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सरकार उठाये वैक्सीन का खर्च

केंद्र सरकार को मामूली बचत की चिंता नहीं करनी चाहिए और पूरी आबादी के टीकाकरण का खर्च केंद्रीय वित्त कोषों से दिया जाना चाहिए.

हमारे देश में संक्रमण की रोजाना संख्या सबसे प्रभावित 11 देशों की कुल संख्या से अधिक है, जिनमें तुर्की, अमेरिका और ब्राजील जैसे बड़े देश शामिल हैं. रोज के आंकड़े पांच लाख की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं और हर दिन एक हजार से अधिक लोग मर रहे हैं. देशभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली ऑक्सीजन, बिस्तर और दवाओं की भारी मांग को पूरा करने के लिए जूझ रही है. साथ ही, हम अधिक-से-अधिक लोगों के टीकाकरण के लिए भी प्रयासरत हैं. हम इस स्थिति से बच सकते थे, यदि केंद्र सरकार ने पहले नहीं तो, कम-से-कम जनवरी में वैक्सीन निर्माताओं को बड़ी मात्रा में खुराक की खरीद का निश्चित प्रस्ताव दे दिया होता.

सीरम इंस्टीट्यूट जैसे घरेलू टीका निर्माताओं को निर्यात करने की बाध्यता भी थी क्योंकि उसका टीका आस्त्रा जेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा बना है. ऐसे में जरूरी था कि बहुत पहले ही घरेलू इस्तेमाल के लिए उसकी निर्माण क्षमता का उपयोग किया जाता. उल्लेखनीय है कि पिछले साल भारतीय चिकित्सा अध्ययन परिषद ने भारत बायोटेक को कहा था कि वह स्वतंत्रता दिवस से पहले टीका तैयार कर दे.

उस महत्वाकांक्षी लक्ष्य का क्या हुआ? भारत के ड्रग नियंत्रक निदेशक ने भी पहले और दूसरे चरण के परीक्षणों को जल्दी मंजूरी दी थी और वे चाहते थे कि भारत बायोटेक तीसरे चरण के परीक्षण में भी तेजी लाये और जल्दी टीका उपलब्ध कराये. दरअसल, भारत बायोटेक के टीके के नाम- कोवैक्सीन- से लगता है कि यह भारत सरकार और कंपनी की साझा बौद्धिक संपत्ति है, सो सरकार टीके को जल्दी उपलब्ध कराने में हस्तक्षेप कर सकती थी.

स्पष्ट है कि हम जितनी जल्दी आबादी का टीकाकरण करेंगे, उतनी जल्दी महामारी पर नियंत्रण कर सकेंगे. यह एक दौड़ है. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वायरस निर्बाध रूप से फैलता रहेगा और नये नये रूप लेकर संक्रमित करता रहेगा. ये नये रूप दुनिया में भी फैल सकते हैं. इसी कारण भारत की कोरोना चुनौती अब वैश्विक चुनौती बन गयी है और कई देशों ने अपनी ओर से पहल कर मदद- वैक्सीन (रूस का स्पुतनिक) या ऑक्सीजन के लिए क्रायोजेनिक टैंकर (चीन) या अन्य सहयोग- की पेशकश की है.

कुछ देशों में व्यापक स्तर पर वैक्सीन दी जा चुकी है. ऐसे देशों में सबसे उल्लेखनीय इजरायल है, जिसने बीते सप्ताह मास्क से आजादी की घोषणा कर दी है. अमेरिका की आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्से का भी टीकाकरण हो चुका है. ब्रिटेन भी इस मामले में पीछे नहीं है. भारत में 10 फीसदी आबादी को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है, जबकि 1.5 फीसदी लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है. रणनीति यह रही है कि सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों जैसे अग्रिम मोर्चे पर लगे लोगों को टीका दिया जाए, उसके बाद बुजुर्गों को और फिर शेष वयस्क जनसंख्या को.

