निजता का सवाल
वर्तमान में भारत में डेटा सुरक्षा से संबंधित कोई विशिष्ट कानून नहीं है. इसी कारण कंपनियों द्वारा यूजर डेटा के इस्तेमाल करने के तौर-तरीकों पर कोई नियंत्रण नहीं है.
बीते दिनों गोपनीयता नीति में परिवर्तन की घोषणा के बाद से व्हॉट्सएप सवालों के घेरे में है. लोगों के निजी डेटा और चैट को फेसबुक के साथ साझा किये जाने से संबंधित प्रस्तावित बदलावों के कारण अब सर्वोच्च न्यायालय ने व्हॉट्सएप को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है. निजता की रक्षा को अहम बताते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि कंपनी का भले ही बड़ा रसूख हो, लेकिन लोगों को अपनी निजता प्यारी होती है और इसकी रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है.
हालांकि, व्हॉट्सएप और फेसबुक का पक्ष रख रहे वकीलों ने निजी डेटा को गोपनीय रखने का भरोसा दिया. इससे पहले व्हॉट्सएप ने यह स्पष्ट किया था कि गोपनीयता नीति में परिवर्तन से दोस्तों और परिजनों से संदेश वार्ता पर कोई असर नहीं होगा. हालांकि, बिजनेस संदेशों को फेसबुक द्वारा पढ़ा जा सकता है और मार्केटिंग उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है. अब यह मांग हो रही है कि निजता से जुड़ी चिंताओं को हल करने तक व्हॉट्सएप को नयी नीति लागू करने से रोका जाये.
इसे आठ फरवरी से लागू करने की योजना थी, लेकिन अब यह समयसीमा 14 मई कर दी गयी है. निजता से समझौता होने के डर से कई यूजर्स ने अन्य प्लेटफॉर्म जैसे सिग्नल और टेलीग्राम का भी रुख कर लिया है. चूंकि, डेटा सूचनाओं का संग्रह है, जो कंपनियों, सरकारों और राजनीतिक दलों के लिए सबसे अधिक फायदे का सौदा है. ऑनलाइन विज्ञापनों के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों से जुड़ने का यह प्रभावी जरिया भी है.
डेटा की बढ़ती अहमियत के बीच निजता से जुड़े सवाल भी गंभीर होते जा रहे हैं. बीते दो दशकों में डेटा सुरक्षा के नजरिये से यूरोपीय समूह का जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) सबसे उल्लेखनीय बदलाव है. दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में निजी डेटा की सुरक्षा के लिहाज से यह पुख्ता व्यवस्था है. भारत में भी ऐसे प्रावधान की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि विभिन्न डिजिटल माध्यमों से जुड़े करोड़ों यूजर्स को निजी डेटा और चैट के दुरुपयोग का डर न रहे.
सामाजिक-आर्थिक तरक्की के लिए डिजिटल अर्थव्यस्वस्था का विकास जरूरी है, लेकिन सूचनात्मक गोपनीयता को बरकरार रखना भी उतना ही आवश्यक है. पुत्तास्वामी फैसले (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है. वर्तमान में भारत में डेटा सुरक्षा से संबंधित कोई विशिष्ट कानून नहीं है. इसी कारण कंपनियों द्वारा यूजर डेटा के इस्तेमाल करने के तौर-तरीकों पर कोई नियंत्रण नहीं है. हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और आधार अधिनियम में निजी जानकारियों के अनुचित खुलासे पर पाबंदी है.
डेटा सेंधमारी के अनेक आरोपों और खबरों के कारण डेटा सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं और चुनौतियां बढ़ रही हैं. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए डेटा सुरक्षा से जुड़ा प्रभावी कानून आवश्यक है, ताकि ऑनलाइन माध्यम पर सक्रिय करोड़ों भारतीय को इस सेंधमारी से बचाया जा सके.
Posted By : Sameer Oraon