संबंधों में बेहतरी
संबंधों में बेहतरी
भारत और ब्रिटेन के विदेश मंत्रियों के बीच परस्पर संबंध बेहतर करने के लिए दस साल की कार्ययोजना पर बनी सहमति एक बड़ी परिघटना है. इसके तहत दोनों देशों के बीच एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता प्रस्तावित है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक व रणनीतिक सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया गया है. कोरोना महामारी के संकट से जल्दी निकलने के लिए भी दोनों देश आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं.
महामारी के दौर में ब्रिटिश विदेश सचिव डॉमिनिक राब ऐसे दूसरे विदेश मंत्री हैं, जो भारत के दौरे पर आये हैं. पहले अमेरिकी विदेश सचिव माइक पॉम्पियो ने यात्रा की थी. राब की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गणतंत्र दिवस समारोह में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन मुख्य अतिथि होंगे.
वर्ष 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन मेजर ने इस समारोह में हिस्सा लिया था. इतने अंतराल के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री का आगमन संबंधों में बढ़ती गर्माहट को इंगित करता है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि दोनों देशों के संबंधों का यह एक नया दौर है. यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद से ब्रिटेन भारत के साथ व्यापार समझौते के लिए प्रयासरत है.
राब ने ठीक कहा है कि दोनों देशों के बीच अनेक क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का आयात-निर्यात बढ़ने की बड़ी संभावनाएं हैं. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए भारत को भी ऐसे समझौते की दरकार है. इसका एक पहलू यह भी है कि व्यापारिक और सामरिक मोर्चे पर चीन की आक्रामकता को रोकने की भी आवश्यकता दुनियाभर में महसूस की जा रही है. इसलिए वाणिज्य-व्यापार बढ़ाने के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति व सुरक्षा के लिए विभिन्न देशों का साथ आना जरूरी है.
इस क्षेत्र के सामुद्रिक संतुलन को बनाये रखने के लिए भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया पहले ही ‘चतुष्क’ मोर्चे का गठन कर चुके हैं. भारत ने ब्रिटेन से इस संबंध में स्पष्ट नीति घोषित करने को कहा है. विदेश मंत्रियों की इस बैठक तथा जनवरी में प्रधानमंत्री जॉनसन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत के बाद इस मसले में प्रगति की अपेक्षा है.
अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने तथा मध्य-पूर्व में स्थिरता में भी दोनों देश सहयोग कर सकते हैं. इसके अलावा आतंकवाद और कट्टरपंथ से निपटने की चुनौती भी दोनों देशों के सामने है.
परस्पर संबंध व सहयोग बढ़ाने के प्रयासों की सफलता की संभावना इस कारण बढ़ जाती है कि पिछले साल ही दोनों देशों की सरकारें नया जनादेश लेकर फिर से सत्ता में आयी हैं तथा उनके पास समझौते करने और उन्हें अमल में लाने के लिए बहुत समय है. दोनों देशों की निकटता का एक उदाहरण यह भी है कि अगले वर्ष ब्रिटेन की मेजबानी में हो रहे जी-सेवन की बैठक में प्रधानमंत्री जॉनसन ने प्रधानमंत्री मोदी को भी आमंत्रित किया है. यह निकटता विश्व समुदाय में भारत के बढ़ते महत्व का परिचायक भी है.
posted by : sameer oraon