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चीन पर आर्थिक दबाव जरूरी

अक्टूबर, 2016 में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चीन द्वारा पाकिस्तान का साथ देने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं ने चीनी माल का बहिष्कार किया था. इसी तरह जुलाई, 2017 में सिक्किम के डोकलाम में चीनी सेना के सामने भारतीय सेना को खड़े करने पर जब चीन ने युद्ध की धमकी दी थी, तो भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का जोरदार परिदृश्य बना था.

डॉ. जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री

article@jlbhandari.com

इन दिनों लद्दाख सीमा पर भारत और चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी

सैनिकों की बढ़ी उपस्थिति के बीच तनातनी है. इससे पूरे भारत में चीन

विरोधी माहौल है. सोशल मीडिया मंचों पर अभियान शुरू हुआ है कि भारतीय

दुकानदार और नागरिक चीन में उत्पादित वस्तुओं का बहिष्कार कर उसके ऊपर

आर्थिक दबाव बढायें. अक्टूबर, 2016 में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के

बाद चीन द्वारा पाकिस्तान का साथ देने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं ने चीनी

माल का बहिष्कार किया था. इसी तरह जुलाई, 2017 में सिक्किम के डोकलाम में

चीनी सेना के सामने भारतीय सेना को खड़े करने पर जब चीन ने युद्ध की धमकी

दी थी, तो भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का जोरदार परिदृश्य बना था.

इन दोनों घटनाक्रमों के बाद भारतीय बाजार में चीनी उपभोक्ता सामान की

बिक्री में करीब 25 फीसदी की कमी आयी थी और चीन से आयात की दर भी घटी थी.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि इस दशक

में ‘आत्मनिर्भर भारत’ का लक्ष्य देश को नयी ऊंचाइयों पर ले जायेगा.

उन्होंने संकेत दिया कि देश में ही निर्मित हो रही वस्तुओं को आयात नहीं

करने की जरूरत पर भी विचार होगा. उन्होंने कहा कि कुटीर और लघु उद्योग

स्थापित करके उन लाखों प्रवासी कामगारों को रोजगार और स्वरोजगार के अवसर

देने की जरूरत है, जो कस्बों और गांवों में पहुंचे हैं. ऐसे कई आयातित

उत्पाद हैं, जिनकी वजह से ईमानदार करदाताओं का व्यर्थ खर्च होता है. उनके

विकल्प का निर्माण भारत में आसानी से हो सकता है और देश को आत्मनिर्भर

बनाने की ओर बढ़ाया जा सकता है. जैसे-जैसे भारत-चीन व्यापार बढ़ता गया

है, वैसे-वैसे भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं का आयात भी बढ़ता गया है.

दोनों देशों के बीच व्यापार 2001-02 में महज तीन अरब डॉलर था, जो 2018-19

में करीब 87 अरब डॉलर पर पहुंच गया. भारत ने चीन से करीब 70 अरब डॉलर

मूल्य का आयात किया और चीन को करीब 17 अरब डॉलर का निर्यात किया. सरल

शब्दों में हम कह सकते है कि हम चीन को होनेवाले निर्यात की तुलना में

चार गुना अधिक आयात करते हैं. चिंताजनक यह भी है कि हमारे कुल विदेश

व्यापार घाटे का करीब एक तिहाई व्यापार घाटा चीन से संबंधित है.

चूंकि चीन ने नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिविधियां बढ़ायी है, अतएव इस

मुद्दे को न केवल सरकार के द्वारा, वरन प्रत्येक भारतीय के द्वारा एक

चुनौती के रूप में स्वीकार करना होगा. जहां एक ओर देश के करोड़ों

उपभोक्ताओं द्वारा चीनी वस्तुओं के विरोध की नीति पर आगे बढ़ा जा सकता

है, वहीं दूसरी ओर सरकार को भी चीन से मुकाबले की आर्थिक रणनीति बनानी

होगी. चीन की अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से पांच गुना बड़ी है,

लेकिन भारत के ऐसे कई चमकीले आर्थिक पक्ष हैं, जिनके आधार पर भारत चीन पर

आर्थिक दबाव डाल सकता है. इस समय भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता

बाजार है और सबसे तेजगति से आगे बढ़ रहा है. ऐसे में यदि भारत में

स्वदेशी भावना से चीनी सामानों पर कुछ नियंत्रण लग जाये, तो यह चीन के

लिए बड़ी चुनौती होगा.