वैक्सीन की कमी के कारण सरकार ने निजी कंपनियों को बोली लगाकर टीका खरीदने (इससे संभवत: आपूर्ति केंद्रित हो सकती थी) पर रोक लगा दी थी. लेकिन एक मई से सरकारी और निजी कंपनियों के साथ राज्य सरकारों एवं अन्य संस्थाओं को भी टीका देने की अनुमति मिली है. अभी तक केंद्र की ओर से राज्यों को टीकों का आवंटन होता था, जो राज्य में टीकाकरण केंद्रों का निर्धारण करते थे. एक मई से ऐसी व्यवस्था नहीं होगी. इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न टीके के दाम को लेकर खड़ा होता है.

किन्हीं कारणों से केंद्र को देने की जगह के हिसाब से एक ही टीके की अलग-अलग कीमत तय करना सही लगा है. राज्यों को कोविशील्ड की एक खुराक के लिए 400 और निजी खरीदारों को 600 रुपया देना होगा. केंद्र सरकार ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन के लिए 150 रुपया दिया है. स्पुतनिक के मूल्य के बारे में अभी जानकारी नहीं है. निजी खरीदारों के लिए कोवैक्सीन की एक खुराक 1200 रुपये में मिलेगी यानी एक आदमी पर 2400 रुपये का खर्च आयेगा. यदि एक परिवार में चार लोगों को वैक्सीन दी जानी है, तो खर्च 9600 रुपया हो जायेगा, जो लगभग भारत की प्रति व्यक्ति आय के बराबर है.

हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के थोड़ा ही ऊपर जीवन बसर करता है और महामारी से पैदा हुई मंदी और बेरोजगारी के इस दौर में यह बड़े अचरज की बात है कि एक टीके की कीमत पूरे महीने की प्रति व्यक्ति आय के लगभग बराबर रखी गयी है.

महामारी पर नियंत्रण सबके भलाई के लिए है. इससे बीमार होकर ठीक हुए लोगों के साथ उन्हें भी लाभ होगा, जो संक्रमण की चपेट में नहीं आये हैं. टीकाकरण से देश की बहुत बड़ी आबादी को भविष्य के संक्रमण और उससे होनेवाली मौतों से बचाया जा सकेगा. इससे कड़े लॉकडाउन से भी बचा जा सकेगा, अन्यथा वृद्धि दर में बड़ी गिरावट हो सकती है. पिछले साल के लॉकडाउन से सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में पहली तिमाही में 25 फीसदी की कमी आयी थी और करीब 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो गये थे.

बाद में अर्थव्यवस्था में सुधार होना शुरू हुआ, तो अब इस दूसरी लहर से खतरा पैदा हो गया है. टीकाकरण अभियान से जीडीपी में कमी और बेरोजगारी को रोका जा सकेगा. इस कारण सरकार को मामूली बचत की चिंता नहीं करनी चाहिए और सभी के लिए टीकाकरण का खर्च केंद्रीय वित्त कोषों से दिया जाना चाहिए.

बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि इस मद में वे 35 हजार करोड़ रुपये का आवंटन कर रही हैं और जरूरत पड़ी, तो और आवंटन होगा. वह समय आ गया है और केंद्र को पूरा खर्च उठाने की इच्छा रखनी चाहिए. देश की पूरी आबादी को 150 रुपये की दो खुराक देने का खर्च 39 हजार करोड़ रुपया होगा, जो वित्त मंत्री के आकलन के आसपास है. यह रकम अगर दुगुनी भी होती है, तो यह अभियान जन कल्याण के लिए है.

मुफ्त में देने से भुगतान व संग्रहण के झंझट या किसी हिचकिचाहट से भी बचा जा सकेगा. याद रहे, वैक्सीन शोध के लिए बड़ी सार्वजनिक राशि दी जाती है, इसलिए मुफ्त टीकाकरण तार्किक भी है. निर्माताओं की कमाई सुनिश्चित होनी चाहिए, न कि भारी मुनाफा़ नहीं होगा यह भी सरकार के पैसे से टीका देने के अभियान का विरोधाभासी नहीं है. राज्यों के बजट पहले से ही वित्तीय दबाव में कराह रहे हैं और वे कर्ज बढ़ाने की स्थिति में भी नहीं हैं, इसलिए उन पर बोझ नहीं डाला जाना चाहिए. केंद्र सरकार को ही इसका खर्च वहन करना चाहिए.

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