Trump : डोनाल्ड ट्रंप का पिछला कार्यकाल भारत के लिए मिश्रित रहा था. चीन की बढ़ती चुनौती का सामना करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग बढ़ा था. सामरिक रिश्ते प्रगाढ़ हुए थे. परंतु व्यापार और तकनीकी पेशा भारतीयों के लिए एच1बी वीजा के मुद्दों पर तनाव बना रहा था. इस बार ट्रंप के तेवर पहले से भी कड़े नजर आ रहे हैं. पिछली बार उनके पास देश चलाने का अनुभव नहीं था और जनादेश भी इतना व्यापक नहीं था. दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव की तलवार भी लटकी हुई थी. इसलिए उन्हें अमेरिका के भारतवंशियों के समर्थन की जरूरत महसूस होती थी. इस बार वे राजनीतिक शक्ति के शिखर पर हैं और उन्हें अगले चुनाव की परवाह भी नहीं करनी है. इसलिए वे व्यापार और आयात शुल्कों की बात करते हुए भारत को भी व्यापार नियमों का दुरुपयोगी बताते हैं और कहते हैं कि जरूरत पड़ी तो वे सौ प्रतिशत शुल्क थोपने से भी गुरेज नहीं करेंगे. अवैध आप्रवासियों को देश से निकालना तो उनके चुनाव प्रचार का मूलमंत्र रहा है.
ट्रंप सरकार का मूड भांपते हुए भारत सरकार ने लगभग 18 हजार अवैध आप्रवासियों को वापस लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अमेरिका में भारतीयों की संख्या 50 लाख से अधिक है जिनमें से लगभग 75,000 अवैध रूप से रह रहे हैं. नयी ट्रंप सरकार के आप्रवासी विरोधी तेवरों को देखते हुए भारत सरकार यह नहीं चाहती कि अवैध रूप से गये लोगों की वजह से एच1बी वीजा पर जाने वाले तकनीकी पेशा लोगों या उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों की संख्या को लेकर विवाद खड़ा हो. अमेरिका में जारी होने वाले 3,86,000 एच1बी वीजाओं में से लगभग तीन-चौथाई भारतीयों को मिलते हैं, जो भारत की टेक कंपनियों के कारोबार के लिए महत्वपूर्ण हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप के हाल के कुछ बयानों और उनके किफायत तथा कुशलता मंत्री एलन मस्क के बयानों से लगता है कि नया ट्रंप प्रशासन अपनी अर्थव्यवस्था के लिए एच1बी वीजा पर आने वाले उच्च कौशल लोगों की अहमियत को समझता है. परंतु ट्रंप के स्टीव बैनन जैसे दक्षिणपंथी समर्थकों को यह बात नागवार गुजरती है कि ऊंचे वेतन और कौशल वाली नौकरियां अमेरिकियों की जगह आप्रवासियों को मिले. इसे देखते हुए कुछ भारतीय टेक कंपनियों ने भारतीयों की जगह स्थानीय अमेरिकियों को लेना शुरू कर दिया है. इसलिए लगता नहीं कि एच1बी वीजा को लेकर कोई बड़ा विवाद होगा.
अवैध और अस्थायी आप्रवासियों के अमेरिका में जन्म लेने वाले बच्चों से नागरिकता का जन्मसिद्ध अधिकार छीनने वाले आदेश ने भारतवंशियों के लिए नया सिरदर्द खड़ा कर दिया है.
अमेरिकी संविधान में 155 साल पहले हुआ 14वां संशोधन अमेरिका में जन्म लेने वाले हर बच्चे को नागरिकता का जन्मसिद्ध अधिकार देता है. इसे भुनाने के लिए कुछ लोग केवल बच्चे पैदा करने के लिए अमेरिका जाते हैं, जिसे नागरिकता पर्यटन कहते हैं. ट्रंप ने आदेश जारी कर इसकी परिभाषा ही बदल दी है. उनका आदेश कहता है कि अवैध या अस्थायी रूप से रहने वाले आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका में पैदा होने पर भी वहां की नागरिकता नहीं मिलेगी. मानवाधिकार संस्थाओं ने इसे अदालतों में चुनौती भी दे डाली है. अपील करने वालों की दलील है कि राष्ट्रपति ट्रंप का आदेश संविधान को बदलता है और संविधान को कांग्रेस और सीनेट के दो-तिहाई बहुमत से होने वाले संशोधन के बिना नहीं बदला जा सकता. संशोधन पारित होने के बाद भी उसे तीन-चौथाई राज्यों की संसदों के समर्थन की जरूरत होती है.
