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ट्रंप के व्यापार युद्ध का असर पूरी दुनिया पर, पढ़ें पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत का आलेख

Donald Trump : ट्रंप प्रशासन ने चीनी उत्पादों पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाया है. उसने मेक्सिको और कनाडा से आयातित उत्पादों पर 25 प्रतिशत व्यापार शुल्क लगाने की घोषणा की थी, हालांकि कनाडा के ऊर्जा संसाधनों पर उसने 10 प्रतिशत शुल्क लगाने का ही एलान किया था.

Donald Trump : जैसी कि आशंका थी, दूसरी बार सत्ता में आते ही डोनाल्ड ट्रंप ने चीन, कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ शुल्क युद्ध छेड़ दिया है. ट्रंप का कहना है कि यह कदम अवैध प्रवासन और ड्रग्स तस्करी से उपजी चिंताओं को लेकर उठाया गया है. ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान में भी मुख्य रूप से इन दोनों मुद्दों को उठाया था. यही नहीं, चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद से ही इन वादों को पूरा करने की दिशा में कदम उठाने का संकेत ट्रंप दे रहे थे.

गौरतलब है कि अपने पहले राष्ट्रपति काल में भी ट्रंप ने चीन के साथ दो साल का व्यापार युद्ध शुरू किया था. तब दोनों देशों ने एक दूसरे के अरबों डॉलरों के सामान पर शुल्क लगाये थे, जिससे वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हुई थी और विश्व अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा था. ट्रंप प्रशासन ने चीनी उत्पादों पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाया है. उसने मेक्सिको और कनाडा से आयातित उत्पादों पर 25 प्रतिशत व्यापार शुल्क लगाने की घोषणा की थी, हालांकि कनाडा के ऊर्जा संसाधनों पर उसने 10 प्रतिशत शुल्क लगाने का ही एलान किया था. मेक्सिको और कनाडा ने भी अमेरिकी व्यापार शुल्क के बदले में जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की थी.

अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाने के जवाब में चीन ने भी कई अमेरिकी उत्पादों पर 15 फीसदी जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की, जो 10 फरवरी से प्रभावी होगा. साथ ही, उसने अमेरिकी सर्च इंजन गूगल की जांच की भी बात कही. चीन की ओर से कहा गया है कि अमेरिका का एकतरफा शुल्क बढ़ाना विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन है. उसने यह भी कहा है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम समस्याओं का हल करने में कोई मदद नहीं करेगा. इसके बजाय यह चीन और अमेरिका के बीच सामान्य आर्थिक और व्यापार सहयोग को नुकसान पहुंचायेगा.


हालांकि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदो और मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम के साथ अलग-अलग बातचीत में ट्रंप ने इन दोनों देशों पर शुल्क लगाये जाने के फैसले को लागू करने पर कम से कम एक महीने की रोक लगाने पर सहमति जतायी है. जबकि चीन पर लगाया गया व्यापार शुल्क मंगलवार से लागू हो गया है. हालांकि ट्रंप ने अगले कुछ दिनों में चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ बातचीत करने की योजना बनायी है. ट्रंप की इस पहल से विश्व स्तर पर आर्थिक अस्थिरता का एक नया दौर शुरू हो गया है.

‘अमेरिका प्रथम’ की नीति के साथ शुरू हुआ यह युद्ध विश्व व्यापार को नया रूप देने जा रहा है और उद्योगों तथा सरकारों को अपनी व्यापार रणनीतियों के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर कर दे रहा है. इसका परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन तात्कालिक तौर पर इससे आयात लागत में वृद्धि होगी, आपूर्ति शृंखला में रुकावट आयेगी और बहुराष्ट्रीय कारोबार में अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न होगी. वैश्विक शेयर बाजार तो ट्रंप के इस कदम से वैसे भी हिल गये हैं. मजबूत घरेलू बाजार होने के कारण अमेरिका पर भले ही इस व्यापार युद्ध का असर न पड़े, लेकिन कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों को, जहां जीडीपी में कारोबार की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत तक है, इससे काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. यही नहीं, मेक्सिको पर थोपे जाने वाले शुल्क का असर कमोबेश पूरे लैटिन अमेरिका में फैल सकता है. और शुरुआती स्तर पर भले ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसका असर न पड़े, लेकिन दीर्घावधि में ट्रंप की इस आक्रामकता का असर अमेरिकी बाजारों पर निश्चित रूप से पड़ेगा और उसे नुकसान होगा.


