डॉ केसी रवि
कृषि मामलों के विशेषज्ञ
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यह लाजिमी है कि कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में आये केंद्रीय बजट 2021 में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के साथ कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास पर ज्यादा ध्यान दिया है. वर्ष 2020 में महामारी से उत्पन्न वैश्विक संकट की घड़ी में भारतीय अर्थव्यवस्था को जिस क्षेत्र ने आधार प्रदान किया था, वह है कृषि क्षेत्र. इसीलिए लॉकडाउन के दौरान जिस क्षेत्र के लिए सबसे पहले राहत की घोषणा की गयी थी, वह कृषि क्षेत्र ही था.
सरकार ने कहा था कि लॉकडाउन में भी कृषि के कार्य नहीं रुकने चाहिए. अब बजट 2021 के केंद्र में भी ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए केंद्र सरकार की नीतियों के अनुरूप कृषि, किसान और ग्रामीण भारत को रखा गया है. यह बजट टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने, 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करने और अर्थव्यवस्था को मौजूदा संकट से उबारने की भावना से ओतप्रोत है. कृषि और ग्रामीण क्षेत्र से इतर भी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए आर्थिक सुधार की दिशा में कई साहसिक कदम उठाये गये हैं.
इस बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बजट आवंटन में भारी वृद्धि के साथ कृषि को लाभकारी बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कई ठोस पहलें की गयी हैं. इनमें कृषि संसाधनों की क्षमता में वृद्धि और पारिस्थितिकी को दुरुस्त करना शामिल है. कृषि ऋण का लक्ष्य बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये करना और ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के लिए आवंटन 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये करना सराहनीय फैसला है.
लघु सिंचाई की तकनीकों को बढ़ाने के लिए नाबार्ड के तहत 5,000 करोड़ रुपये का माइक्रो इरिगेशन फंड तैयार किया गया है. इस बजट में माइक्रो इरिगेशन के लिए 10,000 करोड़ रुपये देने की पहल केंद्र सरकार की ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ की नीति के भी अनुरूप है. इससे एक करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में माइक्रो सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में तेजी से बढ़ सकेंगे.
कृषि क्षेत्र के लिहाज से बजट में एक महत्वपूर्ण पहल इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) के साथ 1000 मंडियों को जोड़ना है. किसानों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए इसकी जरूरत थी. इस महत्वपूर्ण फैसले से सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ेगी, किसान बेहतर कीमत पर अपने उत्पाद बेच पायेंगे और उन्हें प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों तरीके से लाभ होगा.
ई-नाम के तहत 1.68 करोड़ किसानों का रजिस्ट्रेशन किया गया है. उचित खरीदार और मूल्य नहीं मिलना किसानों की प्रमुख चिंता रही है. इस तरह के फैसले न सिर्फ किसानों की जरूरतों को पूरा करने की दिशा में जीनवदायी साबित होंगे, बल्कि इनसे कृषि क्षेत्र की कुछ अन्य गंभीर समस्याओं का समाधान भी हो सकेगा. भारत में सिंजेंटा भी अपनी सीएसआर पहल ‘आइ-क्लीन’ के तहत 2014 से ही दूरदराज के इलाकों में सब्जी मंडियों के निर्माण और आधुनिकीकरण का काम कर रही है और ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी हाट को समर्थन दे रही है.
किसान आंदोलन के बीच आये बजट में विस्तार से बताया गया है कि कैसे 2013-14 से 2020-21 के बीच गेहूं, धान और दालों की सरकारी खरीद तेजी से बढ़ी है. बजट में एक और बेहद महत्वपूर्ण पहल ‘ऑपरेशन ग्रीन स्कीम’ का दायरा बढ़ाते हुए खराब होनेवाले 22 उत्पादों को निर्यात की सूची में शामिल करना है. अभी इसे ‘टॉप्स’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें सिर्फ टमाटर, प्याज और आलू शामिल हैं. इसमें उत्पादों की संख्या बढ़ने से किसानों के पास लाभकारी खेती के विकल्प बढ़ेंगे और कृषि क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी.
जल जीवन मिशन के अंतर्गत 2.87 लाख करोड़ रुपये के आवंटन का उद्देश्य जल संरक्षण और स्वच्छता को बढ़ावा देना है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पर जोर दिये जाने का भरपूर लाभ किसानों को भी मिलेगा. यह अत्यंत सराहनीय कदम है.
देश में स्टार्ट अप इकोसिस्टम को गति देने के लिए भी कई महत्वपूर्ण पहलें की गयी हैं. यदि इसके अंतर्गत एग्री एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा मिले, तो गांवों में रहनेवाले युवाओं के लिए कृषि से जुड़े कारोबार के व्यापक अवसर उपलब्ध होंगे. कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ने से निश्चित रूप से इस क्षेत्र में तकनीक आधारित खेती को बढ़ावा मिलेगा, जिससे कम खर्च में अधिक उत्पादन संभव हो सकेगा. हालांकि एक और पहल एग्रो केमिकल्स पर जीएसटी की वर्तमान दर 18 प्रतिशत को न्यूनतम स्तर पर लाकर की जा सकती थी.
यह खासतौर से महत्वपूर्ण है क्योंकि एग्रो-केमिकल सेक्टर को एक अग्रणी सेक्टर के तौर पर देखा जा रहा है और भारत को एक उत्पादक हब के तौर पर विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं.
कुल मिलाकर यह बजट ग्रामीण क्षेत्र की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा. कृषि क्षेत्र अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तीसरे स्तंभ के रूप में स्थापित हो चुका है. बजट कृषि क्षेत्र और किसानों की समस्याओं के समाधान की राह प्रशस्त करेगा. शोधपरक फसल समाधान, संसाधनों का कुशलतापूर्वक विकास, पारिस्थितिकी तंत्र का नवीनीकरण और ग्रामीण समुदाय का पुनर्जीवित होना टिकाऊ खेती को सुनिश्चित करेगा. बजट में किसानों तथा खेत मजदूरों की चिंता मायने रखती है.
Posted By : Sameer Oraon