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बजट में आयकर सुधारों को गति

नये डायरेक्ट टैक्स कोड और नये इनकम टैक्स कानून को शीघ्र आकार देकर देश में कर सुधारों का नया चमकीला अध्याय लिखा जा सकता है.

कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों के बीच छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग को नये बजट से मुस्कराहट नहीं मिली है. कोरोना संकट से लोगों के रोजगार गये, पारिश्रमिक में कटौती हुई, वहीं डिजिटल तकनीक, ब्रॉडबैंड, बिजली का बिल जैसे खर्चों के बढ़ने से करदाताओं की आमदनी घट गयी है. छोटे करदाताओं व मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाने हेतु वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में टैक्स का बोझ कम करने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिये जाने से इस वर्ग को मायूसी मिली है.

नि:संदेह केंद्रीय बजट 2020-21 के तहत वित्तमंत्री ने जिस तरह टैक्स स्लैब को बदला था, कोविड-19 की चुनौतियों के बीच पुराने स्लैब के पुनः निर्धारण की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी. करदाता कर में छूट की सीमा को दोगुना कर पांच लाख तक किये जाने की अपेक्षा कर रहे थे. नये बजट से नौकरीपेशा वर्ग के लोगों को स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाये जाने की उम्मीद थी. लेकिन ये उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं.

मौजूदा समय में धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये की छूट मिलती है. इसके तहत इपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान भी शामिल है. मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 1.50 लाख की छूट पर्याप्त नहीं है. कोई व्यक्ति 1.50 लाख की छूट यदि होम लोन के मूलधन पर ले लेता है तो उसके पास अन्य जरूरी निवेश पर छूट लेने का विकल्प नहीं बचता है.

सरकार के द्वारा इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80डी के तहत कर कटौती की सीमा को भी नहीं बढ़ाया गया है. लेकिन नये बजट में वित्तमंत्री ने सस्ते मकानों की खरीद को प्रोत्साहन देने के लिए आवास ऋण के भुगतान पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त कटौती का दावा करने की अवधि को एक साल बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 कर दिया है. वित्त मंत्री ने 75 साल से ऊपर के बुजुर्गों पर कर अनुपालन बोझ कम करने का प्रस्ताव रखा है. इस उम्र के जो वरिष्ठ नागरिक सिर्फ पेंशन और ब्याज आय पर निर्भर हैं, उन्हें इनकम टैक्स रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी.

नये बजट के तहत करदाताओं को प्रभावित करनेवाले कुछ और महत्वपूर्ण बदलाव दिखायी दे रहे हैं. अब तक इपीएफ एक ऐसा विकल्प था जिसे एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट (ईईई) व्यवस्था का लाभ हासिल था. नये बजट में इस योजना से हासिल ब्याज आय पर कर छूट कर्मचारी के 2.5 लाख रुपये के योगदान तक सीमित कर दी गयी है. इससे पहले, ईईई के तहत कोई व्यक्ति अपनी बेसिक आय का 12 प्रतिशत योगदान दे सकता था.

इसी तरह यूनिट लिंक्ड बीमा योजनाएं (यूलिप) से परिपक्वता राशि तभी कर मुक्त होगी, जब इन पर सालाना प्रीमियम 2.5 लाख रुपये से ज्यादा न हो. निश्चित रूप से नये बजट के माध्यम से आयकर सुधारों को गतिशील किया गया है. छोटे करदाताओं के लिए मुकदमेबाजी में कमी लाने के लिए गठित की जानेवाली विवाद समाधान कमेटी दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेंगी.

50 लाख रुपये तक की कर योग्य आय वाले और 10 लाख रुपये तक की विवादित आय वाले किसी भी व्यक्ति को समिति में अपना पक्ष रखने का अधिकार होगा. आयकर अधिनियम के तहत कर आकलन मामलों को पुन: खोलने के लिए समय-सीमा भी छह साल से घटाकर तीन साल की गयी है.

पिछले वर्ष से आयकर विभाग के द्वारा करदाता चार्टर, पहचान रहित समीक्षा और पहचान रहित अपील व्यवस्था लागू की गयी है. अब नये बजट से फेसलेस आकलन प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय सीमा 12 महीने से घटाकर नौ महीने की गयी है. इसका मतलब है कि रिटर्न को 31 मार्च के बजाय आकलन वर्ष के 31 दिसंबर तक संशोधित किया जा सकेगा.

बजट में करदाताओं और कर अधिकारी के बीच पारंपरिक बातचीत की संभावना दूर करने के मद्देनजर नेशनल फेसलेस इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल की घोषणा की गयी है, जिसमें सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये की जायेगी. इससे अपीलों के निपटान में पारदर्शिता को भी बढ़ावा मिलेगा.

आयकर सुधारों से जहां छोटे करदाताओं को राहत मिलेगी, वहीं नये करदाताओं की संख्या बढ़ेगी. वर्ष 2020 में रिटर्न फाइल करनेवालों की संख्या 6.48 करोड़ हो गयी जो 2014 में 3.31 करोड़ थी. वस्तुतः बहुत सारे लोगों द्वारा अच्छी आमदनी होने के बावजूद आयकर का भुगतान नहीं किया जाता है. उनके कर नहीं देने का भार ईमानदार करदाताओं पर पड़ता है. चूंकि, वेतनभोगी वर्ग नियमानुसार अपने वेतन पर ईमानदारीपूर्वक आयकर चुकाता है और आमदनी को कम बताने की गुंजाइश नगण्य होती है.

लेकिन बड़ी संख्या में कई ऐसे लोग हैं, जो अच्छी कमाई करते है, लेकिन वे कोई आयकर नहीं देते हैं. ऐसे लोगों को आयकर जांच के दायरे में लाने के लिए आयकर विभाग की जवाबदेही वित्तीय लेनदेन के बारे में अधिकतम जानकारी जुटाने हेतु सुनिश्चित की गयी है.

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि वित्तमंत्री ने 2021-22 के बजट में कोरोना महामारी और उसके बाद करदाताओं व मध्यम वर्ग की आर्थिक मुश्किलों के मद्देनजर संतोषप्रद राहत नहीं दी है, लेकिन अब सरकार के द्वारा नये बजट के तहत नये डायरेक्ट टैक्स कोड और नये इनकम टैक्स कानून बनाने के कार्य को सुनिश्चित किया जाना उपयुक्त होगा.

मोदी सरकार ने नवंबर 2017 में नयी प्रत्यक्ष कर संहिता के लिए अखिलेश रंजन की अध्यक्षता में जिस टास्क फोर्स का गठन किया था, उसके द्वारा विभिन्न देशों की प्रत्यक्ष कर प्रणालियों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू प्रत्यक्ष कर संधियों का तुलनात्मक अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट 19 अगस्त, 2019 को सरकार को सौंपी जा चुकी है.

इस रिपोर्ट में प्रत्यक्ष कर कानूनों में व्यापक बदलाव और वर्तमान आयकर कानून को हटाकर नये सरल व प्रभावी आयकर कानून लागू करने संबंधी कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं. ऐसे में अब रंजन समिति की रिपोर्ट के मद्देनजर नये डायरेक्ट टैक्स कोड और नये इनकम टैक्स कानून को शीघ्र आकार देकर एक ओर देश में कर सुधारों का नया चमकीला अध्याय लिखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर छोटे आयकरदाताओं व मध्यम वर्ग की मुठ्ठियों में नयी राहत दी जा सकती है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Posted By : Sameer Oraon

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