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मौलिक चिंतक थे डॉ राममनोहर लोहिया

डॉ लोहिया को भारत में जिस रूप में भी याद किया जाता हो, लेकिन गोवा में उन्हें मुक्ति योद्धा का दर्जा हासिल है. जिस श्रद्धा से अपने देश में महात्मा गांधी को स्मरण किया जाता है, उसी आदर भाव से गोवा में डॉ लोहिया को याद किया जाता है.

By अभिषेक रंजन | March 23, 2021 12:02 PM
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प्रखर समाजवादी एवं मौलिक चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया की आज 111वीं जयंती है. संयोग से यह साल ‘गोवा क्रांति दिवस’ की 75वीं एवं ‘गोवा की आजादी’ की 60वीं वर्षगांठ भी है. यह गोवा के गौरवशाली अतीत से परिचित होने का अवसर है. क्या गोवा मुक्ति संग्राम के महानायकों से जुड़े स्थलों को हमें अपने पर्यटन मानचित्र में शामिल नहीं करना चाहिए, ताकि लोगों को गोमंतकों के अतुलनीय संघर्ष एवं बलिदान की जानकारी मिले?

पिछले महीने मैंने उत्तरी एवं दक्षिणी गोवा में डॉ लोहिया से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्मारकों एवं स्थलों का भ्रमण किया. गोवा मुक्ति आंदोलन के शिल्पकार डॉ लोहिया एवं उनके सहयोगियों से जुड़े कई अहम दस्तावेज भी िमले. उसी दौरान यह खबर आयी कि गोवा सरकार डॉ लोहिया की स्मृति में अग्वादा किला जेल को संग्रहालय बना रही है. इसी परिसर में उनकी प्रतिमा का अनावरण भी होगा.

राज्य सरकार का यह निर्णय स्वागतयोग्य है. लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष देशी-विदेशी पर्यटक अग्वादा किला देखने आते हैं. उन्हें इस संग्रहालय से नवीन जानकारियां मिल सकेंगी.

गोवा मुक्ति युद्ध के इतिहास में श्री दामोदर विद्या भवन का उल्लेखनीय स्थान है. यह इमारत मडगांव स्थित लोहिया मैदान के नजदीक है. इसी भवन में 14 जून, 1946 को डॉ लोहिया और डॉ जूलियाओ मेनेजिस समेत करीब पचास लोगों ने गुप्त बैठक की थी. यहां से चंद फर्लांग की दूरी पर मडगांव थाना भी है, लेकिन पुर्तगाली पुलिस को उक्त बैठक के बारे में भनक तक नहीं लगी.

चार दिन बाद 18 जून, 1946 को डॉ लोहिया ने पुर्तगाल शासन के खिलाफ क्रांति का ऐलान कर दिया. जनसभा के बाद उन्हें गिरफ्तार कर अग्वादा किला जेल में बंद कर दिया गया. महात्मा गांधी ने भी उनकी गिरफ्तारी का पुरजोर विरोध किया था. हफ्ते भर बाद उन्हें रिहा तो कर दिया गया, लेकिन उनके गोवा आने पर पाबंदी लगा दी गयी. डॉ लोहिया एक जनपक्षधर नेता थे और वे समाजवादी इस अर्थ में थे कि समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था.

वे औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ और लोकतंत्र के प्रबल पैरोकार थे. लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था का एक प्रमाण यह भी है कि उन्होंने नेपाल और बर्मा में भी लोकतंत्र बहाली के लिए उल्लेखनीय कार्य किये. वे मानव मात्र को किसी देश का नहीं, बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे.

जब भारत आजाद हुआ, गोवा तब भी पुर्तगालियों के अधीन था. वर्ष 1954 में फ्रांस ने पांडिचेरी (अब पुद्दुचेरी) को मुक्त कर दिया, लेकिन गोवा स्वतंत्र नहीं हुआ. लंबे संघर्ष और हजारों लोगों की कुर्बानियों के बाद 19 दिसंबर, 1961 को गोवा को पुर्तगाली दासता से मुक्ति मिली. इस संघर्ष में गोमंतकों के साथ बाहर के लोग भी शामिल थे. यह डॉ लोहिया ही थे, जिन्होंने गोवा मुक्ति संग्राम से पूरे भारत को जोड़ दिया. उनके अनुयायियों के लिए गोवा पुण्य भूमि है.

जिस स्थान ने डॉ लोहिया को इतिहास में महानायक बनाया, वह मडगांव से बारह किलोमीटर दूर आसोलना गांव में डॉ जुलियाओ मेनेजिस का घर है. डॉ लोहिया और डॉ मेनेजिस जर्मनी के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय में साथ पढ़ते थे. लाहौर किला जेल से रिहा होने के बाद उनके आग्रह पर डॉ लोहिया स्वास्थ्य लाभ हेतु आसोलना आये थे. लेकिन, इतिहास को शायद कुछ और मंजूर था तथा डॉ लोहिया के निमित्त एक महान कार्य संपादित होना था.

उनका मानना था कि गोवा के बगैर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई अधूरी है. पुर्तगाल शासन के विरुद्ध डॉ लोहिया ने आसोलना के लोगों को एकजुट किया. उनकी अपील पर मडगांव, पणजी, मापुसा, वास्को, फोंडा के अलावा कोंकण के कई अंचलों में गोमंतकों की बैठकें होने लगीं. मडगांव मैदान (अब लोहिया मैदान) में डॉ लोहिया की जनसभा ने यह तय कर दिया था कि देर-सबेर गोवा आजाद होकर रहेगा.

डॉ लोहिया को भारत में जिस रूप में भी याद किया जाता हो, लेकिन गोवा में उन्हें मुक्ति योद्धा का दर्जा हासिल है. जिस श्रद्धा से अपने देश में महात्मा गांधी को स्मरण किया जाता है, उसी आदर भाव से गोवा में डॉ लोहिया को याद किया जाता है. कोंकणी में उन पर केंद्रित कई लोकगीतों एवं कविताओं की रचना हुई है.

गोमंतकों के बीच ‘अग्वादा का शेर’ कहे जानेवाले डॉ राममनोहर लोहिया के सम्मान में कोंकणी के प्रसिद्ध कवि मनोहर राव सरदेसाई ने ये अप्रतिम पंक्तियां लिखी है- ‘आज हम हो गये आजाद, मुक्त हमारी आवाज/ सब कुछ देने को हम तैयार, मांग लो हमारा प्यार/ हे अग्वादा के शेर, तुमने, जागने की दे दी पुकार’…

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