गणतंत्र दिवस पर जेल के नाम चिट्ठी
डॉ वर्तिका नंदा
जेल सुधारक
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एक साल होने को है. लॉकडाउन लगने से आज करीब सामान्य होने की स्थिति तक जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया है. एहतियातों के बीच जीवन की सड़क पर पहिये फिर से दौड़ने लगे हैं. लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां जिंदगी आज भी रुकी है और वह जगह है- जेल. आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर यह चिट्ठी जेल के नाम है. कोरोना ने यह सबक दिया है कि जिंदगी को जानने के लिए बहत दूर जाने की जरूरत नहीं है.
जिंदगी के बड़े सच हमारे अपने दायरे में ही हैं. बीते कई दिन उन सभी के लिए बहुत मुश्किल के थे, जिन्होंने न जेल देखी है, न समझी है. ऐसा पहली बार हुआ है जब बाहर के कई लोग खुद को जेल के बंदी जैसा ही महसूस करने लगे. लॉकडाउन में बहुत से लोगों ने अपनी जिंदगी की तुलना तक जेल से कर डाली. दुनिया का बड़ा हिस्सा कई बंदिशों की जेल में रहा. इससे यह उम्मीद भी हुई थी कि उन्हें आपकी तकलीफ का अंदाजा होगा. लेकिन तब भी उन्हें जेल में रहनेवालों का कोई ख्याल न आया.
कोरोना के चलते कई बंदी रिहा किये गये थे. कई शर्त पर छूट गये, कुछ परोल पर गये. यह खबर तो बनी, लेकिन उनकी बात कहीं नहीं हुई, जो संकट के समय में राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते रहे. जेल में हैं, उनके हाथ पहले से ज्यादा उदासी और चिंताएं हैं. भीगी आंखें लिये कई बंदी इस समय में उनकी मदद में जुटे हैं, जिन्हें न उनकी पहचान पता है, न नाम. वे मास्क बना रहे हैं. सेनिटाइजर भी. अपने हिस्से की रोटी दान कर रहे हैं.
अपनी कड़ी मेहनत का पैसा भी. लॉकडाउन के बीच जेलें अनजानी और अछूती रहीं, लेकिन कोरोना संकट को लेकर उनके काम में कहीं कोई कमी नहीं आयी. महाराष्ट्र में पांच जेलों को पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया गया. इस दिशा में एक बड़ा कदम यह भी था कि जेल अधीक्षक और सभी जरूरी कर्मियों को निर्देशों के साथ 13 अप्रैल को ही उन्हीं की जेलों में लॉकडाउन कर दिया गया. वे बाकी बंदियों के साथ एक अलग परिसर में रहने लगे. भारत की जेलों में करीब 114 प्रतिशत की ओवरक्राउडिंग है और साथ ही कम से कम 33 प्रतिशत स्टाफ की कमी भी.
ऐसे में जेलों के लिए सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है क्योंकि भीड़ भरी जेल में वायरस आने का मतलब यह है कि पूरी जेल तुरंत उससे प्रभावित हो सकती है. ऐसा होना बेहद खतरनाक होगा. कई जेलों ने इस दौर में शानदार मिसालें कायम की हैं. वे अनकही न रह जाएं, इसलिए देश की जेलों को समर्पित तिनका तिनका अभियान इन कोशिशों को आपस में बांधने के प्रयास में जुटा हुआ है. देश की 1400 जेलों की भीड़ या अनुशासनहीनता की खबर पढ़ने और बनाने के आदी लोगों के लिए जेलों ने कोरोना के दौर में एक नया समाज रच डाला है. जेल में लिखी जा रही इबारतों को कभी न कभी समय पढ़ेगा जरूर.
Posted By : Sameer Oraon