महामारी के बढ़ते प्रकोप और लगातार हो रही मौतों के बीच धीरज रखना कतई आसान नहीं है. हम में से बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनका कोई परिजन या परिचित बीमार है. हम सभी आशंकाओं से घिरे हैं. ऐसी स्थिति में सकारात्मक या सामान्य रह पाना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन यह भी सच है कि हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है. इस समय हौसला बनाये रखने की बड़ी जरूरत है. हम अपने आसपास देखें, तो असंख्य चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी, प्रयोगशालाओं में कार्यरत लोग, सफाईकर्मी, दवा देनेवाले लोग, ऑक्सीजन पहुंचानेवाले आदि दिन-रात जुटे हुए हैं.
ये लोग न केवल अथक अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, बल्कि संक्रमण का खतरा भी इन्हें ही सबसे अधिक है. देश के अनेक राज्यों में बीमार लोगों की बड़ी संख्या के कारण अस्पतालों पर दबाव बहुत बढ़ गया है. कहीं बिस्तर नहीं है, तो कहीं ऑक्सीजन नहीं है. कई ऐसे संक्रमित हैं, जिन्हें अस्पतालों की ठीक से जानकारी नहीं है. कई परिवार ऐसे हैं, जिनके घर में बच्चे और बुजुर्ग हैं. ऐसे में बहुत से लोग अपने स्तर पर जानकारियां देने, जरूरत मुहैया कराने तथा देखभाल के काम में जुटे हुए हैं.
लोग इसके लिए सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. कई संस्थाएं मदद के लिए आगे आयी हैं. मदद का हाथ बढ़ाने में धर्म, जाति, वर्ग और क्षेत्र जैसे विभाजन मिट गये हैं. अस्पताल भी एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं. सरकारी कोशिशों के साथ सामाजिक सहकार ने महामारी की चुनौती के बरक्स दूसरा मोर्चा खोल दिया है. ऐसे प्रयासों का आधार सकारात्मक सोच और हौसले का होना ही है. यही सामूहिकता गौरवपूर्ण भारतीयता है.
ऑक्सीजन ढो रहीं रेलगाड़ियों और अन्य वाहनों के चालकों और सहायकों के प्रति भी हमें आभार व्यक्त करना चाहिए. इस प्राणवायु की उपलब्धता जल्दी हो सके, इसके लिए कई संयंत्रों में कामगार दिन-रात जुटे हुए हैं. कुछ को छोड़कर हम अनगिनत योद्धाओं को कभी जान न सकेंगे, लेकिन उनके बिना यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती. हम खबरों में लगातार पढ़ रहे हैं कि वयोवृद्ध भी गंभीर संक्रमण को मात देकर घर लौट रहे हैं.
बीते एक साल से अधिक समय में कुल संक्रमण के केवल 16.25 प्रतिशत मामले ही अभी सक्रिय हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि बहुत अधिक संख्या में लोग संक्रमण मुक्त हो रहे हैं. करीब 70 प्रतिशत मामले आठ राज्यों से हैं, जहां कोरोना महामारी की दूसरी लहर का कहर जारी है. अकेले महाराष्ट्र में ही लगभग 25 प्रतिशत मामले हैं, लेकिन वहां भी रोजाना संक्रमण में, मामूली ही सही, गिरावट होने लगी है.
संक्रमण के बारे में स्वयं सचेत रहने और दूसरों को जागरूक करने से लेकर मुश्किल स्थितियों में मदद करने तक हम जितना योगदान कर सकते हैं, करना चाहिए. एक मई से सभी वयस्कों को टीका देने का अभियान शुरू हो रहा है. उसमें भागीदारी भी हमारा दायित्व है. यह मुसीबत सबके सहकार से ही टलेगी.