बढ़ रहा है चीन का अड़ियल रवैया
पहले, तनाव के दौरान भारत की मांग रहती थी कि पूर्व की स्थिति को बहाल किया जाये. इस बार चीन ने बड़ी संख्या में फौज की तैनाती बढ़ायी और सीमा की स्थिति में परिवर्तन की कोशिश की. इसके चलते दोनों के बीच विवाद गहराता गया.
डॉ संजीव कुमार रिसर्च फेलो,
इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स
delhi@prabhatkhabar.in
पिछले वर्ष मई से ही सीमा पर चीन के साथ तनाव की स्थिति बरकरार है. यह समस्या चीन की तरफ से शुरू की गयी है. तनाव के मद्देनजर चीन ने बड़ी तादाद में फौज की तैनाती की हुई है. हालांकि, सीमा पर शांति बरकरार रखने के लिए दोनों देशों के बीच पूर्व में समझौते हुए थे, लेकिन चीन की तरफ से इसका उल्लंघन किया गया. वर्ष 1993 और 1996 में हुए समझौतों को दोनों पक्ष मानते रहे हैं. इसी के चलते दोनों ही देशों के संबंधों में लंबे अरसे तक स्थिरता बरकरार रही.
लेकिन, चीन ने अब इन समझौतों के खिलाफ काम किया है. सीमा पर सैनिकों का जमावड़ा बढ़ने से तनाव गहरा हो गया है. चीन के उद्देश्यों को समझना थोड़ा मुश्किल है. हालांकि, इसे लेकर कई तरह के आकलन हुए हैं. हाल ही में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने भी इस संबंध में एक महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया है. इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा है कि यह समझना अभी मुश्किल है कि चीन का रवैया क्यों बदला.
मौजूदा तनाव को देखते हुए बहुत सारे विश्लेषण हुए हैं और चीन में भी इस मसले पर चर्चाएं हुई हैं. खासकर, उनके आंतरिक हालातों को देखें और उसका विश्लेषण करें, तो यह स्पष्ट है संप्रभुता के मुद्दे पर शी जिनपिंग और वहां की लीडरशिप काफी अाक्रामक है. हालांकि, भारत के संबंध में कोई अाक्रामक बयान तो नहीं आया है, लेकिन कुल मिलाकर संप्रभुता के मसलों पर उन लोगों ने कड़ा रुख अख्तियार किया हुआ है.
विदेशमंत्री एस जयशंकर का बयान काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने आपसी संबंधों की मजबूती के लिए तीन अहम बातों का जिक्र किया है. उन्होंने कहा है कि पारस्परिक हितों, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक संवेदनाओं की कद्र करना जरूरी है. विदेशमंत्री ने एक आठ सूत्री प्रस्ताव भी दिया है. आठवें प्रस्ताव के मुताबिक, दोनों देशों की पुरातन सभ्यता रही है और दोनों को आपसी संबंधों के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोण रखना चाहिए.
यह जरूरी भी है कि दूरगामी असर को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों को संबंधों की मजबूती और रचनात्मकता पर ध्यान देना चाहिए. दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि चीन के विदेश मंत्रालय का एक बयान आया है और वहां का प्रबुद्ध वर्ग भी इस बात का जिक्र कर रहा है कि सीमा की समस्या को द्विपक्षीय संबंधों से अलग किया जाये. इसका मतलब है कि सीमा पर जो कुछ भी हो रहा है, उसका आपसी संबंधों पर असर न पड़े और वह चलता रहे.
हालांकि, यह व्यावहारिक नहीं है और न ही यह संभव है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल से लेकर अभी तक भारत की विदेश नीति में यह निरंतरता बरकरार रही है. भारत ने हर मंच पर यह स्पष्ट किया है कि अगर सीमा के मसले पर कोई तनाव होगा, तो वह सभी प्रकार के संबंधों को प्रभावित करेगा. इस तरह से देखा जा रहा है कि सीमा पर तनाव के चलते पिछले 10 महीनों में आपसी संबंध खराब होते गये हैं. चीन का यह सुझाव कतई व्यावहारिक नहीं है. अभी तक दोनों पक्षों के बीच नौ दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन वह अंजाम तक नहीं पहुंची है.
चीन का अड़ियल रवैया है. भारत की तरफ से पहले भी कई बार सकारात्मक पहल हुई है. महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच एक सफल वार्ता हुई थी. तब इस बात का अनुमान नहीं लगाया गया था कि सीमा पर इस तरह का विवाद होगा. हालांकि, सीमा पर पहले भी चुमार, दौलत बेग ओल्डी में तनाव उत्पन्न हुआ था. पहले के तनाव के दौरान भारत की मांग रहती थी कि पूर्व की स्थिति को बहाल किया जाये.
इस बार चीन ने बड़ी संख्या में फौज की तैनाती बढ़ायी और सीमा की स्थिति में परिवर्तन की कोशिश की है. उसके चलते दोनों के बीच विवाद गहराता गया. चीन के अड़ियल रवैये के कारण वार्ता का समाधान नहीं निकल रहा है. भारत का भी रुख इस मामले को लेकर सख्त है.
भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के चतुष्क समूह को लेकर सवाल होते हैं. हालांकि, उसका इतिहास और उद्देश्य बिल्कुल अलग है. क्वॉड किसी भी प्रकार से द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करता है. यह भारत की अपनी नीति है कि वह किन देशों के समूह का हिस्सा बनना चाहता है. उसका उद्देश्य चीन नहीं है और चीन को भी इस बात को समझना चाहिए कि भारत को स्वतंत्रता है कि वह किसी भी समूह का हिस्सा बने.
भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स का हिस्सा है. इसके अलावा कई ऐसे बहुपक्षीय मंच हैं, जहां भारत और चीन दोनों मौजूद हैं. हर मंच पर भारत अपनी रचनात्मक भूमिका अदा करता है, चाहे वह क्वॉड हो, एससीओ हो या ब्रिक्स हो. चीन भी कई बहुपक्षीय संस्थाओं में भूमिका निभाता है. दोनों देशों को इस बात को लेकर स्वतंत्रता है. जहां तक भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की बात है, तो चीन की मुख्य आपत्ति हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मसले पर है. उसे लगता है कि ये चारों इस सिद्धांत को समर्थन देते हैं और चीन इसे शक्ति संतुलन की दृष्टि से देखता है.
इसीलिए, वह इस समूह को अपने विरोध के तौर पर देखता है. वह यह भी कहता रहा है कि उसके विरोध में भारत को इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन, भारत का मत स्पष्ट है कि आपसी साझेदारी से इस पूरे क्षेत्र में समृद्धि आयेगी और संबंधों को मजबूती मिलेगी. भारत कहता रहा है कि सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना चाहिए. आपसी साझेदारी का आर्थिक दृष्टि से भी काफी महत्व है.
Posted By : Sameer Oraon