Economic Development: अभी कार्यबल में महिला भागीदारी की दर 37 प्रतिशत है. स्वायत्त संस्था ‘द नज इंस्टीट्यूट’ की ताजा रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में 14 ट्रिलियन डॉलर के योगदान के लिए महिला भागीदारी को 70 प्रतिशत करना होगा. उस वर्ष तक हमें अपने कार्यबल में 40 करोड़ महिलाओं को जोड़ना होगा. विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का आकार 30 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए. आकलन है कि उस अवधि तक 11 करोड़ महिलाएं ही कार्यबल से जुड़ पायेंगी.
महिलाओं की कम भागीदारी के अनेक कारण हैं. विकास के बावजूद अभी भी हमारे समाज में यह मान्यता आम है कि महिलाओं को घर-परिवार की देखभाल करनी चाहिए. इस तरह के दायित्वों के लिए उन्हें मौद्रिक भुगतान नहीं किया जाता है. बहुत सी महिलाएं कृषि कार्यों या पारिवारिक उद्यमों से जुड़ी हुई हैं. ऐसे कामों में भी उन्हें मामूली कमाई हो पाती है. औपचारिक क्षेत्र की बात करें, तो रिपोर्ट में बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के रोजगार से निकाले जाने की आशंका सात गुना अधिक होती है. साल 2019 में जो महिलाएं कार्यबल में थीं, उनमें से लगभग 50 प्रतिशत ने 2020 में काम छोड़ दिया.
महिलाओं के एक बड़ी चुनौती यह भी है कि पुरुषों की तुलना में काम पर लौटने की संभावना 11 गुना कम है. महिलाओं के जिम्मे बहुत से ऐसे काम हैं, जिनमें आगे बढ़ने की गुंजाइश ही नहीं होती. पुरुषों के मुकाबले उन्हें वेतन-भत्ते भी कम मिलते हैं. उदाहरण के लिए, निर्माण में कुल श्रमबल में 12 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं, पर उन्हें अक्सर पुरुषों से कम मेहनताना दिया जाता है. भेदभाव, सुरक्षा का अभाव और बंदिशें भी उनकी राह में बड़े अवरोध हैं. यदि हमें भारत को समृद्ध देशों की कतार में खड़ा करना है, तो महिलाओं को आगे लाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे. स्कूलों से लेकर उच्च शिक्षा तक छात्राओं का नामांकन बढ़ रहा है. यह संतोषजनक है, पर इसके साथ-साथ हमें कौशल विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. हर जगह महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की जरूरत है.