संकट में धरती

केवल 2021 में आयी आपदाओं में सौ अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है. वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है.

By संपादकीय | May 20, 2022 8:17 AM
an image

जलवायु संकट लगातार गहराता जा रहा है. विश्व मौसम संगठन ने बताया है कि 2021 में धरती के वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता बढ़ी है, समुद्र का जल स्तर बढ़ने के साथ सामुद्रिक तापमान और लवण मात्रा में भी वृद्धि हुई है. ये चारों बिंदु जलवायु परिवर्तन के मुख्य सूचक हैं. उल्लेखनीय है कि 2021 न केवल सबसे अधिक गर्म दस वर्षों में एक रहा था, बल्कि बीते साल विश्वभर में बाढ़ व सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं, जंगली आग, अत्यधिक गर्मी, ग्लेशियरों के पिघलने की गति आदि में भी बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गयी.

इस साल के पहले चार महीनों में तापमान रिकॉर्ड स्तर पर रहा है. संगठन की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि 2015 से 2021 तक के सात साल सबसे अधिक गर्म साल रहे हैं. पिछले साल औसत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.1 डिग्री सेल्सियस ऊपर रहा था. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने कहा है, यह रिपोर्ट इंगित करती है कि मनुष्यता जलवायु चुनौती के समाधान में विफल रही है.

धरती का बढ़ता तापमान कोई आम समस्या नहीं है, बल्कि इससे मनुष्य, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता है. केवल 2021 में आयी आपदाओं में सौ अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है. वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. जलवायु सम्मेलनों और विभिन्न बैठकों में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल घटाने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने की बातें लगातार होती रही हैं. इस संदर्भ में कोशिशें भी हो रही हैं, लेकिन वह संतोषजनक नहीं हैं.

एनवॉयरमेंट रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक नये अध्ययन में कहा गया है कि अगर वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखना है, तो लगभग आधे जीवाश्म इंधन उत्पादन स्थलों को पहले बंद करना होगा. पिछले साल इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने कहा था कि जीवाश्म ईंधन उत्पादन को बढ़ाने के नये प्रयास नहीं होने चाहिए. जब एजेंसी के प्रस्ताव को अनसुना कर दिया गया है, तो जर्नल के सुझाव पर अमल को लेकर आशावादी होना मुश्किल है.

ऐसे ईंधनों से होनेवाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से तापमान बढ़ने के साथ प्रदूषण में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. स्टॉकहोम एनवॉयरमेंट इंस्टीट्यूट के ताजा शोध का निष्कर्ष है कि दुनिया उबलने के कगार पर है और मनुष्यता को प्रकृति के साथ संबंधों को फिर से परिभाषित करना होगा. स्टॉकहोम में जून के शुरू में संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण बैठक होनी है.

आशा है कि इसमें कोई ठोस संकल्प लिया जायेगा. जलवायु परिवर्तन की समस्या वैश्विक है, इसलिए उसका समाधान भी वैश्विक होगा. विकसित और धनी देश ऐतिहासिक रूप से इसके लिए उत्तरदायी हैं. विकासशील देशों ने विभिन्न बैठकों में बार-बार यह मांग रखी है कि धनी देश वित्तीय और तकनीकी सहयोग मुहैया करायें ताकि विकासशील एवं अविकसित देश स्वच्छ ऊर्जा का विकास कर सकें. भारत इस संदर्भ में उल्लेखनीय योगदान कर रहा है, जिसे विस्तार दिया जाना चाहिए.

Exit mobile version