शिक्षा और मुनाफा

सरकारों को निजी संस्थानों पर निगरानी बढ़ानी चाहिए तथा शुल्क संरचना एवं गुणवत्ता की समीक्षा प्रक्रिया को कठोर बनाना चाहिए.

By संपादकीय | November 10, 2022 8:31 AM

शिक्षा सस्ती और सुलभ हो, यह सुनिश्चित करना सरकारों का उत्तरदायित्व है. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा मुनाफा कमाने का कारोबार नहीं है. वर्ष 2017 में आंध्र प्रदेश सरकार ने मेडिकल पाठ्यक्रम के शुल्क में सात गुना बढ़ोतरी कर दी थी. उस आदेश को निरस्त करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने निजी मेडिकल कॉलेजों को वसूली गयी फीस छात्रों को लौटाने को कहा है.

आंध्र प्रदेश सरकार के उक्त आदेश को राज्य के उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2019 में ही रद्द कर दिया था, जिसे एक निजी कॉलेज ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता कॉलेज और आंध्र प्रदेश सरकार पर अदालत ने सुनवाई के खर्च के रूप में पांच लाख रुपया जमा कराने को भी कहा है. साल 2017 में राज्य के कॉलेजों में सालाना फीस 24 लाख रुपया कर दी गयी थी, जिसे उच्च और उच्चतम न्यायालय ने पूरी तरह अनुचित बताया है.

हमारे देश में मेडिकल सीटों की बहुत कमी है. कॉलेज अन्य मदों के नाम पर भी भारी रकम वसूलते हैं. चयनित छात्रों को इसके लिए कर्ज लेना पड़ता है और सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया है कि ऐसे कर्ज में बहुत अधिक ब्याज भी देना पड़ता है. जब वे पाठ्यक्रम पूरा कर डॉक्टर बन जाते हैं, तो उनकी प्राथमिकता कर्ज चुकाना होती है. निजी क्लीनिकों और अस्पतालों में महंगे उपचार का यह एक बड़ा कारण है.

भारी फीस के कारण कई छात्र चीन, यूक्रेन, रूस, मध्य एशिया के देशों आदि में प्रवेश लेने को मजबूर होते हैं, जहां पढ़ाई सस्ती पड़ती है. बाहर के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई और प्रशिक्षण की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. हाल में केंद्र सरकार ने एक सराहनीय फैसले में निजी संस्थानों को निर्देश दिया है कि उनके यहां उपलब्ध सीटों में से आधी सीटों पर शुल्क सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों को नये मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए जमीन और अन्य संसाधन मुहैया कराने का भी अनुरोध किया है.

भारी फीस की समस्या अन्य तकनीकी और प्रबंधन पाठ्यक्रमों के साथ भी है. निजी शिक्षण संस्थानों में सामान्य पाठ्यक्रम भी बहुत महंगे हैं. केंद्र और राज्य सरकारों को निजी संस्थानों पर निगरानी बढ़ानी चाहिए तथा शुल्क संरचना एवं गुणवत्ता की समीक्षा प्रक्रिया को कठोर बनाना चाहिए. स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक भारी शुल्क पर लंबे समय से चर्चा होती रही है. महंगी शिक्षा आबादी के बड़े हिस्से को बहिष्कृत भी करती है. भारत के उत्तरोत्तर विकास को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा का विस्तार आवश्यक है.

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