Loading election data...

क्वाड सम्मेलन और वैश्विक नजरिया

संक्रमण के स्रोत का पता लगाने के लिए ग्लासगो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वायरस के 150 नमूनों के अनुवांशिक अनुक्रमों का विश्लेषण किया. बताया कि वायरस का जीन पिछली महामारी के नमूने के समान है.

By संपादकीय | March 12, 2021 6:50 AM

प्रो मनमोहिनी कौल

अंतरराष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ

manmohinikaul@gmail.com

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड वर्चुअल सम्मेलन कई मायनों में महत्वपूर्ण है. भारत चाहता भी है कि यह संस्थागत रूप ले, लेकिन अभी बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है. हालांकि, इस समूह को लेकर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया काफी सक्रिय हैं. क्वाड बनने के पीछे कई तरह के मुद्दे हैं. अभी वैक्सीन डिप्लोमेसी हो रही है. चीन का पहले से बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव है. दक्षिण चीन सागर में चीन के बर्ताव को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं.

पूर्वी चीन सागर में कभी जापान के साथ, तो कभी फिलीपींस के साथ उनका टकराव रहा है. नेविगेशन की स्वतंत्रता बाधित हो रही है. वहीं, भारत का नजरिया हमेशा समावेशी और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुपालन का पक्षधर रहा है. भारत चाहता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी तरह के टकराव की स्थिति न रहे. अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए हम कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते हैं, जिससे चीन के साथ तनाव की स्थिति उत्पन्न हो. क्वाड किस तरह से संस्था का रूप लेता है, काफी हद तक यह भारत पर निर्भर करेगा, क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत सबसे महत्वपूर्ण देश है. आपसी सहयोग के मामले में इसका रिकॉर्ड अच्छा रहा है.

आसियान समेत अनेक संगठनों के साथ भी भारत का सहयोग और इसकी भागीदारी बेहतर है. हमारी लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट पॉलिसी में आसियान देश महत्वपूर्ण हैं. भारत इन देशों के साथ अपने संबंधों में सतत सुधार का पक्षधर है. हालांकि, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया, क्योंकि हमें लगा कि उसके कई प्रावधान हमारे राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं हैं. उसमें चीन का फायदा अधिक है, अगर वह बदलेगा, तो हम हस्ताक्षर करेंगे. इससे उन देशों के साथ हमारे संबंध खराब नहीं हुए.

हमने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव पर हस्ताक्षर नहीं किया यानी हमने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप फैसला किया. म्यांमार में मौजूदा घटनाक्रम की हम आलोचना तो करते हैं, लेकिन उसमें हमारा दखल नहीं है. चीन का ऐसे मामलों में बर्ताव अच्छा नहीं रहा है.

चीन जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करता रहा है, उससे अनेक देशों पर असर पड़ता है. ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ उनके अपने मसले हैं. अमेरिका के साथ कई वर्षों से तमाम मुद्दों पर आपसी तनाव है. भौगोलिक स्थिति के कारण भी हमारी भूमिका महत्वपूर्ण है. ‘हिंद-प्रशांत’ शब्द इस्तेमाल किये जाने पर भी चीन आपत्ति जता चुका है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि चीन हमारा पड़ोसी देश है और व्यापारिक साझेदार भी.

हाल के दिनों में सीमा पर तनाव रहा है. आज रिश्ते खराब हैं, हो सकता है कि आगे रिश्ते अच्छे हो जाएं. क्वाड को ध्यान में रखते हुए हम आपसी भागादारी को बेहतर बनाने पर फोकस करेंगे. साथ ही सैन्य सहयोग जैसे मसले पर सावधानी बरतेंगे. यह सही है कि इन देशों के साथ हमारे सैन्य अभ्यास होते हैं और उनके साथ नौसैन्य भागीदारी भी है, खासकर ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारा सहयोग काफी मजबूत हो गया है. हालांकि, हम अब भी गुटनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप ही काम कर रहे हैं.

