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सोशल मीडिया पर लगाम की तैयारी

फेक न्यूज बड़ी चुनौती है. यह समाज में भ्रम और तनाव भी पैदा कर देती है. सोशल मीडिया की खबरों के साथ सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति का पता लगाना मुश्किल है.

आशुतोष चतुर्वेदी

प्रधान संपादक

प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

समय-समय पर यह बात सामने आती रही है कि सोशल मीडिया अनियंत्रित हो गया है. यह बात सच भी है कि सोशल मीडिया फेक न्यूज का बड़ा माध्यम बन गया है. स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि यह भेद कर पाना कठिन है कि कौन-सी खबर सच है और कौन-सी फर्जी. एक और मुश्किल है कि आपको इसके स्रोत का पता ही नहीं चलता है. यह एक-दूसरे से फारवर्ड होती हुई आप तक पहुंचती है. फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी बढ़ती जा रही है कि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

चुनावी मौसम में तो इनकी बाढ़ आ जाती है. वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार, 2020 तक भारत में लगभग 70 करोड़ लोग कंप्यूटर या मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे. अनुमान है कि 2025 तक यह संख्या बढ़ कर 97.4 करोड़ तक पहुंच जायेगी. दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले सबसे ज्यादा लोग चीन के बाद भारत में हैं. जाहिर है, भारत इंटरनेट का बहुत बड़ा बाजार है.

आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करनेवालों की संख्या से इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं. भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, फेसबुक के 40 करोड़ और ट्विटर के एक करोड़ से अधिक यूजर्स हैं.

केंद्र सरकार ने हाल में इंटरनेट मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म (ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म) के लिए गाइडलाइंस जारी की हैं. अब नेटफ्लिक्स-अमेजन जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म हों या फेसबुक-ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, सबके लिए सख्त नियम बना दिये गये हैं. नये दिशानिर्देशों के अनुसार, शिकायत के 24 घंटे के अंदर इंटरनेट मीडिया से आपत्तिजनक सामग्री हटानी होगी.

इसके अलावा कंपनियों को एक शिकायत निवारण तंत्र और शिकायतों का निबटारा करनेवाले ऑफिसर को भी रखना होगा. शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर उसे रजिस्टर्ड करना होगा और 15 दिनों में उसका निबटारा करना होगा. सरकार तीन महीने में डिजिटल कंटेंट को नियमित करने वाला कानून लागू करने की तैयारी में है.

केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि भारत में इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्मों का स्वागत है. सरकार आलोचना के लिए तैयार है, लेकिन इंटरनेट मीडिया के गलत इस्तेमाल पर भी शिकायत का फोरम होना चाहिए. इसका दुरुपयोग रोकना जरूरी है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर डाले जाने वाले कंटेंट को लेकर दिशानिर्देश बनाने के लिए कहा था. कोर्ट के निर्देश पर भारत सरकार ने इसके िलए दिशानिर्देश तैयार िकये हैं.

सरकार के दिशानिर्देशों को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार अपने आपको असाधारण शक्तियों से लैस कर रही है और इंटरनेट मीडिया प्रकाशन संस्थानों को अपनी बात रखने का कोई अवसर नहीं मिलेगा. दिशानिर्देश के तीसरे चरण का नियम-16  सूचना एवं प्रसारण सचिव को किसी आपातकालीन स्थिति में इंटरनेट पर किसी कंटेंट को ब्लॉक करने का अधिकार प्रदान करता है. मीडिया संगठनों और राजनीतिक दलों ने इसकी आलोचना की है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अगर इस अधिकार का अत्यधिक संयम के साथ इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो यह रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बेहद खतरनाक है. हालांकि केंद्र सरकार ने दिशा निर्देशों को लेकर सफाई दी है कि आपात स्थिति में इंटरनेट की सामग्री को ब्लॉक करने का प्रावधान 2009 से ही है. यह हाल में जारी नहीं किया गया है.

पिछले 11 वर्षों से आइटी मंत्रालय के सचिव द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है. अलग से कोई प्रावधान इस बारे में नहीं किया गया है. इसे केवल नये दिशानिर्देशों में समाहित किया गया है. इसका स्वरूप यथावत है. सूचना और प्रौद्योगिकी की जानी-मानी संस्था नैसकॉम ने डिजिटल मीडिया के लिए जारी नये नियमों पर कहा है कि इनका उद्देश्य शिकायत निवारण, फर्जी समाचार, ऑनलाइन सुरक्षा जैसी चिंताओं का समाधान करना है. इसे सुनिश्चित करने के लिए सही क्रियान्वयन की भी आवश्यकता होगी, ताकि वे उपयोगी साबित हों.

यह सच है कि मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती फेक न्यूज है. यह समाज में भ्रम और तनाव भी पैदा कर देती है. सोशल मीडिया की खबरों के साथ सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति का पता लगाना मुश्किल है. अक्सर चुनावों के दौरान सोशल मीडिया में ऐसी फेक न्यूज जरूर चलती है कि अगर कोई वोट नहीं डालेगा, तो उसके बैंक अकाउंट से 350 अथवा 500 रुपये कट जायेंगे. इसके प्रमाण के रूप में अखबार की कोई एक फेक न्यूज नत्थी कर दी जाती है.

बैंकों को लेकर अक्सर फेक न्यूज चलती रहती हैं. कभी कहा जाता है कि सभी बैंक हर शनिवार को बंद रहेंगे या फिर इतने दिन लगातार बैंकों की छुट्टी है और कामकाज नहीं होगा, तो कभी किसी मूल्य के नोट बंद किये जाने की फेक न्यूज चलती है. ऐसी अनेक फेक न्यूज को अक्सर लोग सही मान लेते हैं और विचलित हो जाते हैं.

बैंकों और सरकार को इनका खंडन करना पड़ जाता है. हां, एक अच्छी बात है कि सभी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान लगातार फेक न्यूज को बेनकाब कर रहे हैं, ताकि लोग उसके झांसे में न आएं, लेकिन शरारती तत्व इससे बाज नहीं आते है. यह बात एकदम साफ है कि सोशल मीडिया बेलगाम है, तो दूसरी ओर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आम जनता तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया एक असरदार व वैकल्पिक माध्यम के रूप में भी उभरा है. राजनीतिक- सामाजिक संगठन और आमजन इसका भरपूर लाभ उठे रहे हैं.

कुछ अरसा पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से कहा था कि सोशल मीडिया को लेकर दिशा निर्देश की सख्त जरूरत है, ताकि भ्रामक जानकारी डालने वालों की पहचान की जा सके. अदालत ने कहा था कि हालात ऐसे हैं कि हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं है, जबकि निजता का संरक्षण सरकार की जिम्मेदारी है. कोई किसी को ट्रोल क्यों करे और झूठी जानकारी क्यों फैलाए?

इसके पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल दो धार्मिक समुदायों के बीच नफरत का बीज बोने के लिए नहीं होना चाहिए, खास तौर पर फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते समय इसका जरूर ख्याल रखा जाना चाहिए.

लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल अनुशासित होकर करें, खास तौर से सोशल मीडिया में पोस्ट करते समय इसका ध्यान जरूर रखें. यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि जब कभी कोई सनसनीखेज खबर हमारे सामने आये, तो उसकी जांच अवश्य कर लें, ताकि हम फेक न्यूज का शिकार होने से बच सकें.

Posted By : Sameer Oraon

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