अर्थव्यवस्था को राहत की आस
पिछले साल महामारी ने शहरी जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया था, मगर ग्रामीण भारत बहुत हद तक इसके असर से बचा रहा था, लेकिन दूसरी लहर ने गांवों में भी तबाही मचा दी है.
कारोबारियों को महामारी से उत्पन्न मुश्किलों से उबारने के लिये रिजर्व बैंक ने पांच मई को कई उपायों की घोषणा की है, जिनमें कर्ज पुनर्गठन का विकल्प फिर से देना महत्वपूर्ण है. इस योजना में कंपनियों की वित्तीय देनदारियों के भुगतान की शर्तों को आसान बनाया जायेगा. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, लगभग 34 सौ कंपनियां इस योजना का लाभ लेने के लिए पात्र होंगी. इन कंपनियों ने बैंकों से लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है.
हालांकि, कर्ज पुनर्गठन का विकल्प चुननेवाली कंपनियों की तादाद काफी कम रह सकती है क्योंकि अभी तक महामारी का असर कुछ खास क्षेत्रों तक ही सीमित है. फिर भी, छोटे कारोबारों के नुकसान से इनकार नहीं किया जा सकता है. ये अभी पहली लहर के असर से नहीं उबर पाये हैं और दूसरी लहर उन्हें ज्यादा तकलीफ दे सकती है. क्रिसिल के मुताबिक, खुदरा, आतिथ्य, वाहन डीलरशिप, पर्यटन, रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों आदि पर महामारी का सबसे अधिक असर पड़ेगा. रसायन, दवा, डेयरी, सूचना व प्रौद्योगिकी और एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियों पर कोई खास असर नहीं होगा क्योंकि इन क्षेत्रों में मांग कम नहीं हुई है.
बैंकरों के अनुसार, पुनर्गठन में समस्या यह है कि बैंकों को कर्ज की 10 प्रतिशत रकम प्रावधान के तौर पर अलग रखनी होगी. इससे बैंकों को पूंजी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है. कारोबारियों को राहत देने के लिये ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आइबीसी) प्रक्रिया को एक बार फिर निलंबित करने की मांग की जा रही है और उम्मीद है कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सरकार इस मांग को मान लेगी.
इससे कंपनियों को अपनी वित्तीय स्थिति दुरुस्त करने का मौका मिलेगा. इस संहिता को अगले तीन या छह महीने के लिए निलंबित किया जाता है, तो कारोबारियों को बड़ी राहत मिलेगी. सरकार ने मार्च, 2020 में आइबीसी को मार्च, 2021 तक के लिए निलंबित कर दिया गया था, ताकि कंपनियों को लॉकडाउन से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सके. छोटे उद्यमों ने वित्त मंत्री से गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के वर्गीकरण के मानकों में बदलाव लाने और लोहा एवं स्टील जैसे प्रमुख कच्चे माल पर आयात शुल्क को तार्किक बनाने का आग्रह किया है.
औद्योगिक संगठनों के अनुसार, मौजूदा एनपीए वर्गीकरण के नियम सामान्य स्थिति के लिए हैं. एनपीए के नियमों में फिलवक्त बदलाव नहीं लाने से सूक्ष्म, लघु, मझौले उद्यमों (एमएसएमई) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. वाणिज्यिक बैंकों ने भी रिजर्व बैंक से एमएसएमई के कर्ज को एनपीए की श्रेणी में डालने के नियम को आसान बनाने का अनुरोध किया है.
रिजर्व बैंक लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के लिए हर महीने एक स्पेशल लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन के तहत 10,000 करोड़ रुपये की नीलामी करेगा. यह 14 अक्टूबर तक या बची हुई राशि के पूरी तरह से इस्तेमाल होने तक बरकरार रहेगा. सभी एसएफबी इस योजना में हिस्सा लेने के लिए पात्र होंगे. रिजर्व बैंक ने 50 हजार करोड़ रुपये के कोरोना महामारी पैकेज की घोषणा की है, जिसका मकसद टीका बनाने वाली कंपनियों, चिकित्सा उपकरण की आपूर्ति करने वालों, अस्पतालों तथा बीमारी का इलाज करा रहे रोगियों को रकम उपलब्ध कराना है.
बैंकों द्वारा आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा ऋण 31 मार्च, 2022 तक दिये जायेंगे, जिन्हें तीन सालों में वापस किया जा सकता है. बैंक इसके लिए रेपो दर पर पैसे जुटा सकते हैं. इसके तहत टीका निर्माताओं, टीका और चिकित्सा उपकरणों के आयातकों व आपूर्तिकर्ताओं, अस्पतालों, डिस्पेंसरियों, पैथोलॉजी लैब, ऑक्सीजन एवं वेंटिलेटर विनिर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं तथा कोविड की दवाओं के आयातकों और लॉजिस्टिक फर्मों एवं मरीजों को उपचार के लिए ऋण दिये जा सकते हैं.
बैंक ये ऋण सीधे या मध्यस्थ के जरिये दे सकते हैं और इसके लिए उन्हें एक कोविड ऋण खाता खोलना होगा. रिजर्व बैंक ने कहा कि ऋणदाता बैंक कोविड ऋण खाते के अधिशेष के अनुपात में अपनी अधिशेष राशि केंद्रीय बैंक के पास रेपो दर से 25 आधार अंक कम पर यानी 3.75 प्रतिशत पर जमा कर सकते हैं.
फिलहाल, बैंक अपनी अतिरिक्त राशि 3.35 प्रतिशत की रिवर्स रेपो दर पर केंद्रीय बैंक में जमा करते हैं. रिजर्व बैंक द्वारा दी जानेवाली यह राशि देश के छह लाख करोड़ रुपये के कुल स्वास्थ्य व्यय का लगभग नौ प्रतिशत है. इस प्रत्यक्ष सहायता से स्वास्थ्य क्षेत्र में तकरीबन 80,000 करोड़ रुपये की मांग पैदा होने की उम्मीद है और इससे जैव रसायन, रबड़, प्लास्टिक आदि क्षेत्रों को भी लाभ मिलेगा.
पिछले साल महामारी ने महानगरों और छोटे शहरों के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया था, मगर ग्रामीण भारत बहुत हद तक इसके असर से बचा रहा था, जिससे उपभोक्ता वस्तु बनाने और बेचने वाली कंपनियों को सहारा मिला था, लेकिन दूसरी लहर ने गांवों में भी तबाही मचा दी है. गांवों के उपभोक्ता बेजा खर्च करने से बच रहे हैं और आपात स्थिति के लिए पैसा बचा रहे हैं.
लॉकडाउन की वजह से ट्रैक्टर, दोपहिया वाहन और उपभोक्ता वस्तुओं व उपकरणों की बिक्री में भी कमी आ रही है. महामारी से निपटने के लिये सरकार और रिजर्व बैंक के उपायों को काफी नहीं माना जा सकता है. मौजूदा परिप्रेक्ष्य में एनपीए के नियमों में ढील देने और आइबीसी की प्रक्रिया को टालने की जरुरत है. इस मुश्किल वक्त में जीवन और आजीविका दोनों को बचाने की आवश्यकता है.