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डिजिटल कंपनियां भी भरें टैक्स

भारतीय उद्योग और परंपरागत अर्थव्यवस्था को बचाने के साथ-साथ सरकारी खजाने में बढ़ोतरी के लिए डिजिटल कंपनियों से पूरे टैक्स की वसूली करनी ही होगी. इसके लिए ठोस पहल करनी ही होगी.

एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के चलते पिछले साल भारत में 7.5 करोड़ गरीब बढ़ गये हैं. नव-गरीबों को मास्क और वैक्सीन मिल भी जाए, तो पेट भरने का जुगाड़ कैसे होगा? असंगठित क्षेत्र, लघु और मध्यम उद्योग समेत परंपरागत अर्थव्यवस्था की तबाही की वजह से विकास दर में कमी के साथ बड़े पैमाने पर बेरोजगारी भी बढ़ी है.

दूसरी तरफ, वर्क फ्रॉम होम और लॉकडाउन से डिजिटल कंपनियों के बल्ले-बल्ले हैं. एनालिटिक्स फर्म एनी के मुताबिक पिछले दो वर्षों में भारत में एप्स के इस्तेमाल में 80 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के किसी गरीब परिवार को मध्य वर्ग में आने में सात पीढ़ी का समय लग सकता है. महामारी जनित गरीबी से निबटने के लिए आइएमएफ ने रईसों और कोरोना के कहर से लाभ कमानेवाली कंपनियों से बड़ी टैक्स वसूली का सुझाव दिया है.

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने ऐसी कंपनियों से टैक्स वसूली की रणनीति बनायी, तो पता चला कि अमेजन जैसी 55 बड़ी कंपनियों ने कानूनों में सुराखों का फायदा उठा कर कोई भी टैक्स नहीं दिया.

डिजिटल की नयी अर्थव्यवस्था से जुड़ी अधिकांश कंपनियां अमेरिका और चीन से हैं. भारत के अनेक स्टार्टअप्स और यूनिकॉर्न्स भी विदेशों पूंजी के दम पर चहक रहे हैं. यूपीए सरकार के दौर में केएन गोविंदाचार्य की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी विदेशी कंपनियों से टैक्स वसूली का आदेश दिया था, लेकिन ऐसी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं बन पायी.

विदेशी कंपनियों से टैक्स वसूली नहीं करने के लिए कराधान की दोहरी संधि और अंतरराष्ट्रीय संधियों की दुहाई दी जाती है, लेकिन समृद्ध देशों के संगठन ओईसीडी ने भी दो साल पहले जारी रिपोर्ट से डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूली की बात कही थी. ऑस्ट्रेलिया ने फेसबुक और गूगल से मीडिया आमदनी में हिस्सेदारी मांगना शुरू कर दिया है. शुरुआत में इन कंपनियों ने आंखें तरेरी और फिर कानून के डंडे के आगे सरेंडर कर दिया.

इससे खुश ऑस्ट्रेलिया ने एक कदम आगे बढ़ा कर ऑनलाइन विज्ञापनों से टैक्स वसूलने की शुरुआत कर दी है. यूरोपीय समूह में डेटा सुरक्षा के सख्त कानून लागू हैं, जिसके तहत डेटा चोरी और डेटा लीक की किसी भी घटना पर जवाबदेह कंपनियों पर भारी जुर्माना लगता है. भारत में चैन स्नैचिंग की घटनाओं पर तो गुंडा एक्ट और रासुका लग जाता है, लेकिन खरबों रुपये के डेटा नीलामी की जिम्मेदार विदेशी कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती.

संविधान के अनुसार, भारत में व्यापार और आमदनी कर रहे हर व्यक्ति और कंपनी से राज्यों और केंद्र सरकार को टैक्स वसूलने का अधिकार है. पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में केंद्रीय कानून और आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि डिजिटल कंपनियों के सबसे बड़े बाजार भारत में सख्त डेटा सुरक्षा कानून की जरूरत है.

पिछली चार सरकारों के दौर से इस पर अकादमिक बहस हो रही है, लेकिन कोई कानून नहीं बना. थिंक टैंक सीएएससी के मुताबिक भारत से इन कंपनियों का सालाना 20 लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार होता है. आम जनता पर अनेक प्रकार के टैक्स हैं, जबकि डिजिटल व्यापार में विदेशी कंपनियों से टैक्स वसूली की बजाय उन्हें प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं.

आम देशवासी को राशन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट, बैंक खाते समेत हर काम के लिए केवाईसी की कठिन प्रक्रिया से जूझना पड़ता है, लेकिन विदेशी निवेशकों और कंपनियों को इसके दायरे से बाहर रखने का जतन किया जाता है. एक खबर के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने एफपीआई, एफवीसीआई और एफसीसीबी जैसे निवेश के माध्यमों को केवाईसी के दायरे से बाहर रखे जाने के लिए सेबी और रिजर्व बैंक से मांग की है. जब विदेशी निवेशकों और कंपनियों का भारत में रजिस्ट्रेशन और कोई हिसाब-किताब ही नहीं होगा, तो टैक्स वसूली का हिसाब कैसे बनेगा?

डिजिटल का आधार डेटा है. इस पर जब तक ठोस और प्रभावी कानून नहीं बनेगा, तब तक विदेशी निवेशकों और कंपनियों से पूरे टैक्स की वसूली में अड़चनें आती ही रहेंगी. वोट के लिए सभी पार्टियां और सरकारें फ्री की अनेक योजनाओं को बढ़ावा देती हैं, लेकिन सरकारी खजाना खाली हो, तो कर्जा लेकर कितने दिनों तक कल्याणकारी योजनाएं चल सकेंगी?

कोरोनाकाल में सैकड़ों साल पुराने कानून और पुलिसिया डंडे के दम पर लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की अनिवार्यता को लागू किया जा रहा है. उसी तर्ज पर कंपनी कानून, सेबी, रिजर्व बैंक और आयकर कानून के अनेक प्रावधानों को डिजिटल कंपनियों पर तुरंत लागू किया जाये, तो तस्वीर बदल सकती है. दरअसल, विदेशी डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूलने के लिए कानून से ज्यादा इच्छाशक्ति की कमी है.

अमेरिका में रजिस्टर्ड विदेशी कंपनियां, वहां पर स्मार्ट तरीकों से टैक्स चोरी कर रही हैं, जिससे सबक लेने की जरूरत है. आजादी की 75वीं वर्षगांठ और अमृत महोत्सव के पर्व पर देश को डेटा उपनिवेशवाद की गिरफ्त से बचाने के लिए विदेशी डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूली की व्यवस्था बनाने के लिए अब ठोस पहल करनी ही होगी.

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