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प्लास्टिक का कहर

एक नये शोध में पता चला है कि देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के शहरों में वायु प्रदूषण को खतरनाक बनाने में भी प्लास्टिक का योगदान है.

शहरों की नालियों से नदियों में और फिर नदियों के जरिये समुद्र को व्यापक पैमाने पर प्रदूषित करते प्लास्टिक के कचरे को लेकर लंबे समय से चिंता जतायी जा रही है. प्लास्टिक शहरों के कूड़ा प्रबंधन के लिए भी गंभीर चुनौती बन चुका है. अब एक नये शोध में पता चला है कि देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के शहरों में वायु प्रदूषण को खतरनाक बनाने में भी प्लास्टिक का योगदान है. दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में है, जहां कुछ महीनों में कई दिनों तक दमघोंटू कोहरा छा जाता है.

देश-विदेश के विशेषज्ञों की एक टीम ने पाया है कि इस कोहरे की वजह हवा में सूक्ष्म क्लोराइड तत्वों की मौजूदगी है. ऐसा घना कोहरा बीजिंग जैसे अन्य प्रदूषित शहरों में नहीं होता. वैश्विक स्तर पर ऐसे तत्व आमतौर पर तटीय इलाकों में पाये जाते हैं, जिनका निर्माण समुद्री लहरों और हवा के संपर्क से प्राकृतिक तौर पर होता है. लेकिन दिल्ली और अन्य शहरों में ये तत्व प्लास्टिक मिले घरेलू कचरे और प्लास्टिक जलाने की वजह से पैदा होते हैं.

इनमें कुछ योगदान इलेक्ट्रॉनिक सामानों की रिसाइक्लिंग में इस्तेमाल होनेवाले रसायनों का भी है. हालांकि प्लास्टिक या कचरा जलाने पर कानूनी रूप से पाबंदी है, किंतु कूड़ा प्रबंधन की लचर व्यवस्था तथा जागरूकता के अभाव के कारण इसे रोकना मुश्किल है. कचरा जमा करने की कई जगहों पर भी आग जलती रहती है. भारत में हर साल लगभग साढ़े नौ मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें करीब चालीस फीसदी कूड़े को तो जमा भी नहीं किया जाता है.

कुछ आकलनों में यह मात्रा कम है, फिर भी इतने बड़े स्तर पर इस्तेमाल को देखते हुए ठोस नीतिगत पहल की आवश्यकता है. स्वच्छ भारत अभियान से कुछ सुधार हुआ है, लेकिन दिल्ली समेत किसी भी शहर या कस्बे में सड़कों व गलियों में प्लास्टिक बिखरा हुआ देखा जा सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि प्लास्टिक कचरे की समस्या भारत और विश्व के लिए सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौती है.

उल्लेखनीय है कि दुनिया में निर्मित होनेवाले प्लास्टिक का करीब अस्सी फीसदी हिस्सा कचरे के रूप में धरती, पानी और वातावरण में शामिल हो जाता है तथा सदियों तक नष्ट नहीं होता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत पहले आह्वान कर चुके हैं कि एक बार इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक से बनी वस्तुओं पर रोक लगायी जानी चाहिए, लेकिन इस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है.

पूरी पाबंदी की समय सीमा 2022 तक तय की गयी थी, पर विभिन्न कारणों से इसे आगे बढ़ाना पड़ सकता है. कोरोना महामारी से चल रही लड़ाई में भी मजबूरी में प्लास्टिक का बहुत अधिक इस्तेमाल करना पड़ा है. इस वजह से कचरे की मात्रा भी बढ़ी है. भूमि, जल, वायु और खाद्य प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या है. यदि प्रदूषण की रोकथाम को प्राथमिकता दी जाये, तो बीमारियों के उपचार पर होनेवाले भारी खर्च को भी कम किया जा सकता है.

Posted By : Sameer Oraon

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