जिस तरह विश्व समुदाय ने भारत के लिए खुले दिल से सहयोग और सहायता का हाथ बढ़ाया है, वह अभूतपूर्व है. आपदाओं में वैश्विक सहायता पर काम करने वालों का मानना है कि ऐसा सहयोग पहले किसी एक देश को नहीं मिला था. अभी तक 40 से ज्यादा देशों से सहायता पहुंच चुकी है.
हम अपनी सरकार और उसकी नीतियों की जितनी आलोचना करें, पर इसका उत्तर देना ही होगा कि इतने सारे देश भारत के साथ क्यों खड़े हुए हैं जबकि भारत ने किसी देश से सहायता मांगी नहीं है. ऐसे में निष्पक्षता से यही कहा जायेगा कि भारत की वैश्विक छवि और इसका प्रभाव विश्व समुदाय पर कायम है.
अमेरिका से सबसे ज्यादा सामग्री आयी है. ह्वाइट हाउस के प्रवक्ता का बयान है कि हम दिन रात काम कर रहे हैं ताकि भारत को आवश्यक वस्तुएं मिलती रहें. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि हम एक मित्र और भागीदार के रूप में भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने भारत के लिए एक फेसबुक पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने भारत भेजे जानेवाली सामग्रियों का जिक्र करते हुए भारत के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता जतायी.
ऐसे ही बयान कई देशों की ओर से आये हैं. भारत में रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव के अनुसार, रूस से दो तत्काल उड़ानें भारत में 20 टन के भार का मेडिकल कार्गो लेकर आ चुकी हैं. स्वयं महामारी से जूझनेवाले स्पेन ने भी सामग्रियां भेजी है. सच कहें, तो भारत को मदद देने की वैश्विक मुहिम व्यापक हो चुकी है. ऐसी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. फ्रांस ने खाड़ी स्थित अपने देश की एक गैस निर्माता कंपनी से दो क्रायोजेनिक टैंकर भारत को पहुंचाने की इच्छा जतायी, तो कतर ने उसे तत्काल स्वीकृति दी.
इजरायल के राजदूत रॉन मलका ने कहा कि भारत के साथ अपने संबंधों को देखते हुए उनकी सरकार ने एक टास्क फोर्स गठित किया है ताकि भारत को तेजी से मदद पहुंचायी जा सके. केवल देश और संस्थाएं ही नहीं, अनेक देशों के नागरिक तथा विश्वभर के भारतवंशी भी इस समय हरसंभव योगदान करने के लिए आगे आ रहे हैं. कई देशों में भारतीय मूल के डॉक्टरों ने भी ऑनलाइन मुफ्त मेडिकल परामर्श देने का अभियान चलाया हुआ है.
लेकिन इसके समानांतर देसी-विदेशी मीडिया का एक धड़ा, एनजीओ आदि अपने व्यापक संपर्कों का प्रयोग कर कई प्रकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं, मसलन, विदेशी सहायता सामग्रियां तो जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं रहीं, सामग्रियां कहां जा रहीं हैं, किसी को नहीं पता, सामग्रियां तो सप्ताह-सप्ताह भर हवाई अड्डों पर ही पड़ी रहती हैं आदि आदि. आपको सैंकड़ों बयान मिल जायेंगे, जिनसे आपके अंदर यह तस्वीर बनेगी कि कोहराम से परेशान होते हुए भी भारत सरकार इतनी गैरजिम्मेदार है कि वह इनका वितरण तक नहीं कर रही या गोपनीय तरीके से इनका दुरुपयोग कर रही है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक ब्रीफिंग में भी यह मुद्दा उठाया गया. एक पत्रकार ने पूछा कि भारत को भेजे जा रहे अमेरिकी करदाताओं के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा? क्या अमेरिकी सरकार यह पता कर रही है कि भारत को भेजी जा रही मेडिकल मदद कहां जा रही है? यह बात अलग है कि उन्हें टका सा उत्तर मिला. मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम आपको यकीन दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका इस संकट के दौरान अपने साझेदार भारत का ख्याल रहने के लिए प्रतिबद्ध है.
बीबीसी के एक संवाददाता ने इस मुद्दे पर ब्रिटेन के फ़ॉरेन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस तक से बात की. उसने पूछा कि क्या उसके पास इस बात की कोई जानकारी है कि ब्रिटेन से भेजी गयी मेडिकल मदद भारत में कहां बांटी गयी? यहां भी उत्तर उसी तरह मिला कि भारत को भेजे जा रहे मेडिकल उपकरणों को यथासंभव कारगर तरीके से पहुंचाने के लिए ब्रिटेन इंडियन रेड क्रॉस और भारत सरकार के साथ काम करता आ रहा है. यह भारत सरकार तय करेगी कि मेडिकल मदद कहां भेजी जायेगी.
ये दो उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि एक ओर महाआपदा से जूझते देश में जिससे जितना बन पड़ रहा है, कर रहा है और दूसरी ओर किस तरह का माहौल भारत के खिलाफ बनाने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं. केंद्र सरकार को इस कारण सफाई देनी पड़ी. जानकारी के अनुसार सरकार ने सामग्रियों के आने के पूर्व से ही इसकी तैयारी कर दी थी. सीमा शुल्क विभाग को त्वरित गति से क्लियरेंस देने, कार्गों से सामग्रियों को तेजी से बाहर निकालने आदि के लिए एक टीम बन गयी थी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने 26 अप्रैल से वितरण की तैयारी शुरू कर दी थी.
मदद कैसे बांटी जाए, इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर जारी किया गया. राहत सामग्री वाला विमान भारत पहुंचते ही इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के हाथ आ जाता है. सीमा शुल्क विभाग से क्लियरेंस मिलने के बाद मदद की यह खेप एक दूसरी एजेंसी एचएलएल लाइफकेयर के हवाले की जाती है. यह एजेंसी सामानों को देशभर में भेजती है.
कहां कितना और किस रूप में आपूर्ति करनी है, इसके लिए सारी सामग्रियों को खोलकर उनकी नये सिरे से गंतव्य स्थानों के लिए पैकिंग करना होता है. सामान कई देशों से आ रहे हैं और उनकी मात्रा भी अलग-अलग है. वे अलग-अलग समय में अलग-अलग संख्या में आती हैं. कई बार तो सामग्रियां उनके साथ आयी सूची से भी मेल नहीं खातीं. इन सबके होते हुए भी सामग्रियां सब जगह व्यवस्थित तरीके से पहुंच रही हैं.
हमें दुष्प्रचारकों के आरोपों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है. वास्तव में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और द्विपक्षीय संबंधों में जिस तरह की भूमिका निभायी है, उसका विश्व समुदाय पर सकारात्मक असर है. भारत के प्रति सद्भावना और सम्मान है. आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा भी कि कठिन समय में भारत ने हमारी सहायता की और अब हमारी बारी है.
इजरायल के राजदूत का यही बयान है कि महामारी के आरंभ में जब हमें जरूरत थी, भारत आगे आया, तो इस समय हम अपने दोस्त के लिए केवल अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं. यह स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि कठिन समय में हमारी अपनी हैसियत, साख, सम्मान और हमारे प्रति अंतरराष्ट्रीय सद्भावना आसानी से दिखायी दे रही है. बिना मांगे इतने सारे देशों द्वारा व्यापक पैमाने पर सहयोग तथा इसके संबंध में दिये गये बयान इस बात के प्रमाण हैं कि भारत का सम्मान और साख विश्व स्तर पर कायम है.