संतुलित श्रम सुधार

लेकिन यह भी तय है कि अगर आगामी दिनों में कोरोना वायरस के फैलाव परकाबू भी पा लिया जाता है, तब भी उत्पादन और अन्य व्यवसायों की गति कोपहले की तरह बहाल करने में कई मुश्किलें आयेंगी.

By संपादकीय | May 12, 2020 4:01 AM

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन और अन्य निर्देशों की वजह सेऔद्योगिक गतिविधियां लगभग ठप हैं. पिछले दिनों में कुछ क्षेत्रों में ढीलदी गयी है तथा अगले सप्ताह से अनेक कारोबारों को मंजूरी मिलने की उम्मीदहै. लेकिन यह भी तय है कि अगर आगामी दिनों में कोरोना वायरस के फैलाव परकाबू भी पा लिया जाता है, तब भी उत्पादन और अन्य व्यवसायों की गति कोपहले की तरह बहाल करने में कई मुश्किलें आयेंगी. यह भी उल्लेखनीय है किसंक्रमितों और मौतों की संख्या में बढ़ोतरी भी जारी है.

कोरोना के कहर सेपूरी दुनिया त्रस्त है, सो निर्यात और निवेश के मोर्चे पर भी चुनौतियांगंभीर हैं. ऐसे में इस समय का इस्तेमाल लंबित सुधारों को लागू करने मेंकिया जा सकता है. इसमें श्रम सुधार प्रमुख है. कोरोना संकट से पहलेकेंद्र सरकार ने कई कानूनों को संशोधित और समायोजित कर चार संहिताओं केरूप में लाने की पहल की थी. उस पहल को अमली जामा पहनाये जाने की जरूरतहै. कुछ राज्य सरकारों द्वारा भी हालिया सालों में इस तरह की कोशिशें हुईहैं. अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों ने औद्योगिकउत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक श्रम कानूनों को निलंबित करने काफैसला किया है.

उद्योग जगत भी ऐसे कदमों की मांग कर रहा है ताकि महामारीके असर से तबाह होने के कगार पर पहुंच चुकी अर्थव्यवस्था को फिर सेसामान्य बनाने में मदद मिल सके. लॉकडाउन के पहले ही दिन से बहुत बड़ीसंख्या में कामगार शहरों से अपने गांवों की ओर वापस पलायन कर रहे हैं.बेरोजगारी और शहरों के खर्च ने उन्हें इस कदर परेशान कर दिया है कि वेयातायात के साधन न मिल पाने की वजह से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का फासलापैदल ही तय कर रहे हैं. हमारे देश में कामगारों का लगभग 90 फीसदी हिस्साअसंगठित क्षेत्र में है यानी छोटे-मझोले उद्यमों, उत्पादन व्यवस्थाओं औरकारोबारों का आधार यही कामगार हैं.

इन गतिविधियों का संबंध संगठितक्षेत्र से सीधे जुड़ा है, सो बिना कामगारों के आर्थिकी को खड़ा कर पानासंभव नहीं होगा. ऐसे में इन कामगारों को धीरे-धीरे वापस शहरों में लानाभी जरूरी है. अब सवाल यह है कि जो उत्पादन व्यवस्था उन्हें कुछ दिनों काखर्च भी मुहैया नहीं करा सकी और उन्हें जान बचाने के लिए दर-दर की ठोकरेंखाना पड़ा है तथा शासन की भूमिका भी बहुत संतोषजनक नहीं रही है, तो क्याउद्योग जगत और नौकरशाही के लाये हुए श्रम सुधार उन्हें आकर्षित करसकेंगे? इसलिए यह जरूरी है कि सुधार की कोशिशें कामगारों के बुनियादीअधिकारों का हनन न करें तथा उनके शोषण का हथियार न बनें. आर्थिक हितों औरकामगारों की सुरक्षा के बीच समुचित संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए. इससंबंध में कोई भी एकतरफा फैसला करोड़ों मजदूरों को तबाह कर सकता है.

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