गणतंत्र दिवस के दिन देश की राजधानी दिल्ली में जहां एक ओर भारत की सांस्कृतिक विविधता और रक्षा शक्ति का शानदार प्रदर्शन हुआ, वहीं दूसरी ओर शहर में अनेक जगहों पर उत्पात और उपद्रव के दृश्य दिखे. हमारा संविधान हमें शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने का अधिकार देता है. विभिन्न किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर और देश में अलग-अलग जगहों पर कृषि कानूनों के विरुद्ध आंदोलनरत हैं.
सरकार उनके विरोध को सम्मान देते हुए लगातार बातचीत कर रही है. सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए कानूनों को कुछ समय के लिए लागू न करने का निर्देश दिया है और सरकार व आंदोलनकारी किसानों के बीच गतिरोध समाप्त करने के लिए एक पैनल भी गठित किया है. न्यायालय ने आंदोलन के अधिकार को भी रेखांकित किया है. यह सब इसलिए हो सका है क्योंकि आंदोलन शांतिपूर्ण है.
लेकिन मंगलवार को कुछ समूहों ने न केवल पहले से तय रास्ते को छोड़ा, बल्कि हिंसा और उपद्रव भी किया. लाल किले की प्राचीर एक पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक है. उस जगह तिरंगे की जगह किसी अन्य झंडे को लगाना अनुचित है. वहां उपद्रवियों द्वारा धार्मिक झंडा लगाना उस ध्वज का भी अपमान है और धार्मिक आस्था पर प्रहार है. सरकार और पुलिस ने किसानों पर भरोसा करते हुए ही ट्रैक्टर रैली निकालने की अनुमति दी थी तथा किसान नेताओं व पुलिस अधिकारियों के बीच रैली के रास्ते पर भी सहमति हो गयी थी.
इसके बावजूद लाल किला जाने तथा शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके में घुसने की कोशिश हुई. कुछ स्थानों पर हिंसक भीड़ का सामना करने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने जिस संयम और धैर्य से स्थिति को संभालने की कोशिश की है, वह सराहनीय है. यह संतोष की बात है कि किसान नेताओं ने उपद्रवियों से आंदोलन को अलग कर दिया है तथा सरकार ने भी कृषि कानून से संबंधित मुद्दों पर बातचीत जारी रखने का संकेत दिया है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों पक्ष जल्दी किसी समाधान पर पहुंचेंगे और आंदोलनकारी किसान अपने घर लौटेंगे. सीमाओं पर बड़ी संख्या में जमावड़े से अन्य राज्यों से आवागमन भी प्रभावित हुआ है तथा आसपास रहनेवाले लोगों को भी मुश्किलें आ रही हैं. बातचीत से ही गतिरोध का हल निकल सकता है. मंगलवार के उत्पात ने किसान आंदोलन के समर्थन को कमतर तो किया ही है, इससे उसकी नैतिक शक्ति भी क्षीण हुई है.
हिंसा की जांच का काम पुलिस का है. आशा है कि जल्दी यह काम पूरा होगा और दोषियों को दंडित किया जायेगा. यह संदेश देना जरूरी है कि राष्ट्रीय राजधानी में इस तरह की अराजकता और हिंसा की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए. किसान नेताओं को भी आंदोलन की रणनीति और रूप-रेखा पर गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए. उनके द्वारा हिंसा की निंदा स्वागतयोग्य है, लेकिन आगे कभी ऐसा न हो, इसका जिम्मा भी उन्हें लेना चाहिए और सभी अतिवादी तत्वों को आंदोलन से अलग कर देना चाहिए.
Posted By : Sameer Oraon