भारतीय टीके की धूम

दो महीने से भी कम समय में भारत ने 71 देशों को 5.86 करोड़ खुराक दी है और यह सिलसिला अभी चल रहा है. इनमें से 80.75 लाख खुराक बिना किसी शुल्क के उपहार के रूप में दी गयी है.

By संपादकीय | March 15, 2021 2:26 PM

ते साल भारत समेत समूची दुनिया अनिश्चितता के साये में रही थी, लेकिन नये साल में हालात बेहतर होने लगे हैं. देश के भीतर और बाहर कोरोना से लड़ी जा रही जंग में दो भारतीय टीकों की अहम भूमिका है. इनमें से एक टीका देश में ही विकसित किया गया है. जनवरी के मध्य से हमारे देश में वैश्विक इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान जारी है, पर भारत दूसरे देशों को भी टीके की खुराक मुहैया करा रहा है. स्थापित मानवतावादी नीति के तहत दो महीने से भी कम समय में भारत ने 71 देशों को 5.86 करोड़ खुराक दी है और यह सिलसिला अभी चल रहा है. इनमें से 80.75 लाख खुराक बिना किसी शुल्क के उपहार के रूप में दी गयी है तथा टीकाकरण के वैश्विक गठबंधन की मुहिम के जरिये 1.65 करोड़ से अधिक खुराक उपलब्ध करायी गयी है. लगभग 3.40 करोड़ खुराक व्यावसायिक स्तर पर भेजी गयी है. एक ओर विकसित और धनी देश अपनी जरूरत से अधिक टीके जमा करने की होड़ में लगे हैं,

वहीं भारत की कोशिशों से कई विकासशील और गरीब देशों को फायदा हो रहा है. वैश्विक आबादी के 16 प्रतिशत हिस्सेवाले विकसित देशों के पास 60 प्रतिशत टीकों की खुराक है. सामान्य चर्चा में भले ही भारतीय पहल को वैक्सीन कूटनीति की संज्ञा दी जा रही हो, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी संकट में अंतरराष्ट्रीय मदद में भागीदारी का भारत का इतिहास रहा है. सबसे पहले भारतीय टीकों की खेप पड़ोसी देशों और विकासशील मित्र देशों को भेजी गयी थी. पाकिस्तान से तनाव के बावजूद वैश्विक मुहिम के तहत भारत में बने टीके वहां भेजने की तैयारी चल रही है. आंकड़े इंगित करते हैं कि भारत द्वारा भेजी गयी खेप का कम-से-कम आधा हिस्सा सबसे कम विकसित देशों को तथा इसका एक-तिहाई भाग छोटे द्वीपीय देशों को मिला है. पिछले सप्ताह आयोजित चतुष्क (क्वाड) देशों- भारत, अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया- के नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन में कोरोना महामारी पर काबू पाने की चिंता प्राथमिकताओं में रही.

भारत टीकों की उपलब्धता के संदर्भ में इस समूह द्वारा की जा रही पहल के केंद्र में है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवान ने कहा है कि चारों देश 2022 के अंत तक आसियान, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों और अन्य हिस्सों में टीकों की एक अरब खुराक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस संकल्प को अमेरिकी तकनीक, जापानी व अमेरिकी वित्त तथा ऑस्ट्रेलियाई परिवहन क्षमता के साथ भारतीय उत्पादन क्षमता के परस्पर सहयोग व सहकार से साकार किया जाना है. भारत की तुलना में टीकों के निर्यात में चीन बहुत पीछे छूट चुका है और इसका असर वर्चस्व बढ़ाने की उसकी नीति पर भी पड़ा है. भारत ने टीकों के जरिये अपनी वैज्ञानिक व उत्पादन क्षमता के उदाहरण के साथ दुनिया को मदद पहुंचाने की नीति का आदर्श भी प्रदर्शित किया है.

Posted By : Sameer Oraon

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