भारतीय वैक्सीन की धूम

इसके अलावा हमारे देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भी सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है. कई देशों के शासनाध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अनेक संस्थाओं के प्रमुखों तथा महामारी विशेषज्ञों ने भारत की उपलब्धि और टीका मुहैया कराने की कोशिशों की सराहना की है. इस क्रम में अमेरिका के एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डॉ पीटर हॉटेज की यह टिप्पणी उल्लेखनीय है कि भारतीय टीकों ने दुनिया को बचाया है और इस योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए.

By संपादकीय | March 9, 2021 1:31 PM

भारत समेत विभिन्न देशों में अनेक संस्थान कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए टीकों के विकास में लगे हैं. इन प्रयासों से कुछ टीके उपलब्ध हो चुके हैं, तो कुछ परीक्षण के अलग-अलग चरणों में हैं. भारत ने दो वैक्सीन का न केवल निर्माण किया है, बल्कि कई देशों में उन्हें भेजा भी जा रहा है. इनमें से एक टीका तो भारत में ही विकसित किया गया है.

इसके अलावा हमारे देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भी सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है. कई देशों के शासनाध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अनेक संस्थाओं के प्रमुखों तथा महामारी विशेषज्ञों ने भारत की उपलब्धि और टीका मुहैया कराने की कोशिशों की सराहना की है. इस क्रम में अमेरिका के एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डॉ पीटर हॉटेज की यह टिप्पणी उल्लेखनीय है कि भारतीय टीकों ने दुनिया को बचाया है और इस योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए.

पश्चिमी देशों में निर्मित और वैश्विक स्तर पर उपलब्ध टीकों की खपत मुख्य रूप से विकसित देशों में हो रही है. अनेक कंपनियों ने अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी है. टीकों की कीमत अधिक होने तथा विकसित देशों द्वारा बड़े पैमाने पर उनकी खरीद की वजह से बहुत सारे विकासशील और अविकसित देशों को वे टीके नहीं मिल पा रहे हैं. इसके बरक्स भारत ने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में अनेक देशों को टीका भेजा है.

अब तक करोड़ों खुराक भेजी जा चुकी हैं और इनमें से करीब 37 फीसदी टीके अनुदान के रूप में दिये गये हैं. यह सिलसिला लगातार जारी है. इस महामारी के संकट में ऐसी उदारता का कोई और उदाहरण नहीं है. अनेक विकसित देश टीके में इस्तेमाल होनेवाली सामग्री के निर्यात पर रोक लगाने से लेकर अपनी जरूरत से कहीं अधिक टीकों को जमा करने में लगे हैं, जबकि उनके पास धन व संसाधन की कमी नहीं है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय टीकों की बढ़ती मांग तथा उनसे संबंधित अनुमतियों को बाधित करने के चिंताजनक प्रयास भी हो रहे हैं. कोरोना काल में भारतीय दवा एवं टीका उद्योग के व्यापक अनुभव का फायदा भी दुनिया को मिला है. इसी वजह से भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा गया है.

कम संसाधनों के बावजूद भारत ने महामारी के प्रसार को भी नियंत्रित किया है तथा अब टीकाकरण अभियान में भी सिरमौर बना हुआ है. यह याद रखा जाना चाहिए कि टीका बनाने और लगाने में पूर्ववर्ती अनुभवों के बावजूद भारत को इतने बड़े स्तर पर व्यस्क आबादी को टीका देने का कोई अनुभव नहीं था.

देश की लगभग 15 फीसदी आबादी को पहली खुराक दी जा चुकी है. स्वास्थ्य मंंत्री डॉ हर्षवर्द्धन ने कहा है कि अब भारत इस जंग में जीत के करीब है. लेकिन कुछ जगहों में अभी भी संक्रमण फैल रहा है. ऐसे में हमें अपनी कोशिशों को तेज करने के साथ सावधानी बरतते रहना चाहिए.

Posted By : Sameer Oraon

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