अरविंद मिश्रा
ऊर्जा विशेषज्ञ
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देश के 400 से अधिक गैर महानगरीय व छोटे शहरों में सीएनजी गैस पाइपलाइन बिछाने का काम प्रगति पर है. कोरोना के अदृश्य विषाणु पर सवार वर्ष 2020 ने हमारी नीतियों एवं बुनियादी अधोसंरचनाओं की ताकत तथा कमजोरी दोनों की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है तथा हमारे शहरों को नये सिरे से संवारने का संदेश दिया है. नये दशक में प्रवेश करते हुए हमें शहरीकरण की चुनौतियों के समाधान के साथ शहरों को समावेशी विकास के मानकों पर खरा उतरने में सक्षम बनाना होगा.
ऊर्जा ही वह संसाधन है, जिस पर लगभग हर छोटी-बड़ी मानवीय गतिविधि टिकी होती है. पिछले दो दशक में भारत में शहरीकरण अभूतपूर्व रफ्तार से बढ़ा है. विश्व आर्थिक मंच ने हालिया रिपोर्ट में फिर दोहराया है कि कई वर्षों तक भारत के विकास की धुरी शहर बने रहेंगे. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत की आधी आबादी शहर केंद्रित हो जायेगी.
यही कारण है कि शहरी नियोजन वर्तमान में केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में है. साल 2004 से 2014 के बीच 1.57 लाख करोड़ रुपये शहरी नियोजन में खर्च किये गये, जबकि पिछले छह साल में ही 10.57 लाख करोड़ का भारी भरकम बजट शहरों को व्यवस्थित करने में खर्च किया जा चुका है. शहरीकरण के विस्तार के साथ ऊर्जा की मांग बढ़ेगी. वह भी तब, जब हम विश्व में ऊर्जा के चौथे बड़े उपभोक्ता हैं.
ऐसे में नीति नियोजकों को ऊर्जा आपूर्ति के साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने की दोहरी जिम्मेदारी को साधना होगा. यह दायित्व बोध यूरोप में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शुरू हुए गार्डन सिटी मूवमेंट की याद दिलाता है. उस अभियान के अंतर्गत यूरोप और अमेरिका में पर्यावरण अनुकूल और ऊर्जा की आत्मनिर्भरता से युक्त शहर बसाये गये. इसी ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर भारत गैस आधारित अर्थव्यवस्था के जरिये धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है. देश में सीएनजी नेटवर्क का तेजी से विस्तार हो रहा है.
यह प्रस्तावित विस्तार वहां के ऊर्जा अर्थशास्त्र के साथ सामाजिक जीवन को भी स्पंदित कर रहा है. लेकिन इसके लिए हमारे छोटे शहर और वहां के स्थानीय निकाय कितने तैयार हैं, इसकी समीक्षा करनी होगी. शहरी नियोजन के जानकारों के मुताबिक, ऊर्जा आत्मनिर्भरता के प्रयास शहरों की मौजूदा बुनियादी अवसंरचना को व्यवस्थित किये बिना संभव नहीं हैं.
आज शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां अवैध कॉलोनियां और अतिक्रमण की गंभीर चुनौती मौजूद न हो. चंड़ीगढ़, बंेगलुरु, गांधीनगर, पंचकुला, जमशेदपुर, गौतमबुद्ध नगर और नवी मुंबई जैसे शहरों में ऊर्जा की उपलब्धता और उसमें अक्षय ऊर्जा की भागीदारी एक अनुकरणीय पहल है. इन शहरों में जगह की भले ही कमी हो, लेकिन किसी भी कम जनसंख्या घनत्व वाले शहर के मुकाबले यहां अधिक हरित क्षेत्र मौजूद है.
शहरों को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के लिए अन्य योजनाओं में भी व्यापक पैमाने पर निवेश करना होगा. इससे रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे. सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इस संबंध में कई अहम निर्णय लिये हैं. केंद्र सरकार ने 2030 तक अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है.
साल 2016 में प्रारंभ हुई ऊर्जा गंगा जैसी परियोजनाएं इस लक्ष्य को हासिल करने में सहायक सिद्ध होंगी, बशर्ते छोटे शहरों की बुनियादी आधारभूत संरचना विशाल ऊर्जा परियोजनाओं को अंगीकार करने योग्य हों. हाल ही में बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में स्थापित राज्य का पहला तेल एवं गैस रिजर्व राष्ट्र को समर्पित किया गया है. शहरी गैस वितरण प्रणाली के अतिरिक्त शहरों को ऊर्जा नियोजन हेतु ठोस अपशिष्ट से बायोमास बनाने की योजना को लोकप्रिय बनाना होगा. महाराष्ट्र और गुजरात में कई सहकारी समितियों ने ग्रामीण और शहरी इलाकों में सफलतापूर्वक संयंत्र स्थापित कर ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है.
गांव में गोबर गैस प्लांट की तर्ज पर शहरों में किचने वेस्ट से ही रसोई गैस तैयार करने की तकनीक को प्रोत्साहित करें, तो शहरों की शक्ल और सूरत बदलते देर नहीं लगेगी. शहरों को ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई देश तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं. ब्रिटेन और जर्मनी जैसी महाशक्तियां ही नहीं, तेल से संपन्न सऊदी अरब जैसे देश भी प्रभावी पहल कर रहे हैं.
सऊदी अरब में तो बकायदा नियोम नामक एक ऐसा शहर बसने जा रहा है, जो हाइड्रोजन इकोनॉमी और अक्षय ऊर्जा संसाधनों से पूरी तरह आत्मनिर्भर होगा. कार्बन मुक्त ईंधन हमारे शहरों में एक नयी परिवहन क्रांति ला सकते हैं. केंद्र सरकार इसी क्रम में ग्रीन सिटी की अवधारणा को भी प्रोत्साहित कर रही है. कोरोना काल के बीच जुलाई में मध्यप्रदेश के रीवा और गुजरात के कच्छ में सौर ऊर्जा की वैश्विक परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित की गयी हैं.
विकास की कोई भी योजना आर्थिक संसाधनों के बिना सफल नहीं हो सकती है. हाल में देश के नौ बड़े नगर निगमों ने म्युनिसिपल बॉन्ड जारी करने की पहल की है. इससे छोटे शहर ऊर्जा समेत अपनी दूसरी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आर्थिक संसाधन जुटा सकेंगे. यदि हम शहरों का नियोजन करते समय ऊर्जा के विविध रूपों की स्थानीय स्तर पर उत्पादकता के साथ उपलब्धता के प्रयासों को प्राथमिकता देंगे, तो इसका लाभ शहर ही नहीं, हमारी भावी पीढ़ियों के साथ पर्यावरण को भी मिलेगा.
Posted By : Sameer Oraon