दुनिया पिछले सवा साल से भी अधिक समय से कोरोना संक्रमण से जूझ रही है. महामारी से करोड़ों लोगों की जान बचाने में सबसे बड़ा योगदान रहा है नर्सों का, जो खुद संक्रमित होने के खतरे के बावजूद लोगों की जान बचाने में जुटी हैं. अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई) पर नर्सों के इस योगदान को नमन करना जरूरी है. वर्ष 2020 को ‘अंतरराष्ट्रीय नर्स वर्ष’ के रूप में मनाया गया था और 2021 के लिए ‘नर्स: ए वॉयस टू लीड – भविष्य की स्वास्थ्य सेवा के लिए एक दृष्टि’ थीम है.
यह समय भारत सहित पूरी दुनिया के नर्सिंग समुदाय के लिए परीक्षा की घड़ी है. दया और सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिंग की जन्मदाता माना जाता है, जिनकी आज हम 201वीं जयंती मना रहे हैं. ‘लेडी विद द लैंप’ (दीपक वाली महिला) के नाम से विख्यात नाइटिंगेल का जन्म 12 मई, 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था.
भारत सरकार द्वारा 1973 में नर्सों के अनुकरणीय कार्यों को सम्मानित करने के लिए ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ की स्थापना की गयी थी, जो प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर दिये जाते हैं. फ्लोरेंस कहती थीं कि रोगी का बुद्धिमान और मानवीय प्रबंधन ही संक्रमण के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव है.
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली में रह रहे एक समृद्ध और उच्च वर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था, लेकिन वे इंग्लैंड में पलीं-बढ़ीं. मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्हें अहसास हो गया था कि उनका जन्म सेवा कार्यों के लिए हुआ है. उन्होंने बताया कि वे ऐसी नर्स बनना चाहती हैं, जो अपने मरीजों की अच्छी तरह सेवा कर सके. इस पर उनके माता-पिता बेहद नाराज हुए थे, क्योंकि विक्टोरिया काल में ब्रिटेन में अमीर घरानों की महिलाएं काम नहीं करती थीं.
उस दौर में नर्सिंग एक सम्मानित पेशा भी नहीं माना जाता था. वह ऐसा समय था, जब अस्पताल बेहद गंदी जगह पर होते थे. परिवार के पुरजोर विरोध के बाद भी फ्लोरेंस ने 1845 में अभावग्रस्त लोगों की सेवा का प्रण लिया. वर्ष 1849 में उन्होंने शादी करने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था. वर्ष 1850 में उन्होंने जर्मनी में प्रोटेस्टेंट डेकोनेसिस संस्थान में दो सप्ताह की अवधि में एक नर्स के रूप में अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण पूरा किया.
वर्ष 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं के लिए एक अस्पताल ‘इंस्टीट्यूट फॉर द केयर ऑफ सिंक जेंटलवुमेन’ खोला, जहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के लिए बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध करायीं और नर्सों के कार्य करने की स्थिति में भी सुधार किया.
नर्सिंग के क्षेत्र में पहली बार उनका अहम योगदान 1854 में क्रीमिया युद्ध के दौरान देखा गया. उस समय ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की की रूस से लड़ाई चल रही थी और सैनिकों को रूस के क्रीमिया में लड़ने के लिए भेजा गया था. ब्रिटिश सरकार द्वारा फ्लोरेंस के नेतृत्व में अक्तूबर, 1854 में 38 नर्सों का एक दल घायल सैनिकों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया. फ्लोरेंस ने अस्पताल की हालत सुधारने के अलावा घायल और बीमार सैनिकों की देखभाल में दिन-रात एक कर दिया, जिससे अस्पताल में सैनिकों की मृत्यु दर में बहुत कमी आयी. उसी समय सैनिक उन्हें आदर और प्यार से ‘लेडी विद द लैंप’ कहने लगे थे.
युद्ध के बाद महारानी विक्टोरिया ने भी पत्र लिखकर उनका धन्यवाद किया था. सितंबर, 1856 में महारानी विक्टोरिया से उनकी मुलाकात हुई, जिसके बाद उनके सुझावों के आधार पर ही वहां सैन्य चिकित्सा प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार संभव हुआ और 1858 में रॉयल कमीशन की स्थापना हुई. वर्ष 1859 में उन्होंने परिवार के बीमार सदस्यों की सही देखरेख सिखाने के लिए ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ नामक एक पुस्तक लिखी.
फ्लोरेंस के प्रयासों से 1860 में लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में ‘नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल फॉर नर्सेज’ खोला गया. दो साल बाद किंग्स कॉलेज हॉस्पिटल में मिडवाइव्ज के लिए स्कूल की स्थापना हुई. उन्होंने अपने जीवन का बाकी समय नर्सिंग के कार्य को आगे बढ़ाने तथा इसे आधुनिक रूप देने में बिता दिया. उन्होंने 1880 के दशक में भारत में बेहतर चिकित्सा तथा सार्वजनिक सेवाओं के लिए भी अभियान चलाया.
उनके कार्यों ने नर्सिंग व्यवसाय का चेहरा ही बदल दिया था, जिसके लिए उन्हें रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति द्वारा सम्मानित किया गया. यही समिति फ्लोरेंस नाइटिंगेल के नाम से नर्सिंग में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पुरस्कार देती है. वर्ष 1869 में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने ‘रॉयल रेड क्रॉस’ से सम्मानित किया था. फ्लोरेंस की सेवा भावना को देखते हुए ही नर्सिंग को महिलाओं के लिए सम्मानजनक पेशा माना जाने लगा और नर्सिंग क्षेत्र में महिलाओं को आने की प्रेरणा मिली.
उन्हें 1907 में ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ सम्मान प्राप्त हुआ, जिसे प्राप्त करनेवाली वे विश्व की पहली महिला थीं. नब्बे वर्ष की आयु में 13 अगस्त, 1910 को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का निधन हो गया. उनके सम्मान में उनके जन्मदिवस 12 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की गयी. स्वच्छता तथा स्वास्थ्य सेवा को लेकर फ्लोरेंस के विचार आज भी प्रासंगिक हैं. कोरोना संकट के वर्तमान दौर में दुनियाभर में नर्सें जिस सेवाभाव से मरीजों की जान बचाने में जुटी हैं, उसे नमन किया जाना चाहिए.