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राजनीति में रजनीकांत के जादू पर संशय

राजनीति में रजनीकांत के जादू पर संशय

प्रभु चावला

एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla@newindianexpress.com

राजनीति एक चुटकुला है, लेकिन हंसने का मामला नहीं है. जब मस्ती-मजाक के प्रतीक पुरुष सुपरस्टार रजनीकांत ने चुनावी प्रहसन में छलांग लगायी, तो भारतीय जनता पार्टी खुशी से रो पड़ी. अब यह स्पष्ट हो चुका है कि बरसों से राजनीति में आने या न आने का उनका ऊहापोह राजनीति के मंच का केवल एक चालाक अभिनय भर था. यह अभी भविष्य की बात है कि अगले साल तमिलनाडु के मतदाताओं का रुख क्या होगा.

कमल हासन को छोड़ दें, तो 2021 का चुनाव लगभग चार दशकों के बाद ऐसा पहला चुनाव होगा, जिसमें फिल्मी सितारों की अग्रणी भूमिका निभाने की अपेक्षा नहीं है. लेकिन रजनीकांत ने औपचारिक रूप से राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी है, जो राज्य विधानसभा की सभी 234 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी.

उनका कथानक कहता है कि अभी नहीं, तो कभी नहीं. इसमें एक विशिष्ट आकर्षण का पुट भी है, जो ‘बिना जाति, वर्ग या धर्म के आध्यात्मिक सेकुलर राजनीति’ का वादा है तथा ‘एक चमत्कार अवश्य होगा’ का संकल्प है. क्या राजनीति में आध्यात्मिकता की बात करना रजनीकांत का एक और चुटकुला है? विज्ञान गल्प के सुपरमैन, सुपर पुलिसकर्मी, सुपर नागरिक, विदेश में बसा सुपर भारतवंशी और सुपर रोमियो जैसी फंतासी भूमिकाओं ने उन्हें बुराई के दुश्मन और खलनायकों पर जीत हासिल करनेवाले विजेता के रूप में परिभाषित किया है, इसलिए उनके बारे में नयी शैली के चुटकुलों की बाढ़ है, जिसमें उन्हें अपराजेय और सदाबहार प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

‘भूकंप क्यों आते हैं? क्योंकि उस समय रजनीकांत का मोबाइल फोन वाइब्रेशन मोड में होता है.’ रजनी भूकंप राजनीतिक वाइब्रेशन तो पैदा करेगा, लेकिन हो सकता है कि द्रविड़ राजनीति अपने वोट बैंक को संभाल ले. रजनीकांत के प्रशंसक मानते हैं कि थलईवर यानी मुखिया के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. ‘टॉम क्रूज से पहले मिशन इंपॉसिबल फिल्म के लिए रजनीकांत से संपर्क किया गया था, पर उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था क्योंकि फिल्म का नाम उन्हें अपमानजनक लगा था.’

यह हंसने की बात नहीं है. अलग-अलग भूमिकाएं करनेवाले इस अभिनेता ने अधिकतर फिल्मों में वैसी ही कहानी चुनी है, जिसमें सिर्फ वही केंद्र में हों. अचरज की बात नहीं है कि यह चुटकुला कि ‘रजनीकांत की अगली फिल्म का नाम ट्विटर है, जिसमें वे 140 भूमिकाएं निभायेंगे,’ इतना सच लगता है कि उस पर हंसना मुश्किल है. उनका मिशन पॉसिबल उन्हें तमिलनाडु में एमजी रामचंद्रन और शिवाजी गणेशन के बाद युवाओं का सबसे चहेता आदर्श बनाता है. इनकी ही तरह वे दोनों भी तमिल नहीं थे.

पिछले देढ़ दशक से रजनीकांत राजनीति में आने का वादा कर रहे थे. जब तक जयललिता जीवित थीं, उन्होंने स्वयं को केवल घोषणाओं तक सीमित रखा था. उनके निधन के कुछ समय बाद ही 2017 में उन्होंने अपने प्रशंसकों को बताया कि राजनीति में आने को लेकर वे गंभीर हैं. लेकिन अभी भी उन्होंने अपनी पार्टी और शासन के उनके एजेंडे की औपचारिक घोषणा नहीं की है. उनके प्रशंसक चहकते हैं, ‘रजनीकांत पहले स्वर्ण पदक लेते हैं, दौड़ उसके बाद शुरू होती है.’

