वस्त्र उद्योग का प्रदूषण

प्लास्टिक के कपड़ों का त्वचा और श्वसन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है. कपड़ों में फॉर्मेल्डिहाइड त्वचा की एलर्जी, आंखों से पानी निकलने का कारण बनता है और यह घातक कैंसरकारक भी है.

By मेनका गांधी | May 6, 2021 8:07 AM

पृथ्वी और उसके सभी निवासियों को केवल खाई जानेवाली वस्तुएं ही नहीं मार रही है, बल्कि पहने जानेवाली वस्तुएं भी इसमें शामिल हैं. जब आप कोई कपड़ा खरीदते हैं तो आप जैवमंडल और स्थलमंडल के बीच चयन करते हैं. जैवमंडल एक कृषि क्षेत्र है जहां कपास, लिनन (फ्लैक्स से बना), पटसन- यहां तक कि रेशम (शहतूत के पेड़) उगाये जाते हैं.

स्थलमंडल पृथ्वी का सुरक्षात्मक आवरण है. इससे जीवाश्म ईंधन को निकाला और पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक कपड़ों में बदला जाता है. समझदार इंसान किसी अक्षय संसाधन का चयन करेगा. हालांकि, सभी वस्त्रों का 70 प्रतिशत गैर-नवीकरणीय ईंधन से आता है. हम प्लास्टिक, नायलॉन, एक्रिलिक, पॉलिएस्टर पहन रहे हैं.

यहां तक कि बनारस की अद्भुत साड़ियां जो सभी दुल्हनों के लिए विरासत वाली वस्तु थीं, अब पॉलिएस्टर के साथ मिश्रित हैं. भोजन के समान ही फैशन एक कृषि विकल्प है. सब्जियों और अनाज पर ध्यान देना और इसके बारे में कृषक समुदाय से पूछताछ करना आम बात है, लेकिन हम फैशन उद्योग पर ध्यान नहीं देते हैं.

बांस और सफेदा जैसे पेड़ आधारित वस्त्रों के लिए जंगलों को काटकर बागानों में बदला जा रहा है. भारत में कपास पर नियोनिकोटिनॉइड कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जो मधुमक्खियों के विनाश के लिए जिम्मेदार है. पॉलिएस्टर/ नायलॉन जंगलों को नष्ट करनेवाले बड़े पैमाने पर खनन के लिए जिम्मेदार है. अगली समस्या रंगों की है. कपड़ा कार्बनिक कपास से बना हो सकता है लेकिन इसका रंग सिंथेटिक रंगों से आता है.

अनुमान है कि विश्व स्तर पर उत्पादित रसायनों में 25 प्रतिशत का इस्तेमाल कपड़ों के लिए किया जाता है. रंगों को कपड़े पर चढ़ाने के लिए कैडमियम, मरकरी, टिन, कोबाल्ट, लेड और क्रोम जैसी भारी धातुओं की आवश्यकता होती है और ये 60-70 प्रतिशत रंगों में मौजूद होती हैं.

कपड़ा उद्योग भारत के सभी उद्योगों में सबसे अधिक प्रदूषणकारी है. दुनियाभर में कपड़े तेल के बाद प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं. यह उद्योग वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 10 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है और कार्बन डाइऑक्साइड का पांचवां सबसे बड़ा उत्सर्जक है. यह जल प्रदूषण करनेवाली शीर्ष तीन उद्योगों में से एक है.

एक टी-शर्ट का बनाने के लिए 2600 लीटर पानी आवश्यक है. नेशनल ओशिनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशंस मरीन डेबरिस प्रोग्राम के अनुसार हर बार जब आप सिंथेटिक सामग्रियों को धोते हैं, तो वे लाखों प्लास्टिक माइक्रोफाइबर छोड़ते हैं. माइक्रोफाइबर एक प्रकार का माइक्रोप्लास्टिक है. यह मानव बाल कणों से पतला होता है. धागे इतने छोटे होते हैं कि वे अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से सीधे समुद्र में पहुंच जाते हैं. प्लैंकटन जैसे समुद्री जीव गलती से इन छोटे प्लास्टिकों को भोजन समझ लेते हैं.

फ्लोरिडा माइक्रोप्लास्टिक अवेयरनेस प्रोजेक्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने तटीय पानी के नमूने एकत्र किये. उन्हें फिल्टर किया और माइक्रोप्लास्टिक्स की जांच के लिए उनका विश्लेषण किया, तो 89 प्रतिशत नमूनों में प्लास्टिक का कम से कम एक टुकड़ा था. वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड में 0.2 प्रतिशत से वार्षिक वृद्धि हो रही है और इसका एक हिस्सा नायलॉन और पॉलिस्टर के उत्पादन से आता है.

वर्ष 2015 में पॉलिस्टर वस्त्रों के उत्पादन से लगभग 706 बिलियन किलोग्राम ग्रीनहाउस गैसें निकली जो 185 कोयले से चलनेवाले विद्युत संयंत्रों के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है. प्लास्टिक के कपड़ों का त्वचा और श्वसन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है. यह पुरुषों को संतान उत्पत्ति में असमर्थ बनाता है. कपड़ों में फॉर्मेल्डिहाइड त्वचा की एलर्जी, आंखों से पानी निकलने का कारण बनता है और यह घातक कैंसरकारक भी है.

यदि आप मानव निर्मित कृत्रिम कपड़े का उपयोग करना बंद कर देते हैं, तो खनन कम हो जायेगा और आप कुछ जंगलों को बचा सकते हैं. चूंकि, इनमें से कोई भी कृत्रिम सामग्री बायोडिग्रेडेबल नहीं है. रेयान बड़े पैमाने पर वनों की कटाई का कारण बनता है क्योंकि पेड़ों को छीलना पड़ता है. बांस को भी बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए.

एक अध्ययन में पाया गया है कि हर सेकेंड में वस्त्र एक ट्रक कचरे के रूप में निकलता है. कोपेनहेगन फैशन समिट ने बताया कि हर साल लैंडफिल में डंप किये गये 92 मिलियन टन ठोस कचरे के लिए फैशन जिम्मेदार है. सिंथेटिक फाइबर के अपघटन में 200 साल तक का समय लग सकता है. हर साल एक मिलियन टन से अधिक कपड़ा फेंका जाता है.

प्रतिवर्ष अनुमानतः 150 बिलियन कपड़ों का उत्पादन किया जाता है, यानी प्रत्येक व्यक्ति के लिए लगभग 20 नये वस्त्र. पीनाटेक्स, फिलीपींस में उगाये जानेवाले अनानास की पत्तियों से बना एक प्रकार का वस्त्र है. इसका उत्पादन पारंपरिक चमड़े की तुलना में बहुत अधिक टिकाऊ है. इसके लिए कम पानी और किसी हानिकारक रसायन की आवश्यकता नहीं होती है जो वन्यजीवों के लिए पारिस्थितिक रूप से विषाक्त हो.

बचे हुए पत्ते के कचरे का पुनःच्रकण किया जाता है और इसका उर्वरक या बायोमास के लिए उपयोग किया जाता है. सोया फैब्रिक एक पर्यावरण अनुकूल वस्त्र है, जो खाद्य उत्पादन के पश्चात सोयाबीन के बचे हुए छिलके से बनाया गया है. केवल आर्गेनिक रंगों वाली आर्गेनिक कपास खरीदें, इससे आप दुनिया को बचा पायेंगे.

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