चीन के भारत विरोधी कदमों को रोकने के लिए चीन पर आर्थिक दबाव की रणनीति

कारगर होने की व्यापक संभावनाएं हैं. चीन की आर्थिक और औद्योगिक

मुश्किलों के बीच भारत के विनिर्माण के क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावना

के कई बुनियादी कारण भी दिख रहे हैं. कई आर्थिक मानकों पर भारत अभी भी

चीन से आगे है. विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में भारत ने उभरती हुई आर्थिक

शक्ति के तौर पर पहचान बनायी है. भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है.

आइटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक,

केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक

व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं. ब्लूमबर्ग द्वारा प्रकाशित

मई, 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के कारण चीन के

प्रति नाराजगी से वहां कार्यरत कई वैश्विक निर्यातक कंपनियां अपने

मैन्युफैक्चरिंग का काम पूरी तरह या आंशिक रूप से बाहर स्थानांतरित करने

की तैयारी कर रही हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कंपनियों को आकर्षित

करने के लिए भारत इन्हें बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर काम

कर रहा है. खासतौर से जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन की कई

कंपनियों भारत को प्राथमिकता देते हुए दिख रही हैं. ये चारों देश भारत के

टॉप-10 ट्रेडिंग पार्टनर में शामिल हैं.

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारत आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़कर चीन

से आयात में कमी कर सकता है. मई में घोषित नये आर्थिक पैकेज के तहत छोटे

उद्योग-कारोबार के लिए लोकल के लिए वोकल होने की जो संकल्पना है, उससे

स्थानीय एवं स्वदेशी उद्योगों को भारी प्रोत्साहन मिलेगा. वोकल फॉर लोकल

अभियान से मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को नयी ऊर्जा मिलने की

उम्मीद है. यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना के संकट में जब दुनिया की

बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ढह गयी हैं, तब भी लोकल यानी स्थानीय आपूर्ति

व्यवस्था, स्थानीय विनिर्माण, स्थानीय बाजार देश के बहुत काम आये हैं.

कोविड-19 के बीच पूरे देश में जो एकजुटता और चीन विरोधी माहौल है, उसके

मद्देनजर हम आत्मनिर्भरता की चुनौतियों का समाधान निकालने की स्थिति में

हैं.

कई वस्तुओं का उत्पादन बहुत कुछ आयातित कच्चे माल और आयातित वस्तुओं

पर आधारित है, खास तौर से दवाई, मोबाइल, चिकित्सा उपकरण, वाहन तथा

इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग. इस समय मैनुफैक्चरिंग इकाइयों के लिए बड़ी

मात्रा में कच्चा माल चीन से आता है. अतएव सबसे पहले देश में ऐसे कच्चे

माल का उत्पादन शुरू करना होगा. यह कोई बहुत कठिन काम नहीं है क्योंकि

ऐसे विशिष्ट कच्चे माल के उत्पादन में विशेष कुशलता के साथ बड़ी मात्रा

में संसाधनों की रणनीति के साथ सरकार आगे बढ़ती हुई दिखायी दे रही है. हम

उम्मीद करें कि चीन के द्वारा लद्दाख में सैन्य गतिविधियां बढ़ाने के

परिप्रेक्ष्य में चीन पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए करोड़ों भारतीय

उपभोक्ता और भारतीय उद्यमी-कारोबारी स्वदेशी की भावना के साथ आगे आयेंगे.

ऐसे में करोड़ों देशवासियों की चीन के उत्पादों के बहिष्कार की रणनीति

चीन के भारत विरोधी कदमों को नियंत्रित करने में सार्थक भूमिका निभा सकती

है.

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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