क्या ऐसा इस दौड़ के साथ भी होगा? यह आसान नहीं होगा. इस नायक की घोषणा के बाद भी तमिलनाडु राजनीति में ठंडापन है, जबकि कहा जाता है कि ‘रजनीकांत बर्फ के दो छोटे टुकड़ों को रगड़कर भी आग पैदा कर सकते हैं.’ रजनीकांत अम्मा (जयललिता) या कलईग्नार (करुणानिधि) नहीं हैं. उनकी लोकप्रिय पहुंच केवल फिल्मी परदे के जरिये है. उनके पास तमिलों के साथ कोई विचारधात्मक, सांस्कृतिक या सामाजिक जुड़ाव नहीं है, जो अपनी द्रविड़ विरासत पर गर्व करते हैं.

भाजपा रजनीकांत के इस गुटनिरपेक्ष स्थिति को द्रविड़ वर्चस्व का आदर्श प्रतिकार मानती है. नरेंद्र मोदी ने 2014 में पहली पहल लोकसभा चुनाव से पहले अभिनेता के घर जाकर की थी. अब इस अभिनेता ने भाजपा के पूर्व अधिकारी अर्जुनामूर्ति को अपने प्रशंसकों के संगठन का मुख्य संयोजक बनाकर अपने केसरिया रुझान का खुलासा कर दिया है.

भाजपा को मालूम है कि तमिल फिल्म उद्योग में रजनीकांत की लेकिन राजनीतिक बाजार में उनका हिस्सा बहुत ही कम है. रजनीकांत के संभावित राष्ट्रीय सहयोगी को उनसे बहुत सारी उम्मीदें हैं – ‘एक बार एक किसान ने बिजूका की जगह खेत में रजनीकांत का फोटो लगा दिया. आप विश्वास नहीं करेंगे कि क्या हुआ. चिड़िया जो पिछले साल अन्न चुगकर गयी थीं, उसे भी वापस लाने लगीं.’

रजनीकांत से अपेक्षा है कि वे अपने प्रशंसकों के अलावा दूसरी पार्टियों के समर्थकों और फिल्मी सितारों को अपने खेमे में लायेंगे. लेकिन उनके घोर समर्थक भी बेहद ध्रुवीकृत तमिल मतदाताओं में सेंध लगाने में रजनीकांत के जादू की क्षमता को लेकर शंकालु हैं. वे कई भाषाएं जानते हैं, पर किसी द्रविड़ मुद्दे या विचार को व्यक्त नहीं करते हैं. वे वोटों की अतिरिक्त फसल तभी काट सकते हैं, यदि वे बेहतर स्थायित्व व नैतिकता वाले वैकल्पिक मॉडल को प्रस्तुत करते हैं.

वे अपने जुड़ाव को लेकर अस्थिर रहे हैं. पहले वे द्रमुक के समर्थक थे, फिर अन्नाद्रमुक के समर्थक हो गये. उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा हिंदी थोपने का विरोध किया है. इसके बावजूद उन्हें भाजपा ने सम्मानित किया है. वाजपेयी सरकार ने 2000 में उन्हें पद्मभूषण से और 16 साल बाद मोदी सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया.

भले वे अपनी रोमांचक फिल्मों के लिए दर्शकों को लगातार आकर्षित करते रहे हैं, पर वे किसी तमिल पार्टी के अहम नेता को अपने पाले में नहीं ला पाये हैं.

रजनीकांत के समर्थक मानते हैं कि जल्दी ही यह स्थिति बदल जायेगी. यह चुटकुला संकेत देता है कि वे तीव्र और आक्रामक रजनीकांत शैली पर भरोसा जता रहे हैं- ‘एक बार हाथ में एक सिक्का लिये रजनीकांत बालकनी में खड़े थे कि वह सिक्का गिर गया. जब वे नीचे पहुंचे, तो उन्हें वह सिक्का नहीं दिखा. क्यों? क्योंकि रजनीकांत सिक्का जमीन पर गिरने से पहले ही नीचे पहुंच गये थे.’ दर्शक नायक के कुछ बलिदान के साथ खलनायक पर जीत का मजा लेने के लिए एक्शन फिल्में देखते हैं.

आज मार-धाड़ के दृश्य तकनीक से बनते हैं और अविश्वसनीय होते हैं. कहा जाता है कि ‘रजनीकांत धूप का चश्मा सूरज को अपने तेवर से बचाने के लिए पहनते हैं.’ अब इस सुपर स्टार को अपने समर्थकों और आलोचकों के तेवर का सामना करना पड़ सकता है, जो उन्हें राजनीतिक विक्षोभ मानते हैं. तमिल विशेषज्ञ मानते हैं कि किंग होना तो दूर की बात, रजनीकांत किंगमेकर भी नहीं बन सकते हैं.

posted by : sameer oraon

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