अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती के बीच विकसित भारत की उड़ान पर नजर

Economy News : इस साल के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 4.8 प्रतिशत रखा गया है, जो विगत जुलाई के बजट में तय किये गये लक्ष्य से कम है. हालांकि 2025-26 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य और भी कम 4.5 फीसदी रखा गया है.

By जीएन बाजपेयी | February 12, 2025 8:50 AM

Economy News : आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती ने नीति निर्माताओं को परेशान किया और लोगों के बीच बहस भी हुई. अनेक आलोचकों ने मांग में आयी कमी को सुस्ती का मुख्य कारण बताया. वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. बजट तैयार करते समय नीति निर्माताओं के सामने मुख्य प्रश्न यह था : धुंधले आर्थिक भविष्य के बीच, जिसे बदलते वैश्विक परिदृश्य ने और भी बदतर बना दिया है, सरकार विकसित भारत का उद्देश्य कैसे सुनिश्चित कर सकती थी? घरेलू मोर्चे पर सुस्ती की स्थिति कमोबेश बदलती दिख रही है. लेकिन वैश्विक मोर्चे पर अर्थव्यवस्था कठोर अमेरिकी व्यापार नीतियों, मजबूत होते डॉलर और भू-राजनीतिक दोहरेपन से जूझ रही है. यह स्वीकार करना चाहिए कि इस बार के बजट को डिजाइन करना बहुत कठिन था. ऐसे में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण व्यापक आर्थिक स्थिरता कायम करने, निवेश के पक्ष में माहौल बनाने और उपभोग बढ़ाने जैसे असंभव समझने वाले तीन उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हुईं, तो यह कम बड़ी बात नहीं है.


इस साल के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 4.8 प्रतिशत रखा गया है, जो विगत जुलाई के बजट में तय किये गये लक्ष्य से कम है. हालांकि 2025-26 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य और भी कम 4.5 फीसदी रखा गया है. मौद्रिक साख का पता इससे भी चलता है कि जीडीपी में कर्ज की जो हिस्सेदारी 2024-25 में 57.1 प्रतिशत है, उसमें अगले वित्त वर्ष में एक फीसदी की कमी की जानी है, और 2030 तक इसे घटाकर 50 फीसदी किया जाना है. बजट में कुल उधारी 14.83 ट्रिलियन है, पिछले बजट की तुलना में इसमें मात्र 5.6 फीसदी की वृद्धि है. नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 10.1 फीसदी आंकी गयी है, जिससे राजस्व और खर्च के आकलन को स्वाभाविक ही प्रेरणा मिलती है, और यह रिजर्व बैंक को भी संतुलनकारी भूमिका निभाने की दिशा में यह संदेश है. सार्वजनिक निवेश में वृद्धि का सिलसिला इस बजट में भी जारी रहा. वित्त वर्ष 2019 में यह जीडीपी का 1.5 प्रतिशत था, जो इस बजट में जीडीपी का 3.2 फीसदी है. पिछले चार साल में इसमें दोगुनी वृद्धि हुई है. अगले साल के बजट में इसका आवंटन 11.2 ट्रिलियन किया गया है, जो पिछले साल के संशोधित आकलन से 10.9 प्रतिशत ज्यादा है. ढांचागत निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी में पूंजीगत निवेश बढ़ेगा.


बजट में टैक्स कटौती बढ़ाकर बजट का 0.3 फीसदी किया गया है, जिससे निश्चित रूप से उपभोग को गति मिलेगी. आयकर के मद में एक लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की कटौती ने मध्यवर्ग के दो करोड़ से भी अधिक आयकरदाताओं के, जिन्हें इसका सीधा लाभ मिलेगा, चेहरे पर चमक ला दी है. अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि टैक्स में 80 प्रतिशत की कटौती मांग बढ़ाने और 20 फीसदी की कटौती बचत के लिए की गयी है. बजट में उपभोग को गति देने की दिशा में उठाया गया यह कदम वस्तुत: उन आलोचकों को जवाब है, जिनका कहना था कि पिछले साल उपभोग की मांग हतोत्साहित हुई है.

