अंधविश्वास की महामारी से भी लड़ाई

दुनियाभर के वैज्ञानिक और डॉक्टर बार-बार कोरोना का वैकल्पिक उपचार न करने की चेतावनी दे रहे हैं. उनका कहना है कि सुरक्षा की झूठी भावना स्वास्थ्य समस्याओं को और जटिल बना सकती है.

By Ashutosh Chaturvedi | May 17, 2021 7:54 AM

पुरानी कहावत है कि नीम हकीम खतरा ए जान यानी नीम हकीम के चक्कर में पड़े, तो जान को खतरा हो सकता है. वैसे सामान्य अवस्था में भी आप किसी भारतीय से किसी रोग का जिक्र भर कर दें, वह तत्काल आपको एलोपैथी से लेकर आयुर्वेद तक इलाज सुझा देगा. पर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने तो देश के अधिकांश लोगों को कोरोना विशेषज्ञ बना दिया है.

इससे कोरोना वायरस को नष्ट नहीं किया जा सकता है, बल्कि इससे कई और बीमारियों के फैलने का खतरा है. सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल होने के बाद लोग इस उम्मीद में गौशाला जाने लगे थे कि इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जायेगी और संक्रमण नहीं होगा. दुनियाभर के वैज्ञानिक और डॉक्टर बार-बार कोरोना का वैकल्पिक उपचार न करने की चेतावनी दे रहे हैं.

उनका कहना है कि सुरक्षा की झूठी भावना स्वास्थ्य समस्याओं को और जटिल बना सकती है. कोरोना संक्रमण के बचाव और इलाज के लिए जो गाइडलाइन बनी है, उसका पालन करना चाहिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाओं का सेवन करना चाहिए. इसी तरह वैक्सीन को लेकर अनेक भ्रामक सूचनाएं फैलायी जा रही हैं कि इससे कोरोना संक्रमण हो जाता है, जबकि कोरोना से बचाव में वैक्सीन की अहम भूमिका है.

कोरोना संक्रमण से स्थिति अब भी गंभीर है. हर दिन तीन लाख से ज्यादा संक्रमण के नये मामले सामने आ रहे हैं और प्रतिदिन लगभग चार हजार संक्रमितों की जान जा रही है. एक ही बात सुकून देती है कि लोग बड़ी संख्या में ठीक भी हो रहे है. देश में लगभग ढाई करोड़ लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और ढाई लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं. गंभीर रूप से संक्रमित मरीज अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन और दवाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

कई लोग इलाज के अभाव में जान गवां दे रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर इतनी खतरनाक है कि हर ओर भय का माहौल है. शायद यही वजह है कि लोग बचाव के टोने टोटके आजमा रहे हैं. पर चिंता की बात यह है कि कई मामलों में ये टोटके जीवन पर भारी पड़ जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है, जिसमें परिवार की महिलाएं ऑक्सीजन पर निर्भर कोरोना के एक मरीज के पास जोर जोर से धार्मिक पाठ कर रही हैं. खबर है कि बाद में उन्होंने मरीज को पाठ सुनाने के लिए मरीज की ऑक्सीजन हटा दी, जिसके कारण उसकी मौत हो गयी.

हाल में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की शेवगांव तहसील के एक डॉक्टर ने दावा किया है कि देशी शराब के काढ़े से उन्होंने 50 से ज्यादा मरीजों को स्वस्थ किया है. यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी. बाद में सरकार को बयान देना पड़ा कि यह दावा पूरी तरह से गलत है और इस पर विश्वास न करें. एक व्हॉट्सऐप मैसेज में कहा जा रहा है कि पुद्दुचेरी के एक छात्र रामू ने कोविड-19 का घरेलू उपचार खोज लिया है और उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वीकृति प्रदान कर दी है.

उसने सिद्ध कर दिया कि एक चाय के कप में चम्मच भरकर काली मिर्च का चूर्ण, दो चम्मच शहद और थोड़ा सा अदरक का रस लगातार पांच दिनों तक लिया जाए, तो कोरोना के प्रभाव को सौ फीसदी समाप्त किया जा सकता है. बीबीसी हिंदी की फैक्ट चेक टीम ने इसकी जांच की और पुद्दुचेरी विश्वविद्यालय के प्रवक्ता बात की, तो उनका कहना था कि ऐसी कोई दवा विश्वविद्यालय के किसी छात्र ने नहीं बनायी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो ऐसी फेक खबरों के लिए एक अलग सेक्शन बना रखा है.

उसने स्पष्ट किया है कि कोरोना वायरस की अब तक कोई दवा नहीं बनी है और न ही काली मिर्च के खाने में इस्तेमाल करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. काली मिर्च आपके खाने को स्वादिष्ट बना सकती है, लेकिन कोरोना वायरस से नहीं बचा सकती है. मध्य प्रदेश के गुना में तो कुछ लोगों ने सूखी नदी में गड्ढे खोदे और उससे निकले पानी को कोरोना की औषधि समझ कर पीने लगे. गुना के जोहरी गांव से बरनी नदी गुजरती है, गर्मियों में उसकी धारा दो-तीन महीने सूख जाती है.

सूखी हुई नदी की सतह पर अगर गड्ढा खोदा जाए, तो उसमें पानी निकलता है. इसी बीच गांव में अफवाह उड़ी कि यह चमत्कारी पानी है और इस पानी को पीने से कोरोना बीमारी ठीक हो जायेगी. अफवाह उड़ते ही गांव के लोग गड्ढा खोदकर पानी पीने लगे. नदी में पहले से ही कुछ गड्ढों में पानी भरा हुआ था. कुछ लोग उन गड्ढों में भरा गंदा पानी भी पीने लगे. इस पानी के पीने से अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया है. अधिकारियों ने भी लोगों को समझाने की कोशिश की, लेकिन लोग मानने को राजी नहीं हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि 90 फीसदी मरीज घर पर ही साधारण दवाओं से ठीक हो जाते हैं. उन्हें आप ग्लूकोज की पुड़िया दे दें और मंत्र फूंक दें और मरीज अपने आप ठीक हो जायेगा. आप गौर करेंगे, तो पायेंगे कि दरअसल इन्हीं मरीजों को ठीक करने का दावा अपनी औषधियां बेचने वाले कर रहे हैं. वे लोगों का शोषण कर अपनी दवाइयां बेचने में सफल भी हो जा रहे हैं. असली चुनौती 10 फीसदी लोगों के इलाज को लेकर है.

ऐसे गंभीर मरीज केवल और केवल एलोपैथिक दवाओं से ठीक होते हैं. इनके चक्कर में फंसकर कुछ लोग इलाज का महत्वपूर्ण समय गवां देते हैं और अपनी जान दांव पर लगा देते हैं. यह वैज्ञानिक तथ्य है कि एलोपैथी के अलावा अन्य सभी चिकित्सा पद्धतियों की भूमिका केवल शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में है. यह सही है कि कुछ पारंपरिक और घरेलू उपचार कोरोना के लक्षणों में राहत दे सकते हैं, लेकिन वे इस बीमारी का इलाज नहीं हैं. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन लगवाएं, लोगों से एक मीटर की दूरी बनाये रखें और लगातार हाथ धोते रहें.

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