यद्यपि राष्ट्रपति ट्रंप चीन को अमेरिका की सबसे बड़ी आर्थिक व सामरिक चुनौती के रूप में देखते हैं. इसलिए उन्होंने अपने प्रशासन में फ्लोरिडा के चीन विरोधी सीनेटर मार्को रूबियो को विदेश मंत्री और दूसरे चीन विरोधी सीनेटर माइकल वॉल्ट्स को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया है. संयोग से ये दोनों भारत समर्थक भी रहे हैं. रूबियो ने भारत-अमेरिका सैन्य-रणनीति के समझौते का प्रस्ताव सदन में रखा था और वॉल्ट्स भारत कॉकस के अध्यक्ष रह चुके हैं. इसलिए इस ट्रंप प्रशासन से यह उम्मीद की जा सकती है वह भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी रणनीति की धुरी बनाकर चलेगा और चीनी वर्चस्व की रोकथाम में भारत का सहयोग करता रहेगा.
रक्षा और क्रिटिकल तकनीक के क्षेत्रों में चीन की बढ़ती ताकत का सामना करने के लिए भारत इन क्षेत्रों में अमेरिका के साथ साझा अनुसंधान और उत्पादन की संभावनाएं तलाश सकता है. भारत को इसी साल क्वाड शिखर बैठक की मेजबानी भी करनी है जिसमें भाग लेने ट्रंप के भारत आने की उम्मीद की जा सकती है. दक्षिण और पश्चिम एशिया में इस्लामी आतंकवाद की रोकथाम के लिए भी ट्रंप प्रशासन से बेहतर समर्थन की उम्मीद की जा सकती है. परंतु ट्रंप किसी सिद्धांत या संधि में विश्वास नहीं रखते. पिछले कार्यकाल की तरह वे चीन के साथ भी व्यापार सौदा पटाने की कोशिशें करते रहेंगे और लाभ का सौदा होते ही पलट भी सकते हैं. इसलिए भारत को सारे विकल्प खुले रखकर चलना होगा.
भारत के सामने असली चुनौती अपना व्यापार बचाने की है. इस समय भारत का सबसे अधिक व्यापार अमेरिका के साथ है और वह भारतीय माल के लिए बड़ी ही नहीं, बल्कि सबसे मालदार मंडी है. भारत को सबसे अधिक व्यापार लाभ भी वहीं से होता है. अमेरिका को भारत से होने वाला व्यापार घाटा चीन, यूरोप और मेक्सिको की तुलना में बहुत कम है. पर ट्रंप को घाटा बिल्कुल पसंद नहीं. इसलिए वे शुल्क थोपने की धमकी देते रहते हैं. इससे बचने के लिए, एक तो भारत अमेरिकी माल पर अपने आयात शुल्क घटा सकता है. दूसरे, यदि ट्रंप यूक्रेन के युद्ध को रुकवा दें और अपने यहां तेल और गैस का उत्पादन बढ़ा उनके दाम नीचे ले आयें, तो भारत अमेरिका से तेल और गैस की खरीद बढ़ाकर भी उसका घाटा पूरा कर सकता है.
भारत यदि अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध से बचा रहे तो भारत को चीनी-अमेरिकी व्यापार युद्ध का लाभ भी मिल सकता है. चीन पर 60 प्रतिशत शुल्क की धमकियों से घबरायी पश्चिमी कंपनियां अपने कारोबार चीन से हटा भारत जैसे देशों में लाने को तैयार हैं. पर यह तभी संभव होगा जब भारत लालफीताशाही हटा अपने बुनियादी ढांचे दुरुस्त करे. ट्रंप ने एक दिन में आदेश जारी करके निवेश नियम लचीले कर दिये हैं और कंपनी कर घटा दिये हैं ताकि उद्योग-धंधे अमेरिका लौट सकें. सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकने के लिए भारत को तो उद्योग-धंधों की जरूरत अमेरिका से कहीं ज्यादा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)