डोनाल्ड ट्रंप की प्रेसीडेंसी और भारत
Donald Trump : राष्ट्रीय सुरक्षा संकटों के दौरान दोनों देशों के बीच विश्वास और तालमेल मजबूत रहेगा, जो रक्षा और खुफिया साझेदारी को और मजबूती देगा. पर ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' आर्थिक नीतियां, भारत के साथ व्यापार संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं.
Donald Trump : डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालते ही अमेरिकी इतिहास में दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बन गये हैं, जिन्होंने गैर-लगातार कार्यकाल के लिए चुने जाने का गौरव प्राप्त किया. अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप की वापसी वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव डालने वाली है. यह भारत के लिए अवसरों और चुनौतियों का मिश्रण प्रस्तुत करती है. ट्रंप की व्यापार, रक्षा और विदेशी संबंधों की नीतियां- विशेष रूप से दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत में- अमेरिका-भारत संबंधों की भविष्य की दिशा को आकार देंगी. पहले की प्रशासनिक नीतियों की तरह, चीन को लेकर साझा चिंताओं और क्षेत्रीय सुरक्षा व आर्थिक स्थिरता में बढ़ती रुचि के कारण दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध ट्रंप के कार्यकाल में और गहरे होने की संभावना है.
ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी में विशेष रूप से रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में निरंतर वृद्धि की संभावना है. चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर साझा चिंता दोनों देशों के लिए एक मजबूत एकीकृत कारक बनी हुई है. ट्रंप का क्वाड को मजबूत करने पर जोर भारत के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के साथ मेल खाता है. भारत को संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और खुफिया जानकारी साझा करने में अमेरिका से और अधिक समर्थन मिलने की उम्मीद है, जो भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ायेगा. ट्रंप की ‘शक्ति के माध्यम से शांति’ की नीति हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक अधिक मुखर अमेरिकी रुख में परिवर्तित हो सकती है, जो भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं के साथ मेल खाती है. इसके अलावा, पश्चिम एशिया में भी सहयोग बढ़ने की संभावना है, खासकर ऐसे समय में जब भारत-मध्य एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी पहलें चर्चा में हैं और इस्राइल-सऊदी अरब के संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयास जारी हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा संकटों के दौरान दोनों देशों के बीच विश्वास और तालमेल मजबूत रहेगा, जो रक्षा और खुफिया साझेदारी को और मजबूती देगा. पर ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ आर्थिक नीतियां, भारत के साथ व्यापार संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं. आयात पर शुल्क बढ़ाने जैसी उनकी संरक्षणवादी नीतियां आइटी, फार्मास्युटिकल्स और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं. हालांकि, ये नीतियां कुछ अवसर भी प्रदान करती हैं. चीन से आपूर्ति-शृंखला को विविधीकृत करने के लिए अमेरिकी कंपनियां वैकल्पिक गंतव्य खोज रही हैं, और भारत इस दिशा में एक संभावित विकल्प बन सकता है.
हालांकि, अमेरिका में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के प्रयास भारत पर अपने व्यापार अवरोधों को कम करने का दबाव डाल सकते हैं, जो घरेलू उद्योगों को प्रभावित कर सकता है. भारतीय आइटी और सेवा क्षेत्र, जो अमेरिकी ग्राहकों पर बहुत अधिक निर्भर है, ट्रंप की व्यापार युद्ध नीतियों के कारण अमेरिकी उपभोक्ता खर्च में कमी आने पर प्रभावित हो सकता है. भारत को इन आर्थिक नीतियों को सावधानीपूर्वक नेविगेट करना होगा, ताकि अवसरों का लाभ उठाने के साथ-साथ चुनौतियों को कम किया जा सके. ट्रंप की वापसी पारंपरिक ऊर्जा नीतियों में बदलाव का संकेत देती है, जिसमें तेल, गैस और कोयले के नियमन को कम करने पर जोर दिया जायेगा. यह दृष्टिकोण जो बाइडेन प्रशासन द्वारा अपनायी गयी अक्षय ऊर्जा साझेदारी के विपरीत है, जो भारत के जलवायु लक्ष्यों के साथ मेल खाती थी.
हालांकि, ट्रंप की नीतियां वैश्विक जीवाश्म ईंधन की कीमतों को स्थिर कर सकती हैं, जिससे भारत के ऊर्जा आयात को लाभ हो सकता है. इसके विपरीत, ये नीतियां अक्षय ऊर्जा सहयोग में प्रगति को धीमा कर सकती हैं. भारत के नीति निर्माताओं को हरित ऊर्जा पहलों को बनाये रखने के लिए रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा, जबकि अमेरिकी प्राथमिकताओं में बदलाव के साथ तालमेल बिठाना होगा. इतना ही नहीं, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर आव्रजन नीतियों, विशेष रूप से एच-1बी वीजा पर प्रतिबंधों को फिर से लागू किये जाने की संभावना है. यह भारत के आइटी क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. एच-1बी कार्यक्रम का बड़े पैमाने पर उपयोग करने वाले भारतीय पेशेवर और कंपनियां नयी बाधाओं का सामना कर सकती हैं, जिससे श्रम गतिशीलता प्रभावित होगी और अमेरिका में परिचालन करने वाली भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ सकती है. कड़ी आव्रजन नीतियां भारतीय कंपनियों को वैकल्पिक बाजारों में विस्तार करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं.
दक्षिण एशिया में ट्रंप की विदेश नीति क्षेत्रीय गतिशीलता को प्रभावित कर सकती है. आतंकवाद-रोधी प्रयासों पर पाकिस्तान के साथ जुड़ाव रखने की उनकी इच्छा, साथ ही अधिक जवाबदेही की मांग, क्षेत्रीय स्थिरता में भारत की रुचि के अनुरूप है. वहीं, चीन के खिलाफ उनकी मजबूत नीति-शुल्क, प्रतिबंध और कूटनीतिक दबाव के माध्यम से- भारत के प्रयासों का समर्थन करती है, जो क्षेत्र में चीनी प्रभाव का मुकाबला करना चाहता है. व्यापक भू-राजनीतिक क्षेत्र में, बाइडेन की तुलना में रूस के प्रति ट्रंप का कम टकराव वाला दृष्टिकोण भारत के लिए जटिलताओं को कम कर सकता है. यह पुनर्संतुलन भारत पर रक्षा और ऊर्जा संबंधों को नेविगेट करने के दौरान दबाव को कम कर सकता है. विदित हो कि भारत ने ट्रंप प्रशासन के साथ जुड़ाव बढ़ाने के प्रयास पहले ही शुरू कर दिये हैं.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ट्रंप के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए वाशिंगटन का दौरा कर रहे हैं. वह प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच एक प्रारंभिक बैठक की योजना बना रहे हैं, जो संभवतः पेरिस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक्शन समिट के दौरान या इस वर्ष मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान हो सकती है. जयशंकर भारत में क्वाड शिखर सम्मेलन की तैयारी भी कर रहे हैं, जिसमें चर्चाएं अमेरिकी विदेश मंत्री नामित मार्को रूबियो की पुष्टि पर निर्भर करेंगी. जयशंकर का प्रतिनिधिमंडल ट्रंप के सलाहकारों से मिलने की योजना भी बना रहा है. इस प्रकार, डोनाल्ड ट्रंप की वापसी अमेरिका-भारत संबंधों के लिए मिश्रित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है. ऐसे में ट्रंप प्रशासन के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि इसकी द्विपक्षीय साझेदारी निरंतर बढ़े, जो एक जटिल वैश्विक परिदृश्य में स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा दे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)