कोविड-19 से बाहर निकलती अर्थव्यवस्था
कोविड-19 से बाहर निकलती अर्थव्यवस्था
डॉ जयंतीलाल भंडारी
अर्थशास्त्री
jlbhndari@gmail.com
दुनिया के प्रमुख आर्थिक एवं शोध संगठनों के द्वारा प्रकाशित की जा रही विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि कोरोना की अप्रत्याशित आर्थिक चुनौतियों का सफल मुकाबला करते हुए अब भारत विकास की डगर पर आगे बढ़ रहा है. हाल ही में नौ दिसंबर को प्रसिद्ध वैश्विक ब्रोकरेज हाउस नोमुरा ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोविड-19 की चुनौतियों का सामना करने की सही रणनीति से चक्रीय आर्थिक सुधार ऊंचाई पर है.
परिणामस्वरूप वर्ष 2021 में भारत की विकास दर 9.9 प्रतिशत होगी. चीन की विकास दर नौ प्रतिशत और सिंगापुर की विकास दर 7.5 प्रतिशत होगी. ऐसे में भारत एशिया की सबसे तेजी से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था बन सकता है.
इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि वर्ष 2020-21 में कोविड-19 के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट आयेगी, लेकिन भारत ने कोरोना संकट से निपटने के लिए जिस तेजी से सुधार के कदम उठाये हैं, उससे आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत 8.8 फीसदी की विकास दर हासिल करने की संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेते हुए दुनिया की सर्वाधिक विकास दर वाला देश दिखाई दे सकता है.
कोविड-19 की आर्थिक महात्रासदियों के कारण वर्ष 2020 देश के आर्थिक इतिहास का सबसे बुरा वर्ष रहा है. जब वर्ष 2020 की शुरुआत हुई, तो जनवरी माह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड बैंक तथा दुनिया के अनेक वैश्विक संगठन यह कहते हुए दिखाई दे रहे थे कि वर्ष 2019 की आर्थिक निराशाओं को बदलते हुए वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन सुधरेगा, लेकिन ऐसी सब उम्मीदें धरी रह गयीं.
फरवरी, 2020 के बाद जैसे-जैसे देश के सामने कोविड-19 की चुनौतियां बढ़ने लगीं, वैसे-वैसे देश में अकल्पनीय आर्थिक निराशा का दौर बढ़ने लगा. ऐसे में 19 फरवरी को देश में कोरोना वायरस के संकट से उद्योग- कारोबार की बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर वित्त मंत्रालय ने कोरोना को प्राकृतिक आपदा घोषित किया. चूंकि भारतीय दवा उद्योग, वाहन उद्योग, केमिकल उद्योग, खिलौना कारोबार तथा इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्राॅनिक्स कारोबार प्रमुख रूप से चीन से आयातित कच्चे माल एवं वस्तुओं पर आधारित रहे हैं और इनकी आपूर्ति रुकने से ये उद्योग-कारोबार मुश्किलों का सामना करते हुए दिखाई दिये.
लिहाजा इन क्षेत्रों में रोजगार की चुनौतियां बढ़ गयीं. इतना ही नहीं, देश में पहली बार प्रवासी श्रमिकों की अकल्पनीय पीड़ाएं देखी गयीं. इन आर्थिक एवं रोजगार संबंधी चुनौतियों के बीच कोविड-19 के संकट से चरमराती देश की अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर अभियान के तहत वर्ष 2020 में सरकार ने एक के बाद एक 29.87 लाख करोड़ की कई राहतों के एलान किये. इन राहतों में आत्मनिर्भर भारत अभियान-एक के तहत 11,02,650 करोड़ रुपये,
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत 1,92,800 करोड़ रुपये, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 82, 911 करोड़ रुपये, आत्मनिर्भर भारत अभियान-दो के तहत 73,000 करोड़ रुपये, आरबीआइ के उपायों से राहत के तहत 12,71,200 करोड़ रुपये तथा आत्मनिर्भर भारत अभियान-तीन के तहत 2.65 लाख करोड़ की राहत शामिल हैं. तीसरे आर्थिक पैकेज में दो तरह की राहतें शामिल हैं.
पहला, 10 उद्योग क्षेत्रों के लिए 1.46 लाख करोड़ रुपये की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआइ) स्कीम और दूसरा, अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए रोजगार सृजन, ऋण गारंटी समर्थन, स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास, रियल एस्टेट कंपनियों को कर राहत, ढांचागत क्षेत्र में पूंजी निवेश की सरलता, किसानों के लिए उवर्रक सब्सिडी, ग्रामीण विकास तथा निर्यात सेक्टर को राहत देने के 1.19 लाख करोड़ रुपये के प्रावधान लाभपूर्ण दिखाई दिये हैं.
इन विभिन्न आर्थिक पैकेजों से देश के लिए आत्मनिर्भरता के पांच स्तंभों को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया. इन पांच स्तंभों में तेजी से छलांग लगाती अर्थव्यवस्था, आधुनिक भारत की पहचान बनता बुनियादी ढांचा, नये जमाने की तकनीक केंद्रित व्यवस्थाओं पर चलता तंत्र, देश की ताकत बन रही आबादी और मांग एवं आपूर्ति चक्र को मजबूत बनाना शामिल है.
वैश्विक संरक्षणवाद से देश को बचाने और तेजी से विकास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो मंत्र दिये. एक, भारत को आत्मनिर्भर बनाने की डगर पर आगे बढ़ाना और दो, लोकल को ग्लोबल बनाकर वैश्विक बाजार में तेजी से कदम बढ़ाकर आगे बढ़ना. इसमें कोई दो मत नहीं है कि वर्ष 2020 में सरकार के द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत दी गयी विभिन्न राहतों से तेजी से गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा मिला.
साथ ही सरकार की ओर से जून, 2020 के बाद अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने की रणनीति के साथ राजकोषीय और नीतिगत कदमों का अर्थव्यवस्था पर अनुकूल असर पड़ा है. यद्यपि अभी देश महामारी से नहीं उबरा है, लेकिन अर्थव्यवस्था ने तेजी हासिल करने की क्षमता दिखायी है. कोरोनाकाल में सरकार को उन सुधारों को आगे बढ़ाने का अवसर मिला है, जो दशकों से लंबित थे.
यदि हम अप्रैल, 2020 से दिसंबर, 2020 तक के विभिन्न औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र के आंकड़ों का मूल्यांकन करें, तो यह पूरा परिदृश्य आशान्वित होने की नयी संभावनाएं देता है. स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट आयी. फिर दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर, 2020 में विकास दर मंे 7.5 फीसदी की गिरावट आयी, लेकिन चालू वित्तवर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में तेज सुधार की उम्मीदों का परिदृश्य दिखाई दिया है.
नि:संदेह कोरोना महामारी के बीच भारत ने आपदा को अवसर में भी बदला है. ऐसे में वर्ष 2020 के अंतिम सोपान पर देश के कोविड-19 की आर्थिक महात्रासदी से बाहर निकलकर विकास की डगर पर आगे बढ़ने का परिदृश्य दिखायी दे रहा है. हम उम्मीद करें कि वर्ष 2021 में सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किये गये विभिन्न आर्थिक पैकेजों के क्रियान्वयन पर पूरा ध्यान देगी और आर्थिक विकास के लिए हरसंभव कदम उठायेगी.
इससे अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाया जा सकेगा तथा आगामी वर्ष 2021 में भारत तेजी से विकास दर बढ़नेवाले देश के रूप में चिन्हित हो सकेगा.
posted by : sameer oraon