आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक प्रभात खबर
चुनाव किसी भी लोकतंत्र का आधार स्तंभ होता है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता परिवर्तन सहज है, लेकिन अमेरिका का घटनाक्रम शर्मनाक है. यह इसलिए भी चिंता जगाता है कि जिस देश के लोकतंत्र का इतिहास 200 साल से ज्यादा पुराना हो, वहां सत्ता हस्तांतरण के पहले जाते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन को सत्ता से रोकने के लिए अपने समर्थकों को भड़का दिया.
समर्थक भी संसद में घुस गये, वहां हिंसा की, और पुलिस से भिड़ गये. यह भीड़ इस बात से प्रेरित थी कि वह अमेरिकी कांग्रेस की कार्यवाही को रोक देगी, ताकि नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन की चुनावी जीत पर संसद की मुहर न लग पाए. यह हमला ट्रंप के इशारे पर हुआ. कई हफ्तों से ट्रंप छह जनवरी का उल्लेख कर रहे थे. वे अपने समर्थकों से राजधानी वाशिंगटन डीसी आने और संसद को चुनौती देने जैसे उकसाने वाले ट्वीट लगातार कर रहे थे.
कह रहे थे कि हम कभी हार स्वीकार नहीं करेंगे. राष्ट्रपति के निजी वकील रूडी जुलियानी भी चुनावी विवाद को दो-दो हाथ कर सुलझाने जैसे भड़काऊ बात कह कर आग में घी डाल रहे थे. ज्यों ही संसद के संयुक्त सत्र में राज्यों के नतीजे रखे जाने लगे, प्रदर्शनकारियों के संसद भवन में घुस कर झंडे लहराने और कुछ कक्षों पर कब्जा करने की तस्वीरें टीवी पर आने लगीं.
भीड़ सीनेट कक्ष तक पहुंच गयी, जहां चुनाव नतीजों पर संसद की मुहर लगनी थी. इस हिंसा में चार लोगों की मौत हुई, लेकिन ट्रंप यहीं तक नहीं रुके. उन्होंने हमलावर भीड़ को बहुत खास बताया. उनकी प्रशंसा की. चुनावी धांधली का हवाला देकर हिंसा को उचित ठहराया. हालांकि एक वीडियो में ट्रंप ने लोगों से घर लौटने की अपील की, लेकिन चुनावी धांधली के झूठे दावों को हवा भी दी.
संसद से भीड़ को बाहर निकालने के बाद, सभी सीनेटरों को बाइडन की जीत के प्रमाणीकरण के लिए फिर से सीनेट कक्ष में लाया गया. आप स्थिति का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट्स लॉक कर दिये गये हैं, ताकि वे जनता को फिर न भड़का सकें. सोशल मीडिया वेबसाइट का कहना है कि ट्रंप लोगों को भड़का रहे हैं और अपने दावों से उन्हें भ्रमित कर रहे हैं, इसलिए यह कदम उठाना पड़ा है.
दुनियाभर के नेताओं ने इस हिंसा की आलोचना की. कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि यह विरोध नहीं, फसाद है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि इतिहास इस हिंसा को राष्ट्र के अपमान के रूप में याद रखेगा. इस हिंसा से हैरान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पिछले दो महीने से ऐसा माहौल बनाया जा रहा था. ट्रंप की आलोचना उन्हीं की रिपब्लिकन पार्टी के नेता भी कर रहे हैं. रिपब्लिकन सांसद लिन चिनेय ने ट्वीट किया कि इस बात पर कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ही भीड़ को उकसाया.
सांसद टॉम कॉटन ने भी कहा कि ट्रंप चुनाव नतीजों को स्वीकार कर लें और हिंसा को खारिज करें. अब अमेरिका में संविधान के 25वें संशोधन पर चर्चा हो रही है, जिसमें प्रावधान है कि कैसे कैबिनेट राष्ट्रपति को अस्थायी तौर पर हटा सकती है. हालांकि चुनाव अभियान की शुरुआत से ही यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि अगर ट्रंप चुनाव हार गये, तो संभव है कि वे इसे आसानी से स्वीकार न करें और सत्ता हस्तांतरण में अवरोध पैदा करें.
