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नये स्टार्टअप को प्रोत्साहन

कहां पर किन उत्पादों की आवश्यकता है और वहां क्या संसाधन उपलब्ध हैं. इनके आधार पर हमें इकोनॉमिक मैपिंग करनी होगी. स्थानीय स्तर पर उद्यम शुरू तो हो रहे हैं, लेकिन वे असफल हो जा रहे हैं, क्योंकि वे भेेड़चाल का हिस्सा हैं.

By अरविंद मोहन. | January 21, 2021 11:15 AM

देश में उद्यमिता विकास और कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किये जा रहे हैं. स्टार्टअप पर 2015 के बाद से ही फोकस किया जा रहा है. बीच में ठहराव की स्थिति बनी थी. हालांकि, 2018 तक परिदृश्य में परिवर्तन स्पष्ट होने लगा था. इस दौरान कुछ बड़े व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये गये. साल 2018 के आसपास आठ-नौ बिलियन डॉलर की फंडिंग उपलब्ध हुई और 2019 में भी इसी तरह की वृद्धि दिखायी पड़ी.

हालांकि, कोविड-19 के चलते 2020 में स्टार्टअप को बड़ा झटका लगा. जो प्रयास किये जा रहे थे और उद्यमिता प्रोत्साहन का जो माहौल बन रहा था, वह अचानक ठहर गया. इस पृष्ठभूमि के बाद अब हमें आगे की शुरुआत करनी है. जब हम स्टार्टअप की बात करते हैं, तो यह समझना होगा कि एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) के इकोसिस्टम को कैसे प्रोत्साहन दें. पिछले आठ-दस महीनों में अर्थव्यवस्था के सामने गंभीर चुनौतियां आयी हैं.

पिछले 30 वर्षों से हमारी अर्थव्यवस्था उस तरह का रोजगार पैदा नहीं कर पा रही है, जैसी हम अपेक्षा करते हैं. इस सदी के शुरुआती दशक में जीडीपी तेजी से बढ़ी, लेकिन उसके अनुपात में रोजगार नहीं आया. जब देश में 1991 में आर्थिक सुधार लाया गया, वह उद्योग केंद्रित सुधार था. हम देख रहे हैं 2006-07 के बाद से उसमें भी गिरावट की प्रवृत्ति रही है. देश की ये कुछ गंभीर समस्याएं हैं, जिन पर संजीदगी से विचार करने की जरूरत है.

भारत अभी एक संरचनागत चुनौती के दौर से गुजर रहा है. यह इसलिए भी है कि जब हमने पहली पीढ़ी का सुधार किया था, तो उसे हमने पूरा नहीं किया. अब एक चुनौती कृषि और एमएसएमई सेक्टर की तरफ से है. दोनों ही क्षेत्रों में संतोषजनक विकास नहीं दिखा, जिससे अर्थव्यवस्था में एक तरह का संरचनागत असंतुलन बन रहा है. हमारे सामने एक बड़ा उदाहरण चीन का है. कुछ दशकों में चीन भी तेजी से विकसित होनेवाली अर्थव्यवस्था रही है. लेकिन, वह भी एक प्रकार की मंदी में जा रही है. उनके सामने भी एक संरचनागत चुनौती है.

भारत में अभी अर्थव्यवस्था को गति देने की जरूरत है. बीते आठ-दस महीनों में अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है. अर्थव्यवस्था 24 प्रतिशत तक नीचे लुढ़क गयी थी. माना जा रहा है कि नये वित्त वर्ष में भी अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौती बरकरार रहेगी. हालांकि, अब सुधार शुरू हो चुका है. इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में भारत सरकार किस प्रकार के कदम उठा रही है. क्या उस परिप्रेक्ष्य में ये खरे उतरते हैं? सरकार 1000 करोड़ रुपये का फंड तैयार कर रही है.

इससे स्टार्टअप को गति देने की कोशिश की जायेगी. यह एक अच्छी पहल है. बीते आठ-दस महीनों में स्टार्टअप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश का बड़ा हिस्सा दुनिया के दो क्षेत्रों में जा रहा था, एक उत्तरी अमेरिका में और दूसरा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जितनी भी फंडिंग और स्टार्टअप ग्रोथ दिखी, वह चीन में सर्वाधिक थी. साल 2019 तक यानी कोविड से पहले तक की तस्वीर देखें, तो चीन में स्टार्टअप में 800 बिलियन डॉलर का निवेश हो चुका था. इस अवधि में भारत में मात्र 80 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ था.

हालांकि, भारत में भी तेजी आ रही थी और कई बड़े घराने खड़े हो गये, जिन्हें हम यूनिकॉर्न कहते हैं. इन स्टार्टअप की सफलता यहां की क्षमता और संभावनाओं को दिखाती है. लेकिन, बीते महीनों में निवेश में गिरावट आयी है, उससे उन स्टार्टअप पर अधिक असर पड़ा, जो शुरुआत कर चुके थे, लेकिन उनकी ग्रोथ आनी बाकी थी. वहां से निवेश खत्म हो गया. बड़े स्टार्टअप, जो सफल हो रहे थे, उन्हें भी दिक्कतें आयीं, लेकिन तुलनात्मक तौर पर वह कम थीं. अब 1000 करोड़ का फंड तैयार किया जा रहा है.

इससे स्टार्टअप को मदद मिलेगी. लेकिन, फंड देना ही पर्याप्त नहीं होगा. आमतौर पर 25 करोड़ तक के निवेश और सात साल से कम समय से काम कर रही कंपनी को स्टार्टअप की श्रेणी में रखा जाता है. हमें समझना होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में एमएमएसई सेक्टर की बड़ी भूमिका है. साथ ही हमें देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्र की आवश्यकताओं और मांगों को भी समझने की जरूरत है. स्टार्टअप फंड के साथ-साथ हमें इकोनॉमिक मैपिंग करनी होगी. देश में ज्यादातर स्टार्टअप इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वालों द्वारा शुरू किये गये हैं. शायद इन्हें वैश्विक और देश की संभावनाओं की समझ थी. भारत में सफल स्टार्टअप इनोवेशन आधारित थे.

भारत जैसे देश में हम छोटा इकोसिस्टम नहीं, बल्कि देश को परिवर्तित करने और आगे ले जाने वाले सिस्टम को विकसित कर रहे हैं. इसमें इनोवेशन एक हिस्सा है और दूसरा हिस्सा अवसर है. देश में अलग-अलग प्रदेशों में और बड़े प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में विविध संभावनाएं हैं. कहां पर किन उत्पादों की आवश्यकता है और वहां क्या संसाधन उपलब्ध हैं. इनके आधार पर हमें इकोनॉमिक मैपिंग करनी होगी.

स्थानीय स्तर पर उद्यम शुरू तो हो रहे हैं, लेकिन वे असफल हो जा रहे हैं, क्योंकि वे भेेड़चाल का हिस्सा हैं. किसी एक ही क्षेत्र में एक ही प्रकार के उद्यमों की भरमार हो जाती है, जिससे उनके असफल होने की संभावना बढ़ जाती है. समय आ गया है कि फंड के साथ-साथ विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों की इकोनॉमिक मैपिंग की जाये, ताकि हमारे संभावित नवउद्यमियों को पता चल सके कि किस उत्पाद को, वे किस तरह से बेच सकते हैं. उन्हें पता चल सके कि वे अपने उद्यम को कैसे खड़ा कर सकते हैं. ऐसा करके हम देश के औद्योगिक माहौल को अपने देश की जनता के लिए उपयोगी बना पायेंगे.

Posted By : Sameer Oraon

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