इस बजट के प्रस्तावों को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है : अल्प अवधि, मध्य अवधि और दीर्घावधि. अल्प अवधि में बजट जीडीपी ग्रोथ की भरपाई करता है, मध्य अवधि में यह उच्च जीडीपी वृद्धि दर के टिकाउपन की बात करता है और दीर्घावधि में यह समृद्धि के अवसर तैयार करता है. यह बजट कृषि, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र समेत अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं को कवर करता है. यह ग्रामीण भारत के साथ-साथ शहरी भारत के कल्याण को भी प्रोत्साहित करता है, और इस अर्थ में समावेशी है. जबकि अर्थव्यवस्था के छह क्षेत्रों में रूपांतरकारी सुधार प्रस्तावित किये गये हैं. ये क्षेत्र हैं-ऊर्जा, खनन, पेयजल समेत शहरी विकास, वित्तीय क्षेत्र, इज ऑफ डुइंग बिजनेस व लिविंग तथा टैक्स. मेडिकल टूरिज्म समेत पर्यटन, जिसमें कुल 50 पर्यटन स्थलों की पहचान की गयी है, चमड़ा तथा वस्त्र उद्योग और समुद्री उत्पादों पर विशेष फोकस किया गया है.

कृषि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के ये विभिन्न क्षेत्र रोजगार के लाखों अवसर उपलब्ध करायेंगे. तमाम बजट प्रस्तावों में कृषि को सर्वोच्च वरीयता दी गयी है, जिसमें वृद्धि, उत्पादकता और किसानों की आय पर अधिक जोर है. आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए अरहर, उड़द और मसूर पर राष्ट्रीय मिशन, अधिक उत्पादन तथा जलवायु प्रतिरोधी बीज तथा स्थिर उत्पादकता को देखते हुए कपास के उत्पादन में वृद्धि इन क्षेत्रों में समन्वित प्रयास उपलब्ध करायेंगे. कम कृषि उत्पादकता वाले 100 जिलों में धन-धान्य योजना, जिसके तहत वहां समेकित कृषि विकास का लक्ष्य है, देश के 1.7 करोड़ किसानों को लाभान्वित करेगी. नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन के तहत लघु उद्यमियों के लिए क्रेडिट गारंटी में वृद्धि, 27 चुने हुए क्षेत्रों में स्टार्ट-अप को एक फीसदी गारंटी फीस के साथ कर्ज की सुविधा, सावधि कर्ज में 20 करोड़ की वृद्धि तथा पांच लाख रुपये तक के लिए क्रेडिट कार्ड की सुविधा आदि से एमएसएमइ क्षेत्र को व्यापक लाभ मिलेगा. स्वच्छ टेक इंजीनियरिंग से भी एमएसएमइ क्षेत्र को लाभ मिलेगा. इसमें टॉय मैन्युफैक्चरिंग हब और फुटवियर मैन्युफैक्चरिंग आदि को भी शामिल किया जायेगा. नेशनल एक्सपोर्ट मिशन के तहत सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाले एसएमइ और एमएसएमइ क्षेत्र निर्यात में वृद्धि करेंगे.


टियर 2 और टियर 3 शहरों में ग्लोबल कैपिबिलिटी सेंटर की स्थापना से इन शहरों का विकास होगा, पेशेवरों को अपने घरों के आसपास रोजगार की सुविधा मिलेगी, मेट्रो शहरों पर दबाव घटेगा तथा विदेश से निवेश मिलेगा. बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआइ की अनुमति समेत अनेक कदम बड़ी मात्रा में एफडीआइ आकर्षित करेंगे. स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसे क्षेत्रों में भी पर्याप्त आवंटन किया गया है. मेडिकल कॉलेजों तथा आइआइटी में सीटें बढ़ायी गयी हैं, तो वित्त वर्ष 2026 तक 40,000 किफायती मकान तैयार करने का लक्ष्य है. नवाचार, डिजिटल रूपांतरण, कृत्रिम मेधा के विकास और डिजिटल इको सिस्टम से भारत विकसित देशों की बराबरी कर पायेगा. बजट में निश्चित तौर पर कमियां भी हैं. कुछ राज्यों की मांग पूरी नहीं हुई, लेकिन केंद्र के साथ बेहतर साझेदारी से आर्थिक वृद्धि दर दो अंकों में पहुंच सकत है. जब आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आने लगती है, तब अर्थशास्त्री वित्तीय सुदृढ़ीकरण के बजाय खर्च बढ़ाने की बात कहते हैं. कुल मिलाकर, सीमित संसाधनों के बीच बजट में संतुलन बनाने और ज्यादा लाभ उठाने की ईमानदार कोशिश की गयी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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