ट्रंप से जब-जब इस बारे में सवाल किया गया, उन्होंने कभी स्पष्ट जवाब नहीं दिया था. भारत में तो हर साल कहीं-न-कहीं चुनाव होते ही हैं. पार्टियां पूरी ताकत झोंक कर उसे जीतने की कोशिश करती हैं. सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी अस्त्रागार में से किसी अस्त्र को दागने से नहीं चूकते हैं, लेकिन हार-जीत के बाद सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से होता है.
वैसे, ट्रंप के सत्ता संभालने के कुछ ही दिन बाद दुनिया जान गयी थी कि विश्व के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति अक्सर झूठ बोलता है. इसका कटु अनुभव भारत को भी रहा है. आपको याद होगा कि अपनी अहमदाबाद यात्रा को लेकर उन्होंने कितना बेमतलब विवाद खड़ा किया था. पहले उन्होंने दावा किया कि 60 से 70 लाख लोग अहमदाबाद में उनका स्वागत करेंगे.
उसके बाद उन्होंने दावा किया कि अहमदाबाद में एक करोड़ लोग उनका स्वागत करेंगे. अहमदाबाद की कुल आबादी ही 70 से 80 लाख के बीच है. ऐसे में एक लाख से अधिक की संख्या किसी भी पैमाने पर अविश्वसनीय थी. इसी तरह एक बार ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही और उसमें भी पीएम नरेंद्र मोदी को घसीटा. पाकिस्तान के पीएम इमरान खान और राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के बाद एक साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई थी.
इमरान खान ने कहा कि ट्रंप कश्मीर मामले में मध्यस्थता करें. इस पर तुरंत ट्रंप ने कहा कि भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी उनसे यह अनुरोध किया है और वह तैयार हैं. उन्होंने कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले को लेकर ऐसा दावा किया, जिससे अमेरिकी प्रशासन भी सकते में आ गया था.
अमेरिका को आनन-फानन में सफाई देनी पड़ी थी. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में स्पष्ट शब्दों में ट्रंप के बयान का खंडन किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी कोई बात कही ही नहीं थी. भारत की वर्षों से स्थापित नीति रही है कि उसे कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है.
अमेरिका के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों न्यूयाॅर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट ने राष्ट्रपति ट्रंप के झूठ की एक लंबी फेहरिस्त भी छापी थी. अखबारों ने लिखा था कि अमेरिका के इतिहास में ऐसा कोई राष्ट्रपति नहीं हुआ है, जिसने इतना झूठ बोला हो. अमेरिकी मीडिया ने ट्रंप के 10 हजार झूठों का संकलन प्रकाशित किया था. मीडिया के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप अपनी रैलियों में ही जो दावे करते थे, उनमें लगभग 22 फीसदी झूठे होते थे.
उन्होंने चुनाव के दौरान वादा किया था कि अमेरिका-मैक्सिको की सीमा पर वह दीवार खड़ी करवा देंगे. इस विषय में ट्रंप ने सबसे ज्यादा झूठ बोला कि बस अब दीवार बनायी जा रही है. यही नहीं, ट्विटर हैंडल पर भी वह झूठे दावे करने में संकोच नहीं करते थे. एक बार ट्रंप ने यहां तक कहा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अमेरिका में पैदा ही नहीं हुए हैं.
जब उनका जन्म प्रमाण पत्र सामने आया, तो उन्होंने पत्नी मिशेल ओबामा पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने ही ब ओबामा के जन्म को लेकर अफवाह फैलायी थी. अपने बयानों में वे अमेरिका में बेरोजगारी की दर कभी 5 फीसदी तो कभी 24 फीसदी तक बताते थे. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान अमेरिका की प्रतिष्ठा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचाया है. इससे उबरने के लिए उसे लंबे समय तक प्रयास करने होंगे.
Posted By : Sameer Oraon