टीकाकरण तेज हो
अभी तक 15.5 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है और संभावना है कि जुलाई तक करीब 30 करोड़ और खुराक दी जा सकेगी.
जनवरी के मध्य से शुरू हुआ टीकाकरण अभियान विभिन्न कारणों से अप्रैल के मध्य में शिथिल पड़ गया था. एक मई से अभियान के तीसरे चरण में 18 साल से अधिक आयु के वयस्कों को भी टीकों की खुराक देने का काम शुरू हुआ है. इस चरण में कई समस्याएं आ रही हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है समुचित मात्रा में खुराक का उपलब्ध नहीं होना.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर से समूचा देश पीड़ित है. गंभीर रूप से बीमार लोगों के उपचार के साथ टीका लगाने का काम जारी रखना बड़ी मुश्किल चुनौती है. इन सबके बावजूद यह संतोष की बात है कि जुलाई तक देश की आबादी के लगभग आधे हिस्से को कम-से-कम टीके की एक खुराक मिल जायेगी. उल्लेखनीय है कि महामारी की भयावह दूसरी लहर में वैसे लोग आम तौर पर सुरक्षित रहे हैं,
जिन्होंने पहले दो चरणों में टीका ले लिया था. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि टीका ही इस खतरनाक वायरस से बचाव का एकमात्र ठोस उपाय है. इसलिए यदि टीका उपलब्ध हो रहा हो, तो हमें टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए तथा दूसरों को भी इसके लिए उत्साहित करना चाहिए. अभी तक 15.5 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है और संभावना है कि जुलाई तक करीब 30 करोड़ और खुराक दी जा सकेगी.
अभी भारत में निर्मित दो वैक्सीन उपलब्ध हैं और जल्दी ही रूस के स्पूतनिक टीका मुहैया होगा. इनके अलावा कुछ अन्य वैक्सीनों के इस्तेमाल को भी सरकारी अनुमति मिलने की आशा है. मई, जून और जुलाई में पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट से 11 करोड़ खुराक की आपूर्ति होने की संभावना है. इस अवधि में भारत बायोटेक से भी छह करोड़ से अधिक खुराक मिल सकती है. केंद्र और राज्य सरकारों तथा निजी क्षेत्र की मांग को देखते हुए दोनों भारतीय उत्पादकों ने निर्माण क्षमता बढ़ाने का आश्वासन भी दिया है.
टीकों के दाम और टीका प्रक्रिया को लेकर अनेक सवाल उठ रहे हैं. एक ओर कंपनियों ने दामों में कुछ कटौती की है और सरकार भी उनके साथ लगातार संवाद में है, तो दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार को नीतिगत समीक्षा करने तथा सभी को वैक्सीन देने के उपायों पर विचार करने का निर्देश दिया है. इस तरह, वैक्सीन को लेकर निरंतर प्रयास हो रहे हैं और कुछ ही दिनों में इस संबंध में तस्वीर साफ होने की अपेक्षा की जा सकती है.
भले ही भारत को व्यापक पैमाने पर टीकाकरण का अनुभव रहा है, पर वह शिशुओं और गर्भवती महिलाओं तक सीमित था. यह पहली बार है, जब पूरी वयस्क आबादी को टीका देने का अभियान चल रहा है. बड़ी जनसंख्या को देखते हुए यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण है. इसी बीच महामारी भी कहर ढा रही है. आशा है कि अब तक के अनुभवों के आधार पर तथा उपलब्ध संसाधनों के सहारे विभिन्न बाधाओं को पार किया जा सकेगा. इसमें सबके योगदान की आवश्यकता है.