आर राजगोपालन
वरिष्ठ पत्रकार
rajagopalan1951@gmail.com
एक दौर ऐसा था, जब शशिकला तमिलनाडु पर राज करती थीं और जयललिता के बाद उनका रुतबा रानी जैसा था. अन्नाद्रमुक उनकी मुट्ठी में हुआ करता था. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐसी रसूखदार शख्सियत को भला राजनीति से सन्यास क्यों लेना चाहिए? वे अस्वस्थ हैं और कुछ समय पहले कोरोना संक्रमण से मुक्त हुई हैं. विभिन्न अदालतों में उनके खिलाफ 25-30 मुकदमे हैं. उनके अपने रिश्तेदार ही पारिवारिक राजनीति में उलझे हुए हैं.
शशिकला और टीटीवी दिनाकरण को कई कारणों से मुख्यमंत्री जयललिता के बंगले से दूर रखा गया था, लेकिन जीते जी जयललिता ने शशिकला को वापस बुलाया, पर दिनाकरण को नहीं. दिलचस्प है कि दिनाकरण ने ही जयललिता की मृत्यु के बाद नयी पार्टी- अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम- का गठन किया था. इस पार्टी के चुनाव चिह्न के रूप में कूकर दिलाने में भाजपा ने चुपचाप मदद की थी. दिनाकरण भाजपा के करीबी हैं.
शशिकला कौन हैं? यदि आप साधारण ढंग से तमिलनाडु की राजनीति को समझना चाहते हैं, तो आपको चार जातियों- गाउंदर, थेवर, नादर और वन्नियार- के बारे में जानना चाहिए. शशिकला थेवर जाति से हैं. जयललिता के शासनकाल में बागडोर उन्हीं के हाथ में थी. मौजूदा मुख्यमंत्री ई पालानिस्वामी गाउंदर समुदाय से हैं. ये जातियां एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश करती रहती हैं. यह सब सामाजिक इंजीनियरिंग में माहिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को मालूम है.
इस भ्रामक माहौल में एक और पहलू जोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के दौरे पर एक अन्य प्रभावशाली समुदाय- देवेंद्रकुला वेल्लालार- को संवैधानिक संशोधन के जरिये एक समुदाय के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है. इससे भाजपा को बड़ी मजबूती मिली है. शशिकला 27 जनवरी को रिहा हुईं और आठ फरवरी को उन्होंने बंगलुरु से चेन्नई यात्रा में अपने समर्थन को दिखाने के लिए रोड शो किया था. उस दौरान उन्होंने अपने समर्थकों को कहा था कि वे राजनीति में आ रही हैं.
वापसी के एक सप्ताह बाद वे समर्थकों और नेताओं से मिलती रहीं तथा उनसे जयललिता के आदर्शों के लिए लड़ते रहने का आग्रह किया. अन्ना द्रमुक के महासचिव पद से हटाये जाने के फैसले के खिलाफ वे अदालत भी गयीं. भले ही छह सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी है, पर उनके राजनीति में आने का बड़ा असर होने की उम्मीद की जा रही थी. राजनीति से अलग होने का उनका फैसला तब आया, जब ऐसी खबरें आ रही थीं कि भाजपा उनके भतीजे दिनाकरण की पार्टी को अन्ना द्रमुक गठबंधन में लाने की कोशिश कर रही है.
अन्ना द्रमुक और मुख्यमंत्री पालानिस्वामी ने गठबंधन में शशिकला और दिनाकरण को शामिल करने से मना कर दिया है. जयललिता के जन्मदिन के अवसर पर 24 फरवरी को शशिकला ने कहा था कि जयललिता के समर्थकों को एक साथ मिल कर अन्ना द्रमुक के सौ साल तक राज करने के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए तथा पार्टी के सभी सदस्यों को जीत के लिए काम करना चाहिए. उन्होंने जल्दी ही लोगों और समर्थकों से मिलने की बात भी कही थी. रिहाई से पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि वे पार्टी में शामिल होंगी,
लेकिन पार्टी ने उन्हें नकार दिया कि उनका कोई प्रभाव अब नहीं बचा है. पार्टी ने नेताओं और समर्थकों को उनसे मिलने और वापसी में उनके द्वारा पार्टी का झंडा न इस्तेमाल करने की चेतावनी भी दी थी, पर उन्होंने गाड़ी पर झंडा लगाया था. राजनीति में उनकी वापसी की गुंजाइश तब है, जब पालानिस्वामी और पनीरसेल्वम के नेतृत्व में अन्ना द्रमुक चुनाव हार जाए.
द्रमुक एक काडर आधारित पार्टी है, लेकिन तमिलनाडु राजनीति में पैठ बना रही भाजपा उसे हिंदू विरोधी पार्टी के रूप में पेश कर रही है. द्रमुक काडर नास्तिक हैं और वे राम व कृष्ण में आस्था नहीं रखते. कांग्रेस उसकी छोटी सहयोगी है. कुछ और छोटे समूह व दल हैं, जो दलित और अन्य पिछड़ा वर्गों का समर्थन करते हैं. तमिलनाडु भी बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह जातिवाद से ग्रस्त है. दस साल के शासन के बाद भी अन्ना द्रमुक को बढ़त है. इसका कारण कोरोना महामारी की प्रभावी रोकथाम है. मौजूदा सरकार सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएं चला रही है. चक्रवात से प्रभावित तटीय क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्य अच्छे ढंग से हुए हैं. अन्ना द्रमुक के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी लहर नहीं है और न ही द्रमुक के लिए कोई सकारात्मक लहर है.
क्या भाजपा तमिलनाडु या छह दक्षिणी राज्यों में मजबूत है? क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह लोकप्रिय हैं? क्या तमिलनाडु में पार्टी को कुछ सीटें मिलेंगी? इन सवालों के जवाब सकारात्मक हैं. कांग्रेस से अधिक वोट शेयर के साथ भाजपा अब तीसरी ताकत बन गयी है. द्रमुक के नेताओं को भी मंदिर जाना और पूजा करना पड़ रहा है. यह पार्टी के दर्शन में बड़ा बदलाव है. भाजपा इस साल के चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज करेगी. राज्य में करीब आठ लाख मतदाता पहली बार वोट देंगे.
उन्हें द्रविड़ विरासत या पेरियार के द्रविड़ आंदोलन के बारे में पता नहीं है. ये मतदाता डिजिटल युग की संतानें हैं, जो सोशल मीडिया और कंप्यूटरों में आश्रित हैं. रजनीकांत द्वारा राजनीति में आने से इंकार करने के बाद ऐसे मतदाताओं का रूझान नरेंद्र मोदी की तरफ हुआ है. हिंदी पार्टी और ब्राह्मण-बनिया पार्टी होने की नकारात्मक भावना डॉ एल मुरुगन के तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष बनाने से खत्म हो गयी है. इस दलित नेता काे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए बनाया था.
शाह की सामाजिक इंजीनियरिंग ने निश्चित रूप से असर दिखाया है. साल 2019 के चुनाव में, जब द्रमुक ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया था, उत्तर भारत में भाजपा की बड़ी जीत के बाद तमिलनाडु के मतदाता सन्न रह गये थे. उसके बाद राज्य में नरेंद्र मोदी को देश के मजबूत नेता के रूप में स्वीकार कर लिया गया. आप चाहे जिस तरफ से तमिलनाडु की राजनीति को देखें, इसने रजनीकांत और शशिकला से अपना पीछा छुड़ा लिया है. राज्य की अधिकतर पार्टियों का नेतृत्व युवा हाथ में आ रहा है, जो सकारात्मक है.
Posted By : Sameer Oraon