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महामना मालवीय आज भी प्रेरक

महामना मालवीय आज भी प्रेरक

महामना मदन मोहन मालवीय का भारतीय समाज और राजनीति के पुनर्निर्माण में बहुआयामी योगदान है. उन्होंने समाज सुधार से लेकर धर्म स्थापना और आधुनिक शिक्षा के विस्तार तक स्थायी महत्व के अनेकों कार्यों का संपादन किया. यह अविश्वसनीय सत्य है कि वे अकेले ऐसे भारतीय थे, जिन्होंने चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और हिंदू महासभा के अध्यक्ष के पद का गौरवपूर्ण दायित्व संभाला.

एक तरफ वे भारतीय नदियों की रक्षा के प्रथम नायक हैं. उन्होंने गंगा की रक्षा के लिए अनशन भी किया था, इसके लिए राष्ट्रीय अभियान भी चलाया और गंगा को बचाया. दूसरी तरफ, उन्होंने हिंदू धर्म के आंतरिक सुधार के लिए अस्पृश्यता उन्मूलन के बहुत ही जटिल, लेकिन क्रांतिकारी अभियान का संरक्षण किया. भारतीय राजनीतिक चेतना के निर्माण में मालवीय जी ने पत्रकार से लेकर केंद्रीय विधायक परिषद के सदस्य तक की कई भूमिकाओं का निर्वाह किया.

वे अपने जीवन में परंपरा और आधुनिकता के संयोजन के श्रेष्ठ प्रतीक थे. सनातनी ब्राह्मण परिवार में पैदा होने का उनमें एक आत्म गौरव का भाव भी था, लेकिन वे समाज में व्याप्त छुआछूत को दूर कर हिंदू धर्म में सुधार करने को भी अपनी जिम्मेदारी मानते थे.

यह बहुत ही उल्लेखनीय क्रांतिकारी तथ्य है कि मदन मोहन मालवीय जी ने 1916 में यानी आज से लगभग एक शताब्दी पहले ही भारत के अाधुनिकीकरण और औद्योगीकरण में योगदान के लिए उच्च शिक्षा के महत्व को पहचान कर भारत की सांस्कृतिक राजधानी और दुनिया के सबसे पुराने ज्ञान केंद्र काशी में एक विश्व स्तर के विश्वविद्यालय की स्थापना कर भारतीय समाज को ज्ञान शक्ति के प्रति आकर्षित किया.

दूसरे शब्दों में, मालवीय जी की जीवन यात्रा राष्ट्र निर्माण का एक अनुकरणीय उदाहरण है. मालवीय जी स्त्रियों के योगदान को संभव बनानेवाले अति प्रभावशाली राष्ट्रनायक भी थे.

आज 21वीं सदी के भारत को महात्मा गांधी और बाबासाहेब आंबेडकर की तरह ही महामना मालवीय की भी बहुत जरूरत है, क्योंकि हम समाज सुधार में अब गतिमान नहीं रह गये हैं. हमारे वर्तमान के लिए उनका व्यक्तित्व और उनका योगदान बेहद प्रासंगिक हैं.

आज हमें कम से कम पांच मोर्चों पर चल रहे आत्ममंथन का समाधान करना है. पहला, हमारी शिक्षा व्यवस्था चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए प्रभावशाली कैसे बनें? शिक्षा प्रणाली कई तरह के दोषों से घिर चुकी है और उनके निवारण का कोई ठोस प्रयास भी कहीं दिखाई नहीं देता. दूसरा, हमारा देश सामाजिक न्याय के लिए निर्धारित लक्ष्यों, विशेषकर अस्पृश्यता निवारण और स्त्रियों को दयनीय दशा से निकालकर विकास यात्रा का सहभागी बनाना, को किस तरह पूरा करें? हर स्तर पर विषमता और भेदभाव निरंतर गहरे होते जा रहे हैं.

स्वतंत्रता के कई दशक बीत जाने के बाद भी समता, समानता और सहभागिता का घोर अभाव दुखद है. तीसरा, हम अपनी संस्कृतियों से जुड़े सकारात्मक तत्वों की रक्षा के लिए क्या यत्न करें? हमें अपने मूल्यों, अपनी नैतिकता, अपने कर्तव्यों के विविध आयामों और उनके आधारों पर मंथन करना होगा. चौथा, हमारी राष्ट्रीय राजनीति समाज के लिए व्यापक तौर पर उपयोगी कैसे बने? राजनीति यदि समाज के व्यापक कल्याण के आदर्शों पर अग्रसर नहीं होगी, तो उससे लाभ के बजाय हानि ही हासिल होगी. और पांचवां, प्रकृति और पर्यावरण, जिसे- नदी, वन, वनस्पति आदि का संवर्धन कैसे करें?

आज हम देख रहे हैं कि प्रकृति के दोहन और पर्यावरण के क्षरण से उत्पन्न हुई स्थितियां हमारे अस्तित्व के लिए प्रश्नचिन्ह बन चुकी हैं. इन पांचों सवालों पर मालवीय जी ने अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में हर मोड़ पर कट्टरपंथी ताकतों और विदेशी औपनिवेशिक शासकों के गठजोड़ का असरदार मुकाबला किया. उनके कार्यों, गतिविधियों और संदेशों में हम अपनी समस्याओं को दूर करने के प्रभावी सूत्र पा सकते हैं.

यह दुर्भाग्य की बात है कि हम अपने पुरखों की, राष्ट्रनिर्माताओं की बनायी राह पर आगे चलने में कई कारणों से कमजोरियां दिखा रहे हैं. आज के दौर में राजनीतिज्ञ शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार बनाने के बजाय निजी संपत्ति के संचय का माध्यम बनाने में जुटे हुए हैं. छुआछूत, उत्पीड़न और महिलाओं के जीवन की बाधाओं को दूर करने के बजाय हर समस्या का वोट बैंक बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. हिंदू धर्म समेत सभी धर्मों के शुभ तथ्यों को भुलाया जा रहा है.

राजनीति के अपराधीकरण और दिशाहीनता के बारे में कुछ कहना जरूरी नहीं रह गया है. पर्यावरण तो पूरी तरह से प्रगति के बहाने दुर्दशाग्रस्त है. ये सब गंभीर चिंता के विषय हैं, जिन पर हमें प्राथमिकता से ध्यान देने की आवश्यकता है. इसलिए, महामना मालवीय आज पहले से भी कहीं अधिक अनुकरणीय और आदरणीय हैं.

Posted by : sameer Oraon

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