भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच तनातनी में फिलहाल नरमी के संकेत हैं. कई हफ्ते से जारी चीन की धौंस के सामने जिस मुस्तैदी से भारत खड़ा हुआ है, वह एक मिसाल है. हमारी सेना के जज्बे और राजनीतिक नेतृत्व के साहस ने चीन को फिर यह संदेश दे दिया है कि पड़ोसी होने के नाते सहकार व सहयोग का हमेशा स्वागत है, लेकिन हमारी धरती को कब्जे में लेने की कोशिश का मुकाबला पूरी ताकत के साथ होगा. बहरहाल, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत के बाद तनाव में कमी तथा सैन्य टुकड़ियों का पीछे हटना एक अच्छी खबर है.
उल्लेखनीय है कि भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया में अजीत डोवाल और वांग यी अपने-अपने देशों के विशेष प्रतिनिधि हैं. अब जब शीर्ष स्तर पर यह मसला है, तो हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि भविष्य में चीन न तो अतिक्रमण की कोशिश करेगा और न ही हमारे सैनिकों पर धोखे से वार करेगा, लेकिन इस उम्मीद को लेकर भारत निश्चिंत नहीं हो सकता है, क्योंकि एक रणनीतिक समझौते से चीन के रवैये में बदलाव नहीं हो सकता है.
वह न केवल विभिन्न क्षेत्रों पर अपनी अवैध दावेदारी के द्वारा भारत की संप्रभुता को चुनौती देता रहा है, बल्कि अपने हर एक पड़ोसी देश के साथ उसका टकराव है. चीन की समुद्री सीमाओं से लगे अन्य देशों के आधिकारिक द्वीपों पर दावा करने का मामला हो या फिर बहुत पुराने चीनी राजवंशों के शासन का हवाला देकर अनेक पड़ोसी देशों के इलाकों को अपना बताने की आदत हो, चीन दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना रणनीतिक, कूटनीतिक और व्यापारिक वर्चस्व स्थापित करने का इरादा रखता है.
इस इरादे को पूरा करने के लिए वह केवल अपनी ताकत का ही सहारा नहीं ले रहा है, बल्कि सस्ते और कम गुणवत्ता के सामानों से पड़ोसी देशों के बाजार को पाटने की नीति पर भी चल रहा है. एशिया के अलावा अन्य महादेशों में वह अनेक देशों को कर्ज देकर अपने पक्ष में करने की रणनीति भी अपना रहा है. यदि भारत के संदर्भ में बात करें, तो उसकी वजह से हमारी अर्थव्यवस्था और औद्योगिक उत्पादन पर गहरा नकारात्मक असर पड़ा है. इसके अलावा चीन साइबर हमलों और वैश्विक मंचों पर दबाव बनाने की कोशिशों में भी लगा है.
गलवान घाटी में हमारे बहादुर सैनिकों ने उसे यह तो संकेत दे दिया है कि उसकी ताकत की धौंस का मुकाबला पूरी ताकत के साथ किया जायेगा, लेकिन यह समस्या केवल सैन्य ताकत से नहीं हल होगी. हमें अपने उत्पादन को बेहतर कर चीन पर निर्भरता को कम करना है. इससे न केवल चीन को आर्थिक चोट की जा सकेगी, बल्कि देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर कर संसाधनों के स्तर पर भी क्षमता का संवर्धन हो सकेगा. हमें सक्रिय भी रहना है और सतर्क भी.