सोशल मीडिया कंपनियों की दखल

सोशल मीडिया कंपनियों की दखल

By डॉ अश्विनी | January 12, 2021 6:27 AM
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डॉ अश्विनी महाजन

राष्ट्रीय सह संयोजक

स्वदेशी जागरण मंच

ashwanimahajan@rediffmail.com

कुछ समय पूर्व यह विषय प्रकाश में आया कि कैम्ब्रिज एनालिटिका नाम की एक डेटा कंपनी ने 8.7 करोड़ लोगों के फेसबुक डाटा के आधार पर अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान में काम किया और ट्रंप की विजय में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. फेसबुक कंपनी द्वारा अपने डेटा बेचने के कई साक्ष्य मिलते हैं और फेसबुक के मालिक मार्क जुकेरबर्ग ने इस संबंध में माफी भी मांगी थी, लेकिन भविष्य में इस प्रकार के कृत्य की पुनरावृति नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है.

वर्ष 2018 में यह बात सामने आयी कि इसी कैम्ब्रिज एनालिटिका कंपनी ने भारत की कांग्रेस पार्टी के लिए फेसबुक और ट्विटर के डेटा का उपयोग कर 2019 के चुनावों के लिए मतदाताओं के रूझान को बदलने के लिए कार्य करने का प्रस्ताव रखा. कंपनी की बेवसाइट पर यह दावा भी किया गया था कि 2010 के बिहार चुनाव में उसने विजयी दल के लिए काम किया था. राजनीतिक दलों के लिए चुनावी दृष्टि से सोशल मीडिया कंपनियों के डेटा का दुरुपयोग एक सामान्य बात मानी जाने लगी है.

लेकिन हालिया अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में इन सोशल मीडिया कंपनियों का दखल और अधिक सामने आया. राष्ट्रपति ट्रंप की लगभग सभी ट्वीटों पर ट्विटर की टिप्पणी आ रही थी. इससे स्वाभाविक तौर पर ट्रंप के बयानों को संदेहास्पद बनाने में इस कंपनी की खासी भूमिका रही. हाल ही में अमरीका में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद ट्रंप का ट्विटर एकाउंट सस्पेंड करने के कारण ट्विटर कंपनी बड़े विवाद का केंद्र बन गयी है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि इन सोशल मीडिया कंपनियों के पास इन प्लेटफार्मों को इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की निजी जानकारियां काफी बड़ी मात्रा में होती हैं. ये कंपनियां उनके सामाजिक रिश्तों, जात-बिरादरी, आर्थिक स्थिति, उनकी आवाजाही, उनकी खरीदारियों समेत तमाम प्रकार के डेटा पर अधिकार रखती हैं और इसका उपयोग वे राजनीतिक दलों के हितसाधन में भी कर सकती हैं.

ऐसे में वे प्रजातंत्र को गलत तरीके से प्रभावित कर सकती हैं. हालांकि यदि सोशल मीडिया का उपयोग ईमानदारी से हो, तो उसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन यदि ये कंपनियां राजनीति को प्रभावित करने का व्यवसाय करने लगे, तो दुनिया में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं ही नहीं, बल्कि सामाजिक तानाबाना भी खतरे में पड़ जायेगा.

हालांकि ट्विटर द्वारा राष्ट्रपति ट्रंप के अकांउट को सस्पेंड करने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि उनके बयान अमरीका में शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरण के लिए खतरा हैं, लेकिन कुछ समय पूर्व फ्रांस में एक समूह द्वारा हिंसक गतिविधियों को औचित्यपूर्ण ठहराने वाली मलेशियाई प्रधानमंत्री मोहातिर मोहम्मद की ट्वीट के बावजूद उनके ट्विटर अकाउंट को सस्पेंड न किया जाना दुनिया में लोगों को काफी अखर रहा है.

गौरतलब है कि अकेले भारत में ही फेसबुक के 33.6 करोड़ से ज्यादा अकाउंट हैं, जबकि इस कंपनी द्वारा चलायी जा रही मैसेजिंग, वायस एवं वीडियो काॅल एप के 40 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं. इसी प्रकार फेसबुक इंस्टाग्राम एप का भी मालिक है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की एक बड़ी जनसंख्या का निजी, आर्थिक एवं सामाजिक डेटा इस कंपनी के पास है. भारत में ट्विटर के लगभग सात करोड़ और दुनिया में 33 करोड़ एकाउंट हैं.

फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंकेडिन आदि हालांकि मुफ्त में सेवाएं देते हैं, लेकिन अपने डेटाबेस का उपयोग वे अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए करते हैं. सर्च इंजन चलाने वाली गूगल कंपनी भी अनेकों बार अपने लाॅगरिदम का गलत इस्तेमाल करने की दोषी पायी गयी है. आज भारत में विज्ञापन की दृष्टि से गूगल और फेसबुक सर्वाधिक आमदनी कमाने वाली कंपनियां बन चुकी हैं. ये कंपनियां उपभोक्ताओं को संतुष्टि भी प्रदान कर रही हैं, जिसके कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है.

लेकिन बढ़ती लोकप्रियता और किसी भी प्रकार के अंकुश के अभाव में इन कंपनियों से समाज के तानेबाने को बिगाड़ने और लाभ के लिए कार्य करते हुए प्रजातंत्र को प्रभावित करने की केवल आशंकाएं ही नहीं, बल्कि वास्तविक खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं. इन कंपनियों के कार्यकलापों और लाॅगरिदम में पारदर्शिता का पूर्ण अभाव है. यह बात भी स्पष्ट है कि ये कंपनियां लाभ के उद्देश्य से काम करती हैं और अपने शेयर होल्डरों के लिए अधिकतम लाभ कमाने की कोशिश में रहती हैं.

इसलिए स्वाभाविक तौर पर, चाहे कानून के दायरे में ही रहकर, ये कंपनियां लाभ कमाने के लिए कुछ भी कर सकती हैं. चूंकि सोशल मीडिया हाल ही में आस्तित्व में आया है, इसलिए विभिन्न देशों के कानून उनको नियंत्रित करने में स्वयं को अक्षम महसूस कर रहे हैं. ऐसे में किसी भी कानूनी बाध्यता के अभाव में ये कंपनियां सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने और लोकतंत्र की भावनाओं पर चोट कर सकती हैं.

हाल ही में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा ध्यान में आया, जब चीन के कुछ मोबाइल एप अमानवीय एवं असमाजिक कृत्यों में संलग्न थे, तो भी उन्हें प्रतिबंधित करने में सरकार को कानून के अनुसार निर्णय लेने में लंबा समय लगा, लेकिन फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर इत्यादि पर अंकुश लगाना आसान नहीं होगा.

इन कंपनियों के संभावित खतरों के मद्देनजर चीन ने प्रारंभ से ही इन्हें अपने देश में प्रतिबंधित किया हुआ है और इनके मुकाबले में चीनी एप विकसित किये गये हैं. फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर इत्यादि के उनके अपने ही विकल्प हैं. भारत भी ऐसा प्रयास कर सकता है कि चाहे इन एप को जारी भी रखा जाए, लेकिन साथ ही उनके विकल्प भी उपलब्ध हों. बड़ी संख्या में चीनी एप को प्रतिबंधित करने के बाद देश में भारत के ही स्टार्टअप्स द्वारा अनेकों प्रकार के एप विकसित किये भी गये हैं.

इसी प्रकार सरकार डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए डाटा संप्रभुता हेतु कानून बनाकर इन कंपनियों को पारदर्शी तरीके से अपने डेटा को भारत में ही रखने के लिए बाध्य कर सकती है. इन कंपनियों द्वारा डाटा माइनिंग को हतोत्साहित करते हुए भी लोगों के निजी डेटा के दुरुपयोग को कम किया जा सकता है. प्रौद्योगिकी विकास के इस युग में उपभोक्ता संतुष्टि के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को सुरक्षित रखना और सामाजिक तानेबाने को नष्ट करने के प्रयासों को रोकना सरकार की जिम्मेदारी है और सरकारें प्रभावी नियंत्रण हेतु कानून बनाने के दायित्व से विमुख नहीं रह सकतीं.

Posted By : Sameer Oraon

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