जहां तक चीन की बात है, तो वह 120 से भी अधिक देशों के लिए प्रमुख व्यापार भागीदार है और अमेरिका उनमें से सिर्फ एक है. इसके अलावा बार-बार व्यापार युद्ध का सामना करते रहने के कारण अब चीन ने जीडीपी में आयात-निर्यात की हिस्सेदारी बहुत कम कर दी है. ढाई दशक पहले तक उसकी जीडीपी में आयात-निर्यात की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत के आसपास थी, जो अब घट कर 37 फीसदी के आसपास रह गयी है. ऐसे में, 10 प्रतिशत व्यापार शुल्क उसे चुभेगा जरूर, लेकिन वह इस झटके को बर्दाश्त करने की स्थिति में है. ट्रंप के इस फैसले की यूरोपीय संघ ने आलोचना की है.

यूरोपीय संघ के प्रवक्ता ने खुली व्यापार व्यवस्था का समर्थन करते हुए कहा कि व्यापार शुल्क लगाने से आर्थिक अस्थिरता बढ़ती है और महंगाई में वृद्धि होती है. इस पर जब ट्रंप ने यूरोपीय संघ को धमकी दी, तो यूरोपीय नेताओं ने भी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ट्रंप ने व्यापार शुल्क का विस्तार यूरोपीय संघ तक किया, तो व्यापार युद्ध छिड़ सकता है, जो अटलांटिक के दोनों ओर के उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचायेगा.

यूरोपीय संघ ने भी कहा है कि अगर उसे निशाना बनाया गया, तो वह भी जवाब देगा. ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को भी धमकी दी है कि अगर उसने डॉलर से अलग जाकर अपनी अलग मुद्रा अपनायी, तो उस पर भारी शुल्क थोपा जायेगा. यह ठीक है कि ब्रिक्स देशों की अलग मुद्रा की मुहिम में भारत नहीं है, लेकिन अमेरिका के पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन ने रूस को अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली से बाहर कर दिया, और अब ट्रंप अलग मुद्रा अपनाने की रूस-चीन की मुहिम पर धमकी दे रहे हैं, तो यह ठीक नहीं है. ब्रिक्स आज अगर अलग मुद्रा की बात कर रहा है, तो इसके लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है.


हमारे यहां मीडिया में यह बताया जा रहा है कि चीन और अमेरिका द्वारा एक दूसरे पर व्यापार शुल्क थोपने का फैसला भारत के लिए अच्छा है. कहा यह जा रहा है कि इससे भारतीय निर्यात में उछाल आने वाला है, क्योंकि दोनों देशों की ओर से एक दूसरे के सामान पर शुल्क लगाने के बाद वे महंगे हो जायेंगे और ऐसे में, भारत के पास दोनों ही बाजारों में अपने सामान का निर्यात बढ़ाने का सुनहरा मौका मिलेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता. ट्रंप की नीति अमेरिका को मजबूत और महान देश बनाने की है. अपने हित में वह किसी भी देश के खिलाफ कदम उठा सकते हैं. अपने पिछले राष्ट्रपति काल में ट्रंप ने भारत के खिलाफ भी कदम उठाये थे. लिहाजा यह मानने का कोई कारण नहीं है कि ट्रंप की आक्रामकता से उत्पन्न हो रही व्यापार युद्ध की स्थिति भारत के लिए लाभदायक होगी. अच्छी बात यह है कि भारत को ट्रंप के रवैये के बारे में न सिर्फ मालूम है, बल्कि वह अमेरिका की तरफ से किसी भी असहज करने वाली स्थिति के लिए तैयार है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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