भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर लंबे अंतराल के बाद शांति बहाल हुई है. युद्धविराम को लागू करने के नये संकल्प के पांच दिन बीत चुके हैं. रिपोर्टों के अनुसार, इस अवधि में घुसपैठ या गोलाबारी की घटनाएं नहीं हुई हैं. उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के बीच पहली बार 2003 में युद्धविराम हुआ था, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी ईमानदारी से इसका पालन नहीं किया है. समझौते के 17 सालों में इसके उल्लंघन की सबसे अधिक घटनाएं 2020 में हुई थीं.
पिछले साल हुईं कुल 5100 घटनाओं में 36 लोगों की मौत हुई थी और 130 लोग घायल हुए थे. साल 2019 में ऐसी घटनाओं की संख्या 3289 थी. इनमें 1565 घटनाएं अगस्त के बाद हुई थीं. उस महीने भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था. पाकिस्तानी गोलाबारी का एक उद्देश्य तो सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों को आतंकित करना होता है,
वहीं इसकी आड़ में पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों की घुसपैठ और हथियारों की तस्करी को भी अंजाम देती रही है. जम्मू-कश्मीर समेत देश के अलग-अलग क्षेत्रों में आतंक और हिंसा फैलाना पाकिस्तानी विदेश और रक्षा नीति का हिस्सा है. बीते पांच दिनों की शांति निश्चित रूप से उत्साहवर्द्धक है, किंतु पाकिस्तान की हरकतों के इतिहास को देखते हुए निश्चिंत नहीं रहा जा सकता है.
जानकारों का मानना है कि इस युद्धविराम की असली परीक्षा आगामी महीनों में होगी, जब पहाड़ों की बर्फ पिघलने लगेगी. ठंड के मौसम में बर्फ की वजह से घुसपैठ के रास्ते बंद हो जाते हैं. यदि 17 सालों का लेखा-जोखा देखा जाये, तो युद्धविराम वास्तव में केवल कागजों तक सीमित रह गया था. यह सही है कि भारत द्वारा सीमा पर कठोर रवैया अपनाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों से पाकिस्तान पर भारी दबाव है. आतंकी गिरोहों और सरगनाओं को शह और पनाह देने के कारण दुनियाभर में उसकी फजीहत हो रही है. इमरान सरकार की नीतियों के कारण उसकी अर्थव्यवस्था भी हिचकोले खा रही है.
इस स्थिति में चीन भी पाकिस्तान के संसाधनों का लगातार दोहन कर रहा है. ऐसे में यह भी संभव है कि मौजूदा युद्धविराम पर वह मजबूरी में सहमत हुआ है. भारत तो वर्षों से कहता आ रहा है कि यदि पाकिस्तान आतंक के हथियार को छोड़ दे, तो वह वार्ता और सहयोग के लिए तैयार है. दक्षिण एशिया में शांति व स्थिरता भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकताओं में है. भारत के आंतरिक मामलों में दखल और आतंक को बढ़ावा देकर पाकिस्तानी सरकार और सेना वहां की असली समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने की जुगत लगाते हैं. ऐसे कोई राजनीतिक, कूटनीतिक या रणनीतिक संकेत भी नहीं हैं, जो इंगित करते हों कि पाकिस्तान ने कश्मीर में अलगाव और आतंक बढ़ाने की अपनी दशकों पुरानी नीति को छोड़ देगा. इस मुकाम पर यह जरूरी है कि भारतीय रक्षा तंत्र और रणनीतिकार सतर्क रहें.
Posted By : Sameer Oraon