दुनियाभर में बांग्लादेश की खूब चर्चा है कि महामारी के आलम में भी उसकी आर्थिक रफ्तार थमी नहीं, जो चार प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है, जबकि भारत की स्थिति बेहाल है. अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय को भारत से बेहतर पाया है. यह प्रगति इसलिए भी एक मानक है क्योंकि आज से 50 साल पहले जब बांग्लादेश का जन्म एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हुआ था, तब अमेरिका के तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने कहा था कि बांग्लादेश एक ऐसा देश है, जो जन्म के साथ मरने की कगार पर खड़ा है.
यह दुनिया के लिए एक बास्केट देश बनेगा, जो अन्य देशों के रहमो-करम पर जिंदा रहेगा. लेकिन पांच दशकों के सफर ने राजनीतिक पंडितों की सोच और सिद्धांत को बदल दिया. न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए बांग्लादेश एक मॉडल बन गया है. जहां पाकिस्तान की चर्चा केवल आतंकवाद और महाशक्तियों के बूते पर रेंगनेवाले देश के रूप में की जाती है, वहीं बांग्लादेश की पहचान एक उद्यमी देश के रूप में है, जो 2040 में विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा दिखायी देगा.
बांग्लादेश को मुसीबतों से लगातार जूझना पड़ा है. राजनीतिक उथल-पुथल और प्राकृतिक आपदाएं मुसीबत का सबब बनती रही हैं. आज से एक दशक पहले पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पादन बांग्लादेश से 60 अरब डॉलर अधिक था, वहीं आज बांग्लादेश उसे बहुत पीछे छोड़ चुका है. बांग्लादेश 320 अरब डॉलर की आर्थिक शक्ति है, जबकि पाकिस्तान महज 265 के अंक पर रुका हुआ है. उसमें भी बड़ा हिस्सा दूसरे देशों के सहयोग से मिला है.
बांग्लादेश ने इस बात की अहमियत को समझा कि व्यापार देश की रीढ़ है, अनुदान नहीं. पाकिस्तान या अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तरह वह चीन की नयी आर्थिक पहल का हिस्सा नहीं बना. चीन के साथ उसकी सहभागिता शर्तों के साथ बनी रही. पश्चिमी देशों ने भी बांग्लादेश के नये अवतार को गले लगाया. बांग्लादेश और भारत की सीमा दक्षिण एशिया के किसी भी देश से लंबी है. बांग्लादेश ने इस सीमा को एक अवसर के रूप में देखा, जबकि अन्य देश, विशेषकर पाकिस्तान, भारत विरोधी मुहिम में लगे रहे.
जो कुछ शिकायतें थीं, उसे भी भारत की वर्तमान सरकार ने दूर कर दिया. दक्षिण एशियाई देशों का एक नकारात्मक पहलू राष्ट्रीयता से जुड़ा है. मुसीबतें तब आयीं, जब उनकी राष्ट्रीयता भारत विरोधी ढर्रे पर बनने लगी. अनेक देशों ने पाकिस्तान मॉडल पर अमल करने की कोशिश की. बांग्लादेश में भी 1975 और 1982 में भारत विरोधी लहर पैदा करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन बाद में शेख हसीना ने उसे पनपने नहीं दिया और उसका सकारात्मक स्वरूप बनाया, जिसका नतीजा दुनिया के सामने है.
बांग्लादेश की प्रगति की तीसरी अहम वजह है सैन्य खर्चो में कटौती. उसके बदले सरकार ने आर्थिक और सामाजिक कमजोरियों को दूर करने के प्रयास शुरू किये. कपड़ा उद्योग को तरजीह दी गयी, जिसमें महिलाओं की भागीदारी सामाजिक परिवर्तन का मजबूत आधार बन गयी. लैंगिक समानता भी बढ़ने लगी. इसके साथ स्वास्थ्य सेवा को भी बल मिला.
यही कारण है कि कोरोना महामारी के दौरान भी बांग्लादेश की हालत उतनी खराब नहीं हुई, जैसा अन्य देशों में देखा गया. खाड़ी देशों में कार्यरत बांग्लादेश के लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. करीब 80 लाख बांग्लादेशी विदेशों में बसे हुए हैं. उनके द्वारा भेजी जानेवाली रकम देश के कुल घरेलू उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा है. देश के विकास से बेरोजगारी पर भी अंकुश लगा है और जनसंख्या भी नियंत्रित है.
वर्ष 2008 बांग्लादेश के सामाजिक व आर्थिक नियोजन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण वर्ष था, जब उसने ‘विजन 2021’ की घोषणा की थी. इसके तहत उसने 2021 तक मध्यम आय अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इसके उपरांत बांग्लादेश ने ‘विजन 2041’ अपनाया, जिसके तहत 2041 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है. दक्षिण एशिया में शांति, सुरक्षा व स्थिरता के लिए जरूरी है कि बांग्लादेश में आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता तथा पाकिस्तान व चीन के साथ अवांछित गठजोड़ न बढ़े.
यह बांग्लादेश और भारत के हितों के प्रतिकूल है. भारत-बांग्लादेश संबंध बीते डेढ़ दशक में निरंतर मजबूत हुए है. बांग्लादेश के विकास में भारत की भूमिका अहम रही है. जब मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका गये थे, तब पूरा बांग्लादेश अपने स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती समारोह मना रहा है. उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था- ‘हम दोनों पड़ोसी देशों ने जटिल मुद्दों को सौहार्दपूर्वक हल किया है. हमारा व्यापार ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है, एक-दूसरे के देशों में आर्थिक गतिविधियों की सहायता करता है. हमने कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भी अच्छी प्रगति की है.’
इस संदर्भ में अगर भारत-नेपाल संबंध को देखें, तो इसके आधार ज्यादा ठोस हैं. भौगोलिक समीकरण से लेकर इतिहास और संस्कृति तक एका है. दोनों देशों की सैन्य व्यवस्था से लेकर सुरक्षा तंत्र तक प्रभावी जुड़ाव है. समस्या विश्वास की कमी से हुई है, जो नेपाल की अंदरूनी राजनीति से पैदा हुई है. विश्वास को हासिल करने के लिए इन कमियों को दुरुस्त करना होगा, जैसा शेख हसीना ने बांग्लादेश में किया. नेपाल उस मॉडल को अपनाकर एक सफल और शांतिपूर्ण राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था स्थापित कर सकता है.