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डिजिटलीकरण का बढ़ता दायरा

कोरोना वायरस के मौत के तांडव ने सत्ता के खोखलेपन को उजागर कर दिया है. यह महामारी राजा या रंक- किसी को भी नहीं बख्शती.

तकनीक आधारित बैंकिंग ने ग्राहकों के हाथों में बैंक की चाभी दे दी है. ऑटोमेटेड या ऑटोमेटिक टेलर मशीन (एटीएम) या डेबिट कार्ड से नकदी की निकासी सबसे लोकप्रिय साधन है. एटीएम कार्ड का सबसे अधिक इस्तेमाल बड़े शहरों में शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को पैसे भेजने या छोटे व्यापारियों द्वारा माल खरीदने में किया जाता है. ऑनलाइन खरीदारी, टिकट आरक्षण, बिल भुगतान, प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) से खरीदारी आदि में भी इसका उपयोग होता है. इससे ग्राहक रकम जमा करने और लोन खातों, मसलन- ओवरड्राफ्ट, केसीसी आदि से नकदी निकालने या अंतरित करने, बिल पेमेंट, खाते के बारे में पूछताछ, मिनी स्टेटमेंट, मोबाइल रिचार्ज आदि कर सकते हैं.

ग्राहक को इससे दूसरे फायदे भी हैं, जैसे- 24 घंटे बैंकिंग सुविधा की गारंटी, समय एवं पैसों की बचत, देश-विदेश में नकदी निकासी का विकल्प, खाते का प्रबंधन, अपराधों को कम करने में सहायक, संबंधित तकनीक के इस्तेमाल के प्रति आपकी रुचि बढ़ाने में मददगार, वित्तीय समावेश बढ़ाने में सहायक, वित्तीय अनुशासन विकसित करने में मददगार आदि.

डिजिटल बैंकिंग को जोखिममुक्त बनाने के लिये एटीएम कार्ड के विकल्प के तौर पर इंस्टैंट मनी ट्रांसफर (आइएमटी) प्रणाली को विकसित किया गया है. इसके तहत मोबाइल एवं कोड की मदद से कार्ड के बिना एटीएम मशीन एवं दुकानों से नकदी निकाली जा सकती है. इस सुविधा के पीछे बैंकों का मकसद ग्राहकों को बेहतर और सुरक्षित सेवा मुहैया कराना है, क्योंकि एटीएम कार्ड के खोने, उसकी क्लोनिंग, खरीदारी के दौरान डाटा हैक होने जैसे जोखिमों की आशंका होती है. आइएमटी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जिनका बैंक में खाता नहीं है, वे भी इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं.

मौजूदा समय में ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है. इस सुविधा से ग्रामीण कुछ हद तक अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं, क्योंकि इसका लाभ दुकानों के माध्यम से लिया जा सकता है. डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने में भीम एप का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. राष्ट्रीय भुगतान निगम (यूपीआइ) और भारतीय रिजर्व बैंक ने मिलकर इस एप को तैयार किया है.

विमुद्रीकरण के बाद सभी नकदी की किल्लत का सामना कर रहे थे. इसलिए, इस एप को इस समस्या से निजात दिलाने के उपाय के तौर पर देखा गया है. इस एप की मदद से बैंकों के खाताधारक डिजिटल लेनदेन कर सकते हैं, जिसकी प्रक्रिया बहुत ही सरल है. इसका उपयोग स्मार्टफोन की मदद से भी किया जा सकता है और इसके बिना भी. इसके लिए इंटरनेट, डेबिट व क्रेडिट कार्ड आदि की जरूरत नहीं होती है. यह एप एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआइ) प्रणाली पर आधारित है.

इसी प्रणाली पर पेटीएम, गूगल आदि एप भी काम करते हैं. आज भीम एप में बायोमेट्रिक रीडर को जोड़कर फिंगरप्रिंट की मदद से किसी भी बैंक के खाताधारकों, जिनका खाता आधार से जुड़ा है, को कहीं भी भुगतान प्राप्त करने की सुविधा मिल रही है. इस एप के आने के बाद बैंक ग्राहकों के साथ-साथ दुकानदारों को भी फायदा मिल रहा है, क्योंकि भीम एप के जरिये किये जाने वाले भुगतान पर दुकानदारों को कोई सेवा शुल्क नहीं देना पड़ रहा है.

इस सुविधा का लाभ लेने के लिए ग्राहक को भीम एप में आधार संख्या को प्रविष्ट करने के बाद जिस बैंक में आधार से जुड़ा खाता है, उसका चुनाव करना होता है. इस प्रक्रिया में फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल पासवर्ड की तरह किया जाता है. जिन ग्राहकों के स्मार्टफोन में फिंगरप्रिंट सेंसर की सुविधा है, उनके लिए अलग से बायोमेट्रिक रीडर की जरूरत नहीं है. कारोबारी भी इस एप का फायदा उठा सकते हैं और बहुत से कारोबारी फायदा उठा भी रहे हैं.

गैर सरकारी संगठन कोइयुस एज द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में देशभर में छत्तीसगढ़ डिजिटलीकरण के मामले में शीर्ष स्थान पर है, जबकि महाराष्ट्र, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हैं. वर्ष 2019 की रिपोर्ट श्रृंखला में दूसरी है, पहली रिपोर्ट को अक्टूबर, 2017 में जारी किया गया था. वर्ष 2017 की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर था, जबकि छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर. दूसरे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों, जैसे- गोवा, बिहार, चंडीगढ़, असम आदि ने डिजिटलीकरण के मामले में विशेष बढ़त हासिल की है.

इस संगठन ने 2021 की रिपोर्ट में कहा है कि उद्यम और उपभोक्ताओं को मिलाकर भारत का कुल घरेलू आइटी खर्च 2021 में 8.8 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने और राशि में 273,776 करोड़ रूपये के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है. डिजिटल लेनदेन को अभी एक लंबा सफर तय करना है. इसमें बाधाएं भी आयेंगी. जरूरत यह है कि राह की तमाम अड़चनों को दूर किया जाए क्योंकि डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना वक्त की मांग है.

विमुद्रीकरण और कोरोना महामारी की वजह से डिजिटल लेनदेन में जबर्दस्त इजाफा हुआ है. इसका एक कारण यूपीआइ प्रणाली का आगाज भी है. कैशलेस अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और कर चोरी की गुंजाइश बहुत ही कम होती है. करेंसी की प्रिंटिंग नहीं होने से सरकारी खर्च में कमी, बैंकों को नकदी के रखरखाव से छुटकारा आदि भी सुनिश्चित होता है। जाहिर है, डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के निरंतर आगे बढ़ने से आज सरकार एवं आम जन दोनों को फायदा हो रहा है.

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