20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अर्थव्यवस्था की राह मुश्किल भरी

पंद्रह लाख रुपये से कम की सालाना आमदनी पर नये कर नहीं लगे हैं और कुछ छूट भी दी गयी है. लेकिन दो लाख रुपये मासिक से अधिक कमानेवालों पर नये करों से बोझ बढ़ा है.

मोहन गुरुस्वामी

mohanguru@gmail.com

अर्थशास्त्री

बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अनेक बार कहा कि इस बार कोई नया कर नहीं लगाया जा रहा है. इससे मुझे तत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश की याद आयी, जिन्होंने 1988 के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार घोषित होते समय प्रसिद्ध पंक्ति कही थी- मेरे होंठ पढ़ें, कोई नया कर नहीं! इन शब्दों ने उनके अगले तीन साल के कार्यकाल को परिभाषित किया और खर्च बढ़ाने व अधिक कर लेने का आग्रह करती अमेरिकी अर्थव्यवस्था ढह गयी.

साल 1992 में उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार बिल क्लिंटन थे, जिनके प्रचार प्रबंधक ने क्लिंटन के चुनाव कार्यालय की हर मेज पर यह पंक्ति लगा दी थी- यह अर्थव्यवस्था का मामला है, मूढ़! बुश के कार्यकाल में शीत युद्ध खत्म हुआ था और इराक में अमेरिका को बड़ी सैन्य जीत मिली थी, पर बुश एक कार्यकाल के बाद ही क्लिंटन से हार गये.

भारत जैसे अपेक्षाकृत बहुत गरीब देश में भी यही निष्कर्ष निकलता है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति ही राजनीतिक आयु का निर्धारण करती है. लेकिन प्रधानमंत्री की जय करनेवाले यही रट लगाते रहे कि अर्थव्यवस्था में बड़े संकुचन और अचानक लागू लॉकडाउन की वजह से लाखों प्रवासी कामकारों के बेरोजगार व बेघर होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार का चुनाव जीता था. लेकिन क्या उन्होंने चुनाव जीता था?

एनडीए को 34.86 फीसदी वोट मिले थे, जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यूपीए ने 36.20 फीसदी वोट हासिल किया था. एनडीए बहुत मामूली बहुमत के साथ सत्ता में आयी थी और 11 सीटों पर जीत का अंतर कुछ सौ वोटों का था. इसलिए यह मानना कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिन पर मौसम का असर नहीं होता, ठीक नहीं है. यह हमेशा अर्थव्यवस्था का मामला है, मूढ़!

पंद्रह लाख रुपये से कम की सालाना आमदनी पर नये कर नहीं लगे हैं और कुछ छूट भी दी गयी है. लेकिन दो लाख रुपये मासिक से अधिक कमानेवालों पर नये करों से बोझ बढ़ा है. जो व्यक्ति 26.5 लाख रुपये सालाना कमाता है, उसे अब 3.40 लाख की जगह 5.30 लाख रुपये बतौर कर देने होंगे यानी इसमें करीब 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. यह कोई छोटा बदलाव नहीं है. आयकर के अलावा भी कर लगाये हैं, जैसे पेट्रोल और डीजल पर.

इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब असर होगा. यातायात क्षेत्र में भारत में शोधित डीजल के 72 फीसदी हिस्से की खपत होती है, इसलिए इसकी खुदरा कीमत में पांच फीसदी की बढ़त का स्पष्ट प्रभाव दिखेगा. हर निम्न मध्यवर्गीय परिवार में एक दुपहिया वाहन जरूर होगा और उन्हें महंगी कीमत का अहसास होगा.

घर पर सामान पहुंचानेवाली अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बारे में सोचें. सबसे बड़ा ई-कॉमर्स खिलाड़ी आमेजन हर पैकेज पर दस रुपया देता है, चाहे उसका वजन कुछ भी हो, मात्रा कुछ भी हो या दूरी जो भी हो. सामान पहुंचानेवाला अपने वाहन का इस्तेमाल करता है और उसका खर्च उठाता है. हम ई-कॉमर्स सामानों के महंगे होने का अनुमान कर सकते हैं. लोगों को मोबाइल फोन, मोटर वाहन और उनके आयातित सामानों समेत अन्य चीजों के लिए अधिक कीमत देनी होगी. ऐसे में नये कर नहीं लगाने का दावा क्यों करना चाहिए? किसी ने कहा है कि दो चीजें निश्चित ही ऊपर जायेंगी- एक, हम और दूसरा, कर.