हम नहीं चाहेंगे कि हम एकतरफा हो जाएं और एक गुट का हिस्सा बन जाएं. अमेरिका भी चाहता है कि इससे यह न महसूस हो कि एक अलग तरह का ग्रुप बन रहा है. आसियान देशों में चीन को लेकर नाराजगी है. कंबोडिया, लाओस जैसे छोटे देश भी चीन की भूमिका को लेकर आशंकित रहते हैं. भारत ने कभी ऐसा कोई काम नहीं किया है.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत हमारा कई देशों के साथ बेहतर सहयोग है. हालांकि, म्यांमार में जारी राजनीतिक गतिरोध के कारण थोड़ी ठहराव की स्थिति उत्पन्न हुई है. चीन ने भी भारत के साथ सहयोग और भागीदारी को बेहतर बनाने पर जोर दिया है. गलवान प्रकरण और अरुणाचल प्रदेश में उत्पन्न तनाव के बावजूद वे रिश्ते को सुधारने के इच्छुक हैं. दूसरी ओर, अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते काफी महत्वपूर्ण हैं. अमेरिका में भारतवंशियों की भूमिका बढ़ रही है. कई तरह के आपसी सहयोग के लिए हम अमेरिका की तरफ देख रहे हैं.

कुछ लोगों ने इस बात का अंदेशा जताना शुरू कर दिया था कि ट्रंप के बाद अमेरिका के साथ हमारे संबंध कहीं प्रभावित न हो जाएं. चीन पर विश्वास करना मुश्किल है, क्योंकि 1962 के बाद से ही उसका रिकॉर्ड भरोसा करने के लायक नहीं रहा है. नेहरू जी ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया था, लेकिन चीन का रवैया हमेशा गलत रहा है. उसके विस्तारवादी रुख के कारण कई देशों के साथ उनके संबंध खराब हुए हैं. लद्दाख में उनका रवैया शर्मनाक रहा है. वे हमारे खिलाफ पाकिस्तान का इस्तेमाल करते रहे हैं. अभी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ हमारे रिश्ते काफी आगे बढ़ चुके हैं.

अमेरिका में नेतृत्व परिवर्तन के बाद उम्मीद की जा रही है कि आपसी संबंध बेहतरी की ओर बढ़ेंगे. बाइडेन प्रशासन में कई अहम पदों पर भारतीय मूल के लोगों को जिम्मेदारी दी गयी है. बुश के जमाने से ही भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगति हो रही है. अमेरिका को भारत पर विश्वास है. भारत अपनी स्थिति पर हमेशा कायम रहा है. यहां तक कि आसियान देशों को भी हम पर पूरा विश्वास है. यह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है. चीन अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करता रहा है, जिससे उसका कई देशों के साथ तनाव है. अभी ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच नाराजगी है. चीन इस मसले पर अमेरिका के हस्तक्षेप पर नाखुशी जाहिर कर चुका है. अमेरिका चीन की मंशा पर लगातार सवाल खड़े करता रहा है. चीन का उत्तर कोरिया के साथ भी संबंध है.

यही वजह है कि अमेरिका कई ऐसे मुद्दों पर चीन की भूमिका को लेकर नाराज है. इस क्षेत्र को लेकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जिस तरह से नीतियां अपनायी थीं, उसे ही अब बाइडेन आगे बढ़ा रहे हैं. क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के मसले पर बाइडेन प्रशासन का रुख ओबामा की ही तरह है. नौपरिवहन की स्वतंत्रता एक अहम मुद्दा है और इसे सुनिश्चित करने में अमेरिका और भारत जैसे देशों की बड़ी भूमिका है. व्यापारिक हितों का भी ध्यान रखना आवश्यक है. उम्मीद है कि क्वाड में मौजूदा चुनौतियों और वैक्सीन जैसे मुद्दों पर भी प्रमुखता से चर्चा होगी.

Posted By : Sameer Oraon

Next Article

Exit mobile version