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लौटने लगे कामगार

कुछ महीने से बेरोजगारी दर में भी कमी हो रही है. इससे पता चलता है कि रोजगार मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है. सरकार असंगठित क्षेत्र के कामगारों को संगठित क्षेत्र से जोड़ने के लिए प्रयासरत है.

लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में कामगारों को वापस अपने गांवों का रुख करना पड़ा था. मंदी से जूझती अर्थव्यवस्था को देखते हुए पहले यह आशंका भी जतायी जा रही थी कि रोजगार के अभाव में उनका शहरों में लौटना मुश्किल होगा. इस रिवर्स पलायन में लगभग एक करोड़ कामगार बेबसी में गांव लौटे थे. लेकिन लॉकडाउन के हटते जाने के साथ उत्पादन, निर्माण और कारोबार के गति पकड़ने के साथ रोजगार के अवसर भी बड़े हो रहे हैं.

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने संसद को जानकारी दी है कि अधिकतर कामगार लौट आये हैं और उन्हें काम भी मिल रहा है. निश्चित रूप से यह उत्साहवर्धक सूचना है. कुछ महीनों से आर्थिक वृद्धि दर में सुधार है और विभिन्न सूचकांक इंगित कर रहे हैं कि जल्दी ही अर्थव्यवस्था कोरोना पूर्व स्थिति में पहुंच जायेगी.

देश में 10 करोड़ कामगार संगठित क्षेत्र में हैं तथा 40 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं. लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था में संकुचन की सर्वाधिक मार असंगठित क्षेत्र पर ही पड़ी है, लेकिन संगठित क्षेत्र में भी नौकरियां घटी हैं. कुछ महीने से बेरोजगारी दर में भी कमी हो रही है. इससे पता चलता है कि रोजगार मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है. सरकार असंगठित क्षेत्र के कामगारों को संगठित क्षेत्र में जोड़ने के लिए प्रयासरत है.

इसके अलावा छोटे स्व-रोजगार में लगे या अनियमित मजदूरी से जीविकोपार्जन करनेवाले लोगों को पेंशन, बीमा और अन्य कल्याण कार्यक्रमों से जोड़ने की दिशा में भी काम हो रहा है. ऐसे कामगार बेहद कम वेतन और बिना सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था का बड़ा दारोमदार इन्हीं के कंधे पर है. संगठित क्षेत्र भी अपने उत्पादन व वितरण के लिए असंगठित क्षेत्र पर निर्भर करता है.

इस स्थिति में इनके कल्याण के लिए कार्यक्रमों और योजनाओं की दरकार है. कोरोना संकट के दौरान सरकार ने राहत देने के लिए ग्रामीण रोजगार बढ़ाने में पहल की थी ताकि लौटे हुए श्रमिकों को गांव में या आसपास काम मिल सके. इसके अलावा सस्ती दर पर राशन की व्यवस्था भी की गयी थी, जिससे लगभग 80 करोड़ लोगों को लाभ हुआ था. उम्मीद है कि रोजगार गारंटी योजना के साथ जीविका, कौशल और ऋण उपलब्धता से संबंधित पहलों से ग्रामीण भारत की आर्थिकी में बेहतरी आयेगी.

इससे विवशता में होनेवाले पलायन को भी रोकने में मदद मिलेगी. प्रवासी कामगारों के जल्दी नहीं लौटने से कुछ क्षेत्रों में नकारात्मक असर भी हो रहा है. इन श्रमिकों में कई अपने काम में अच्छा अनुभव और कौशल रखते हैं. गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से फलों और संबंधित उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात होता है. लेकिन फिलहाल 30 फीसदी कामगारों के नहीं लौटने से कारोबार में गिरावट की आशंका है. बहरहाल, यह वित्त वर्ष संकटग्रस्त रहा है और आशा है कि आगामी वर्ष से सकारात्मक वृद्धि की राह हमवार होगी.

Posted By : Sameer Oraon

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