अखबारों और टीवी चैनलों ने सरकार के प्रिय लोगों को बजट पर टिप्पणी देने के लिए जुटाया. उन सबने इसे जोरदार, दूरदर्शी और लीक से हटकर बजट बताया. इसके अलावा वे और क्या कह सकते हैं या कहने की हिम्मत कर सकते हैं. एक चैनल पर तो संपादक को सारी प्रशंसा के बाद पूछना पड़ गया कि क्या वे आलोचना में भी कुछ कहना चाहेंगे. चूंकि वे पेशेवर अभिनेता नहीं है, इसलिए उनकी शर्मिंदगी पूरी तरह नहीं छुप सकी.

कई दशक पहले फिक्की के तत्कालीन अध्यक्ष लाला चरतराम ने बजट के समर्थन के बारे में पूछे जाने पर प्रसन्नता से कहा था कि ‘हम हर बजट का समर्थन करते हैं, चाहे सरकार कोई भी हो.’ अब जरा आंकड़ों पर सरसरी नजर डालते हैं. वित्त वर्ष 2020-21 का कुल व्यय 34.50 लाख करोड़ था. इस बजट में प्रस्तावित खर्च 34.83 लाख करोड़ है. पर धन कहां है? जो विचार दिया गया है, वह दीर्घकालिक है.

उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में अगले कुछ महीनों में चुनाव होनेवाले हैं. उसे 36 सौ किलोमीटर राजमार्ग बनाने के लिए अगले पांच सालों में 65 हजार करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा हुई है. लोगों और अर्थव्यवस्था को तो इस साल के खर्च से मतलब है. ऐसी ही घोषणा असम और बंगाल के लिए भी की गयी है. यह हाथ की सफाई भी नहीं, केवल राजनीतिक झांसा है.

सरकार पूंजी व्यय में 1.14 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि करना चाहती है और 2021-22 में 5.54 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का उसका प्रस्ताव है. इस मद में 2019-20 की तुलना में 2020-21 में 1.30 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी. इसका मतलब है कि असल में बढ़त की दर घटी है. लेकिन सभी बड़े अखबारों में पूंजी व्यय में बढ़त की प्रशंसा हुई है. सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है.

आर्थिकी के प्रमुख अखबार ने बड़े अक्षरों में लिखा- ‘स्वास्थ्य के मद में 82 फीसदी की बढ़त.’ एक राष्ट्रीय अखबार ने लिखा- ‘स्वास्थ्य एवं वेल-बीइंग में 137 फीसदी की बढ़त.’ लेकिन इसने नीचे छोटे शब्दों में जोड़ा कि यह बढ़त पेयजल एवं स्वच्छता (60,030 करोड़) और पोषण (2700 करोड़) के मदों को जोड़ने से हुई है, जो पहले अलग-अलग विभागों के तहत थे.

यह सही है कि स्वास्थ्य के मद में आवंटन (71,269 करोड़) बढ़ा है, पर यह महज नौ फीसदी की बढ़त है. जब पांडवों ने शोर किया था कि अश्वत्थामा मारा गया, तो शत्रु सेना के प्रमुख द्रोण ने समझा कि वे उनके बेटे के बारे में कह रहे हैं. उन्हें भरोसा नहीं हुआ, तो उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा कि क्या मेरा पुत्र मर गया है. युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि हां, अश्वत्थामा मारा गया, हो सकता है वह कोई हाथी हो, हो सकता है वह कोई व्यक्ति हो. उन्हें पता था कि वह हाथी ही है, पर कृष्ण ने उनसे झूठ या आधा सच बोलने को कहा था. युद्ध के शोर में द्रोण ने युधिष्ठिर को यह कहते हुए सुना कि हां, अश्वस्थामा मारा गया.

Posted By : Sameer Oraon

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें