मधुरेंद्र सिन्हा,वरिष्ठ पत्रकार
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दुनियाभर में तबाही मचाने के साथ ही कोरोना वायरस ने भारत को भी जबरदस्त तरीके से प्रभावित किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने तो 22 मार्च को तीन सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा की, लेकिन उसके पहले से ही लोग दहशत में आ गये थे. दहशत के कारण ही लोग-बाग घर से निकलने से कतराने लगे थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद हालात और बिगड़ गये. बड़े-छोटे कारखानों से लेकर बाजार तक बंद हो गये. काम-काज ठप हो गया और अर्थव्यवस्था ठहर गयी.
भारत की धीमी पड़ रही अर्थव्यवस्था बजाय उबरने के और नीचे गिरने लगी. ऐसे बुरे हालात में उसे और देश को अंधेरे से बाहर निकालने में इ-कॉमर्स बहुत काम आया. मार्च में तो लगा कि बिजनेस का यह नया मॉडल भी ध्वस्त हो जायेगा, लेकिन अप्रैल के मध्य से इसने जबरदस्त छलांग लगायी और अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन देने का काम किया. भारत ही नहीं, सारी दुनिया में इ-कॉमर्स कंपनियों ने आवश्यक से लेकर सामान्य वस्तुओं तक की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
इस भयावह और बेहद कठिन परिस्थितियों में इ-कॉमर्स और ऑनलाइन कंपनियों की टीम ने अपनी जान की परवाह किये बगैर लोगों के घरों तक सुरक्षित ढंग से सामान पहुंचाया. भारत सरकार के उपभोक्ता कार्य मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों से इन कंपनियों के काम-काज को सुचारु रूप से चलने देने का आग्रह किया था. इसका ही नतीजा था कि देश के कई शहरों में कर्फ्यू जैसे हालात के बावजूद आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बहाल रही.
हालांकि कई राज्यों में उत्साही अधिकारियों और पुलिस द्वारा आवाजाही में अवरोध पैदा करने के कारण शुरुआती दौर में इन कंपनियों को कठिनाइयों से जूझना पड़ा, लेकिन बाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद उन्हें राहत दी गयी. आधुनिक टेक्नोलॉजी और बेहतरीन सप्लाइ-चेन मैनेजमेंट के जरिये इन कंपनियों ने दिखा दिया कि देश के बड़े हिस्से में वे सामान पहुंचा सकते हैं. इसका ही नतीजा था कि लोगों को अपनी जरूरत का सामान घर बैठे मिलता रहा. कई बार तो ऐसी हालत तो हो गयी कि कई सामान स्टॉक से बाहर हो गये, क्योंकि उन्हें बनाने वाली कंपनियां उतना उत्पादन नहीं कर पा रही थीं. मास्क और हैंड सैनिटाइजर पर यह बात खास तौर से लागू हो रही थी.
आरंभ में रेड जोन की परिभाषा बहुत विस्तृत थी, जिससे इन कंपनियों को सामान भेजने में काफी दिक्कतें हुईं, लेकिन जून के अंत में नयी परिभाषा आने के बाद रेड जोन का दायरा छोटा होता चला गया, जिससे लगभग सभी जगह आपूर्ति संभव हो पायी. फ्लिपकार्ट, अमेजाॅन, स्नैपडील, मिंत्रा, ग्रॉफर्स, बिग-बास्केट जैसी इ-काॅमर्स कंपनियां पहले जहां महानगरों पर ही फोकस करती थीं, कोराना काल में टीयर टू और थ्री नगरों में भी उनकी आपूर्ति बढ़ती गयी. यहां तक कि छोटे शहरों में भी इनसे सामान मंगाये और भेजे जाने लगे. आज देश के कोने-कोने में इनका कार्यक्षेत्र है.
इस दौरान एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह हुई कि देश के सुदूर इलाकों के लघु उद्योगों को भी इनके जरिये अपना सामान बेचने का मौका मिला. वैसे उद्यमी, जिनके पास मार्केटिंग का कोई जरिया नहीं था, वे भी आज अपने उत्पाद बेच पा रहे हैं. जैसे-जैसे स्थिति सामान्य होती जायेगी, इन उद्यमियों के लिए रास्ता और खुलता जायेगा. कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स जैसे कई व्यापारिक संगठनों का कहना है कि ये कंपनियां उनके पेट पर लात मार रही हैं और ग्राहक उन तक फटक नहीं रहे हैं, लेकिन आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते.
देश में रिटेल कारोबार कुल 800 अरब डॉलर का है, लेकिन इन कंपनियों की घुसपैठ सिर्फ 3.5 प्रतिशत की है. इसलिए इनसे परंपरागत दुकानदारों को खतरा नहीं है. इसके अलावा, संक्रमण काल में जब लोग दुकानों में जाना नहीं चाह रहे थे, तब उनके लिए जरूरी सामानों की आपूर्ति का काम यही कंपनियां करती रहीं. इतना ही नहीं, इन्हें बिजनेस में बने रहने के लिए इस समय अरबों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. हालांकि जैसे-जैसे ग्राहकों के पास पैसा आयेगा, इस स्थिति में बदलाव होगा.
कोरोना काल ने इ-कॉमर्स कारोबार को मजबूती प्रदान की है, क्योंकि यह घरों में बंद लोगों के काम आया. उससे भी बड़ी बात यह कि इसमें पारदर्शिता है, सामान लौटाने का प्रावधान भी है. इससे आशा की जा सकती है कि यह कारोबार आने वाले समय में तेजी से बढ़ेगा, क्योंकि इसमें कई और भी कंपनियां जुड़ी हैं तथा स्थानीय स्तर पर भी ऑनलाइन व्यापार हो रहा है. एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अगले पांच वर्षों में इ-रिटेल मार्केट में 30 से 35 करोड़ खरीदार होंगे. वर्ष 2025 तक ये 100 से 120 अरब डॉलर तक का सामान हर साल बेचने लगेंगी. अमेजॉन ने तो लोकल दुकानदारों से हाथ मिलाने की योजना भी बनायी है, ताकि उनका माल भी बिके. इन्हें ‘लोकल शॉप्स ऑन अमेजॉन’ का नाम दिया गया है.
इसी तरह फ्लिपकार्ट ने भी लगभग 37,000 स्थानीय किराना दुकानदारों से करार किया है. उसके कारोबार का 58 प्रतिशत टीयर टू शहरों से आता है. इन बड़ी इ-कॉमर्स कंपनियों को मालूम है कि स्थानीय दुकानों को साथ लेकर चलने में उन दोनों का फायदा है. इससे दोनों ही तरक्की कर सकेंगे. दूसरी बात, दुकानों, शोरूम, मॉल आदि जाकर शॉपिंग करने की लोगों की आदत कभी खत्म नहीं होगी, क्योंकि यह हमारी तफरीह और सैर-सपाटे का भी एक हिस्सा है. बारगेनिंग और टाइम पास करना हम भारतीयों का शगल भी तो है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)