स्वास्थ्य सेवा में एआइ

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भविष्य में होनेवाली समस्याओं का आकलन भी किया जा सकता है. डाटा के केंद्रीकृत होने से कई तरह के परीक्षणों और अनुसंधानों में भी मदद मिल सकती है.

By संपादकीय | February 10, 2021 9:49 AM
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देश के सभी नागरिकों को कम खर्च में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराना एक बड़ी चुनौती है. आबादी का बड़ा हिस्सा गरीब और निम्न आय वर्ग से है. ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है. ऐसे में लोगों को मजबूरी में शहरों में स्थित निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ता है. हाल के वर्षों में सरकारी बीमा योजनाओं तथा स्वास्थ्य कार्यक्रमों से स्थिति बेहतर हो रही है तथा अगले साल के बजट में स्वास्थ्य के मद में आवंटन बढ़ाने से भविष्य के लिए उम्मीदें भी बढ़ी हैं.

सरकार हर जिले में मेडिकल कॉलेज बनाने की तैयारी में भी है. लेकिन आज भी सकल घरेलू उत्पादन का बहुत मामूली हिस्सा ही इस मद में खर्च होता है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने में आधुनिक तकनीक बड़ी मददगार हो सकती है. डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में हो रही प्रगति का इस्तेमाल कर अत्याधुनिक चिकित्सा को दूर-दराज तक पहुंचाना संभव है. इसके तहत लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित आंकड़ों व सूचनाओं की पड़ताल विशिष्ट क्षमता से लैस कंप्यूटरों द्वारा की जाती है.

डाटा और जांच को न केवल भारत के, बल्कि अन्य देशों के विशेषज्ञों को दिखाकर सलाह लेना संभव है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भविष्य में होनेवाली समस्याओं का आकलन भी किया जा सकता है. डाटा के केंद्रीकृत होने से कई तरह के परीक्षणों और अनुसंधानों में भी मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए, यदि एक क्षेत्र में कुछ खास बीमारियों के लक्षण हैं, तो उस इलाके की मिट्टी, पानी, हवा आदि का परीक्षण करने की जरूरत समय रहते रेखांकित की जा सकती है.

कोरोना महामारी के दौर में कई तरह के आंकड़े जुटाये गये हैं. यदि अत्याधुनिक कंप्यूटर उनकी पड़ताल करें, तो भविष्य में ऐसी किसी महामारी के होने पर वैसे लोगों की पहचान आसानी से हो सकेगी, जिनके स्वास्थ्य पर सबसे अधिक खतरा होगा. इसी तरह से बाद में हो सकनेवाली बीमारियों को समय रहते रोका जा सकेगा. इसका आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का आकार 2023 तक लगभग 133 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जो 2017 की तुलना में दुगुने से भी ज्यादा है.

तकनीक के इस्तेमाल से इस प्रगति का लाभ वैसे लोग भी उठा सकते हैं, जो महंगे इलाज करा पाने में सक्षम नहीं हैं. कोरोना संकट में हमने देखा कि स्मार्टफोन और टेलीमेडिसिन तकनीक से घर बैठे कम खर्च में उचित उपचार कराना आसान है. एक आकलन के मुताबिक, अस्पताल या क्लीनिक जाने के बजाय टेलीमेडिसिन का उपयोग कर 2025 तक भारतीय 10 अरब डॉलर की बचत कर सकते हैं. दवा से संबंधित अनुसंधानों को प्रयोगशाला से मरीज तक पहुंचने में औसतन 12 साल लगते हैं, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस अवधि को बहुत कम कर सकता है. उम्मीद है कि सरकारी और निजी क्षेत्र के संस्थान इस तकनीक को व्यापक तौर पर अपनाने की दिशा में अपनी गति तेज करेंगे.

Posted By : Sameer Oraon

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